नशे की गिरफ्त में देवभूमि

By: Jul 22nd, 2019 12:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, बिलासपुर से हैं

 

सामाजिक विकास के लिए नशामुक्त व अपराध मुक्त वातावरण जरूरी है। बेरोजगारी की मार झेल रहा प्रदेश नशे के बढ़ते प्रचलन को रोके बिना उन्नत राज्यों की सूची में शामिल नहीं हो सकता और नशे का बढ़ता अनैतिक कारोबार राज्य के आर्थिक अस्तित्व पर कुठाराघात साबित होगा…

एक पुरानी कहावत है कि पहाड़ का पानी और जवानी दोनों हमेशा देश के ही काम आए हैं। पहाड़ी राज्य हिमाचल के जवानों ने भारतीय सेना में अपने पराक्रम का लोहा मनवाकर सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अपने नाम करके राज्य का मान बढ़ाया है। लेकिन दुखद बात है कि कुछ अरसे से देवभूमि पर नशे का साया मंडरा रहा है, जिसके चलते इस मेहनतकश पहाड़ की जवानी देश के बजाय नशा माफिया के ज्यादा काम आ रही है। युवाशक्ति का बहुत बड़ा वर्ग नशे के गर्त में जा चुका है। सिंथेटिक नशे की ओवरडोज से कई युवा मौत के आगोश में समा रहे हैं। यानी राज्य में नशे का परिदृश्य चिंताजनक स्तर को छू रहा है। देश में 59 प्रतिशत युवा तथा 28 फीसदी युवतियों को नशे के संताप से ग्रस्त माना जा रहा है। अपने राज्य में नशेड़ी युवाओं का आंकड़ा 27 प्रतिशत तक आंका जा चुका है। हिमाचल देश और विश्वभर में पर्यटन के लिए  तथा देवभूमि के नाम से विख्यात है, लेकिन पिछले कुछ समय से यह वन माफिया, खनन माफिया तथा नशा माफियाओं के लिए प्रसिद्ध हो चुका है। इन माफियाओं के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर सियासत सबसे पहले सवालों के घेरे में है।

