नए हिमाचल का निवेश

By: Jul 12th, 2019 12:05 am

हिमाचली महत्त्वाकांक्षा में अग्रसर होते विकास तथा निवेश की राह को चुनते उल्लास के बीच पुनर्वास की नीति भी स्पष्ट करनी होगी। सरकार की मध्यस्थता में बेशक लोग सीधे निवेशक को जमीन सौंपने को तैयार हो रहे हैं, फिर भी आती बहार के किसी छोर पर हिमाचल को नए सिरे से बसाने का प्रयत्न भी साथ-साथ चले, तो राज्य की अपनी ऊर्जा व स्वावलंबन सशक्त होगा। मसला अगर सड़कों के निर्माण के साथ समझा जाए या हर फोरलेन परियोजना के साथ नई बस्तियों की परिभाषा में विस्थापन को समेटा जाए, तो पुनर्वास केवल इनसान का नहीं स्वरोजगार का भी होगा। बहुत सारी सड़क परियोजनाओं या हवाई अड्डों के विस्तार की सूचनाएं आम नागरिक की अपनी विस्तार योजनाओं को अनिश्चय में ले जाती हैं। करीब डेढ़ दशक से गगल हवाई अड्डे की विस्तार योजनाएं इसकी जद में आने वाली गतिविधियों को रोके हैं, तो स्पष्टता से एक सीमा तय करनी होगी कि इसके निशान कहां तक जाएंगे। कमोबेश ऐसी परिस्थिति में पठानकोट-मंडी या धर्मशाला-शिमला फोरलेन सड़क परियोजनाओं के अधूरे सच ने कई बस्तियों को चिंतातुर किया है, तो विषय की स्पष्टता चाहिए और यह कमोबेश हर सड़क की प्रस्तावित चौड़ाई तय करते हुए बताया जाए कि आगामी सालों में ऐसे विकास की हद क्या होगी। अगर परियोजना से पहले पुनर्वास की योजना तय हो जाए, तो नागरिक पीड़ा शांत हो जाएगी, वरना कोई स्थायी समाधान नहीं होगा। मसलन गगल एयरपोर्ट विस्तार के साथ-साथ चैतड़ू के नजदीक पूर्व प्रस्तावित उपग्रह नगर को जोड़ा जाए, तो नागरिक समुदाय के लिए यह पुनर्वास का नक्शा स्पष्ट होगा। पूरे प्रदेश में ऐसे दर्जन भर पुनर्वास शहर बसा कर धंधे के बदले धंधा और आवास के बदले आवास प्रदान किया जा सकता है। इसके अलावा पुनर्वास के तहत ऐसा निवेश जोड़ा जाए, जो राहत का पैगाम बन जाए। हाई-वे टूरिज्म की नई व्याख्या अगर प्रस्तावित नई सड़क परियोजनाओं के साथ जोड़ी जाए, तो मुख्य मार्गों के हर दस किलोमीटर के बाद ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध करा कर विस्थापितों को उसी सड़क विस्तार का आश्रय मिल सकता है। इसी तरह पर्वतीय नदी-नालों पर केंद्रित छोटी-छोटी झीलें विकसित करके स्वरोजगार के साथ निवेश की मुलाकात करानी होगी। निवेश की चर्चाओं में बड़ी परियोजनाओं के साथ-साथ लघु संकल्पों का समावेश प्रदेश में कई प्रगतिशील गांव, कस्बे व शहर चुन सकता है। हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए लैंडबैंक स्थापित करने के लिए निवेश की सक्रियता बढ़ानी होगी। मसलन अगर शहरी परिदृश्य के नालों, खड्डों व कूहलों का चैनेलाइजेशन करते हुए उपलब्ध जमीन पर कारोबार का हक दें, तो निवेशक आगे आएंगे। ऐसे शहरों में बैंकिंग काम्पलैक्स बनाने में बैंकों से ही निवेश कराया जाए तो एक साथ कई शॉपिंग परिसर, मनोरंजन केंद्र तथा पार्किंग स्थल विकसित होंगे। हर शहर के बस स्टैंड को अब निवेश की पूंजी में विकसित करते हुए इसे बहुआयामी परिसर बनाना होगा। यानी बस स्टैंड की परिकल्पना में एक व्यापारिक, पर्यटन व मनोरंजन केंद्र विकसित करने की परियोजनाएं बनाएं, तो निवेशक की भूमिका का विस्तार होगा। नए निवेश की आंख से भविष्य का हिमाचल जो देख रहा है, उसकी शुरुआत छोटे कदमों से भी बड़ी मंजिल तक पहुंच सकती है बशर्ते समाज को उसमें अपना अक्स दिखाई दे। इसलिए हर गांव से शहर तक की योजनाओं में सरकारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी कुछ यूं तय हो कि जनता भी एहसास कर सके कि कहीं नए हिमाचल की रूपरेखा का निर्धारण करने की वजह वह भी है।


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