पीसीबी की मशीनें; किसी भी विभाग ने नहीं की इस्तेमाल

शिमला  – इससे बड़ी हैरानी की बात और क्या हो सकती है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अंतराष्ट्रीय स्तर की नई मशीनें हिमाचल में लेकर तो आता है और प्रदेश का कोई भी विभाग उसे इस्तेमाल ही नहीं कर पाता। इसमें सबसे अहम डस्ट स्वीप मशीन और प्लास्टिक स्वीपिंग मशीन है, जिसके बारे में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विभिन्न विभागों को इस्तेमाल करने के बारे में पत्र लिखा था। एमसी शिमला और लोक निर्माण विभाग को खासतौर पर लिखा गया था कि इन मशीनों का यदि प्रदेश में इस्तेमाल किया जाता है तो  पर्यावरण सुरक्षा के काफी पहलुओं को हिमाचल छू सकता है। अब पीसीबी द्वारा पर्यावरण सुरक्षा को लेकर नए ट्रायल करने का आखिर क्या फायदा जब ये मशीनें मात्र  ट्रायल तक ही सीमित रह जाती है।  उल्लेखनीय है कि पर्यावरण सुरक्षा को लेकर किए गए विभिन्न अहम योजनाआें में ये पोलीपैक्स इस्तेमाल के  बारे में एमसी क ो भी लिखा गया था। पोलीपैक्स से टाइल्स का निर्माण किया जाना था, लेकिन इसका ट्रायल भी प्रदेश में सफल होने के बाद कागजा़ें में ही कैद हो कर रह गया। गौर हो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  इस्तेमाल होने वाली इन संबंधित मशीनों के ट्रायल प्रदेश कि विभिन्न क्षेत्रों में किए गए थे, जो सफल हुए हैं। अन्य विभागों को इसके बारे में इसलिए लिखा गया था क्योंकि  वह अपने कार्यालयों में इसे यूज़ करके आसपास की आबोहवा को और साफ कर सकते थे। इन मशीनों से एक सामान्य विधि से सफाई भी हो जानी थी और इक्ट्ठे किए गए प्लास्टिक का इस्तेमाल भी बेहतर तरीके से किया जाना था। बताया जा रहा है कि एमसी इसका सबसे अच्छा इस्तेमाल कर सकता था। इन मशीनों से सड़कों के किनारे दोनों तरफ से बेहतर सफाई की जानी तय की जा रही थी। कांगड़ा, मंडी और शिमला में इन मशीनों का ट्रायल भी सफल रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि किसी भी विभाग ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की पहल में रुचि नहीं दिखाई, लिहाजा यह मुहिम कागजों में ही सिमट कर रह गई। 

हिमाचल के प्रदूषण स्तर में लाई जानी थी कमी

इन मशीनों के इस्तेमाल से प्रदूषण के स्तर पर तेजी से कमी लाई जानी थी। ये काफी हाईटैक मशीनें हैं। इससे इकट्ठी की गई धूल को पोलिथीन क े साथ मिलाकर टाइल्ज़ बनाई जाने वाली थी। यह भी देखा गया है कि नेशनल हाई-वे पर सबसे ज्यादा डस्ट पॉर्टिकल की मात्रा आंकी जाती है। लिहाजा ये मशीनें प्रदेश की आबोहवा को सुधारने के लिए काफी महत्त्वपूर्ण साबित होनी थी। इन मशीनों से पार्क और सड़कों की सफाई   की जा सकती थी।

इन क्षेत्रों में प्रदूषण का लेवल है बहुत ज्यादा

बद्दी, नालागढ़, परवाणु, पांवटा साहिब, कालाअंब,  सुंदरनगर और डमटाल आदि ऐसे क्षेत्र है, जहां पर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है। यहां पर सड़कों के किनारे धूल और काफी मात्रा में प्लास्टिक देखा जा सकता है। ऐसे में यहां पर ये मशीनें काफी लाभप्रद सिद्ध हो सकती हैं।