बिना सियासी सरपरस्ती के सभ्य समाज में कोई माफिया नहीं पनप सकता। उसी प्रकार नशा चाहे मादक पदार्थों का हो या सियासत की रसूखदारी का, सकारात्मक सोच तथा दूरदृष्टि के नजरिए को जरूर प्रभावित करता है। अपने कृषि व बागबानी व्यवसाय में व्यस्त तथा सादगी व ईमानदार छवि वाले प्रदेश के लोगों ने शायद ही कभी कल्पना की होगी कि दूसरे राज्यों व महानगरों में फैली नशे जैसी महामारी की बयार एक दिन अपने राज्य की दहलीज पर दस्तक देकर देवभूमि की आबोहवा को भी दूषित करेगी। राज्य में नशा सप्लाई की बढ़ती घटनाओं में विदेशियों सहित प्रवासी लोगों की भूमिका को भी नहीं नकारा जा सकता। प्रदेश के मंदिरों में भीक्षावृत्ति तथा चोरी की घटनाओं से लेकर कई आपराधिक वारदातों में इन प्रवासियों की संलिप्तता पाई जा रही है। देश में हिमाचल प्रवासियों के लिए सबसे महफूज ठिकाना बन चुका है। राज्य में इतनी बढ़ रही संख्या भी चिंता का विषय बन रहा है। नशे की बढ़ती घटनाओं के कारण ही अपराधों का ग्राफ भी प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 73 प्रतिशत से अधिक संगीन अपराधों का कनेक्शन नशे से जुड़ा है, जिसमें अधिक भागीदारी भी युवा वर्ग की ही है और नशा माफियाओं का नेटवर्क ज्यादातर शिक्षण संस्थानों के इर्द-गिर्द ही घूमता है, जिसकी रेंज में युवा वर्ग ही आता है। राज्य में साल 2018 में ड्रग तस्करी के 1341 मामले दर्ज हुए थे, वहीं इस वर्ष के शुरुआती पांच महीनों तक 537 मामले दर्ज पाए जा चुके हैं। नशे की बरामदगी के दर्ज हो रहे आंकड़े तथा नशे के सौदागरों का बड़ी संख्या में पकड़े जाना इस बात की तसदीक करते हैं कि शांत राज्य में नशा कारोबार का संकट और गहराता जा रहा है, जिस पर अंकुश लगने की बजाय ड्रग का गोरखधंधा और तेजी से पैर पसार रहा है। युवा शक्ति की ऊर्जावान ताकत राष्ट्र निर्माण के किसी भी क्षेत्र में परिवर्तन की पटकथा लिखने की पूरी कूवत रखती है, यदि उस ऊर्जा को लक्ष्य चयन का सकारात्मक मार्गदर्शन मिले, लेकिन जब नशा ही दिनचर्या का हिस्सा बन जाए, तो जीवन में असंतुलन पैदा होना तथा भविष्य का दिशाहीन व लक्ष्यविहीन होना स्वाभाविक है। विश्व के पांच प्रमुख कारोबारों में शुमार कर चुके नशे की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने की नीति का रोडमैप राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वयन होना चाहिए। हमारे देश में 1998 से मादक पदार्थों की खपत में कमी के लिए ‘राष्ट्रीय मादक द्रव्य निवारण संस्थान’ की स्थापना की गई है। हमारे संविधान के ‘अनुच्छेद 47’ में यह प्रावधान है कि राज्यों को भी अवैध मादक पेय तथा नशीले पदार्थों के उपभोग को रोकने के प्रयत्न करने होंगे। इस बार अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस के मौके पर राज्य सरकार ने ‘ड्रग्स फ्री हिमाचल’ नाम से मोबाइल ऐप भी लांच की है तथा नशा निवारण टोल फ्री नंबर 1908 भी जारी किया है, ताकि मादक द्रव्य अधिनियम के अंतर्गत नशाखोरी की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके। इसके साथ नारकोटिक कंट्रोल एजेंसी व पुलिस बल को प्रदेश के दूसरे राज्यों से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में और तीव्र सतर्कता के साथ निरंतर मुस्तैद रहना होगा, जहां से नशे की खेप सुनियोजित तरीके के राज्य में पहुंचाई जा रही है। यही ड्रग सप्लाई युवा शक्ति के खिलाफ एक खामोश युद्ध की आहट है, क्योंकि ड्रग की आमद से देश का हर राज्य ग्रसित हो चुका है। वर्तमन में हिमाचल का लगभग हर जिला नशे की जद में आ चुका है। शांत राज्य में बढ़ते ड्रग के धंधे से अपराधों को भी पनाह मिल रही है। इसलिए विकराल रूप ले रहे नशे के समूल नाश के लिए यदि राज्य के 12 जिलों की सभी ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि अपने स्तर पर अपने क्षेत्रों में नशा उन्मूलन जन जागरण अभियान चलाकर जागरूकता बढ़ाने में योगदान दें, तो यकीनन इस समस्या के सार्थक व सकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। सामाजिक विकास के लिए नशामुक्त व अपराध मुक्त वातावरण जरूरी है। बेरोजगारी की मार झेल रहा प्रदेश नशे के बढ़ते प्रचलन को रोके बिना उन्नत राज्यों की सूची में शामिल नहीं हो सकता और नशे का बढ़ता अनैतिक कारोबार राज्य के आर्थिक अस्तित्व पर कुठाराघात साबित होगा।

अतः लाजिमी है कि राज्य में पनाह लिए बैठे नशे के नामजद सरगनाओं तथा उनके तीमारदारों पर सरकार कड़ा रुख अपनाए, जिनके साए में यह धंधा पनप रहा है, ताकि देश के भविष्य युवा वर्ग को ड्रग माफिया के शिकंजे तथा मौत की दावत नशा व्यसन से बचाया जा सके। सरकारोें को चाहिए कि नशा निवारण विषय प्रारंभिक स्कूली पाठ्यक्रम से ही अनिवार्य करके छात्रों को नशे के दुष्प्रभावों से अवगत कराया जाए। इससे पहले कि देवभूमि व वीरभूमि के नाम से विख्यात राज्य को कहीं ‘उड़ता हिमाचल’ की उपाधि मिल जाए, नशामुक्त अभियान को व्यापक जनआंदोलन बनाना होगा। इस मुहिम में प्रशासन के साथ समाज के सभी वर्गों को सामूहिक प्रतिबद्धता व संकल्प के साथ अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी, ताकि देवभूमि के दामन पर लग रहे नशे के दाग मिटाए जा सकें।


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