धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सवों के लिए विख्यात है रोहड़ू

 अतीत के पन्नों को टटोला जाए तो रोहड़ू क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सवों के लिए खास विख्यात रहा है। चारों ओर देवी-देवताओं का वास रहा है। यह छत्रछाया आज भी कायम है। क्षेत्रवासी आज भी देवी-देवताओं को पूर्ण श्रद्धा से मानते हैं। देवी-देवताओं की सर्वोच्च सत्ता में प्रजा प्रसन्नचित है और विकास के उच्चतम शिखर की ओर अग्रसर है। भोले-भाले लोग विकास के पथ पर बिना रुके आगे बढ़ रहे हैं…

गतांक से आगे …

त्योहार :

उनके आगे ढोलक, शहनाई व अन्य वाद्य यंत्र बजाते हुए पुजारी और गूर सहित गांव के अन्य जैसे ही देवता जनसमूह के साथ मेले में पहुंचता है, जो आमतौर पर पहाड़ी की चोटी पर होता है, सारा माहौल उत्सुकतापूर्ण बन जाता है। जो चीज जिसके हाथ में हो, वह उसकी प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। कुमारसैन और इसके आसपास के क्षेत्रों में तीरकमान का खेल इस दिन के मेलों का विशेष खेल होता है जिसे ‘ठोड’ का खेल कहते हैं। कहीं-कहीं आज के दिन छिंजों यानी कुश्तियों का आयोजन भी किया जाता है। ये मेलों में भी आयोजित हो सकती है और इनके कारण मेले भी लग सकते हैं। बैसाखी पूरे उत्तरी भारत में मनाया जाता है।

रोहड़ू मेला :

 विश्व में अनुपम सौंदर्य से परिपूर्ण चांशल चोटी का सान्निध्य देखते ही बनता है। गोलाकार पहाडि़यों से घिरे रोहड़ू की छवि से टकराती पत्थर की जल धाराएं बयान कर रही हैं कि सदियों से यह निर्बाध गति से आगे बढ़ रही है और इतिहास की मूल घटनाओं का संदेश दे रही हैं। अतीत के पन्नों को टटोला जाए तो रोहड़ू क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सवों के लिए खास विख्यात रहा है। चारों ओर देवी-देवताओं का वास रहा है। यह छत्रछाया आज भी कायम है। क्षेत्रवासी आज भी देवी-देवताओं को पूर्ण श्रद्धा से मानते हैं।

देवी-देवताओं की सर्वोच्च सत्ता में प्रजा प्रसन्नचित है और विकास के उच्चतम शिखर की ओर अग्रसर है। भोले-भाले लोग विकास के पथ पर बिना रुके आगे बढ़ रहे हैं। यही वजह रही कि ऊपरी शिमला में बहुचर्चित रोहड़ू मेले की नींव पड़ी। कालांतर में यह मेला राज्य स्तर के दर्जे से अलंकृत हुआ। तीन दिन तक यह मेला चलता है। लोगों की भारी-भरकम भीड़ मेले में शिरकत करने के लिए चली आती हैं। आपसी भाईचारे और स्नेह की झलक सहज ही देखी जा सकती है। लोगों का मित्र मिलन त्योहार की रौनक को चौगुना कर देता है। मेले का मुख्याकर्षण स्थानीय देवता शिकडू महाराज जी हैं। शिकडू देवता साहिब अपने रथ में सवार रहते हैं। रथ में विराजमान होकर पूरे नगर की परिक्रमा करते हैं। देवता साहिब की भव्य झांकी नगर के गंगटोली से निकाली जाती है और नगर भ्रमण के बाद पुनः देवता के मंदिर परिसर गंगटोली में पहुंचती है। शीत ऋतु के उपरांत आने वाली बसंत ऋतु में मौसम भी खुशगवार रहता है।