पोलिथीन से बदरंग होता पर्यावरण

By: Jul 10th, 2019 12:05 am

बचन सिंह घटवाल

लेखक, कांगड़ा से हैं

 

व्यक्ति या तो प्लास्टिक में लिपटे खाद्य पदार्थों से तौबा कर ले या जरूरी पदार्थों में लिपटे पोलिथीन या प्लास्टिक को संभाल कर रखते हुए पूर्ण निष्पादन के लिए कचरा निष्पादन संयंत्रों के हवाले करने की भूमिका जरूर असर दिखाएगी। इसकी पहल पंचायत स्तरों पर पूर्ण गंभीरता संग करने की आवश्यकता है। बरसात का मौसम कचरे में विशेषकर पोलिथीन का असर हर वर्ष दिखाता रहता है…

चांद छू लेने की तमन्ना रखने वाला इनसान अपने कदमों को चांद तक ले जाने की शौर्य गाथा लिख चुका है। चांद का सौंदर्य व निखार जितना मन-भावन है, उतनी ही हमारी पृथ्वी आकाश की ऊंचाइयों से सुंदर दिखाई देती है। वर्तमान संदर्भ में अगर हम बात करें, तो धीरे-धीरे मानव ने सौंदर्य से ओतप्रोत धरा पर कचरे के अंबार लगाने शुरू कर दिए हैं, जिसमें पोलिथीन विनाशक प्रभाव रखता है। मानव पोलिथीन के निपटारे के लिए आए दिन अपनी प्रतिक्रियाएं देता रहता है, परंतु इसके प्रति आमजन कितना संवेदनशील है, यह पोलिथीन की निरंतर कूड़े के ढेरों में मौजूदगी अपनी कहानी स्वयं व्यक्त कर जाती है। चलिए, धरा का स्वरूप बिगाड़ने वाले इस विचारणीय पोलिथीन के विकृत प्रभाव पर नजर डालते हैं और कैसे जाने-अनजाने हम पोलिथीन से खेलने का दृश्य दिनचर्या में देखते रहते हैं। पहले तो बात समस्या के उस पहलू की करना ज्यादा उचित होगा कि किस तरह हम पोलिथीन संग अन्य कचरा इधर-उधर फेंकने के अभ्यस्त हो चले हैं। हां, नजर बचाकर हम खेल-खेल में कचरे को पोलिथीन की थैलियों में समेट कर यहां-वहां बरसाने के क्रम को जारी रखे हुए हैं।

इसमें संदेह नहीं है कि सफाई अभियानों के चलते हम कचरे के निष्पादन के लिए सोचनशील होने का अभिनय करते हैं। आज हम कचरे को जरूर कूड़ेदानों की मौजूदगी में घर की गंदगी वहां तक पहुंचा देते हैं, परंतु जहां कूड़ेदान घरों से दूरी पर व्यवस्थित होते हैं, वहां कचरे को आराम से पोलिथीन में समेटकर आगे चल देते हैं। हां, वह समय सुबह का हो या दोपहर का, जब हम किसी कार्यवश घर से बाहर निकलते हैं, तो अधिकतर उन्हें ठिकाने लगाने की कशमकश में वीरान इलाकों या नदियों के प्रवाहों में प्रवाहित कर आते हैं। हिमाचल प्रदेश में दो अक्तूबर, 2009 को तत्कालीन सरकार ने प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाते हुए प्रदेश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त करने का बीड़ा उठाया था, जिसमें बड़े जोर-शोर से इस पहल को सभी राज्यों में सराहना भी मिली। प्रदेश में प्रतिबंधित प्लास्टिक पोलिथीन के बावजूद पड़ोसी राज्यों की औद्योगिक इकाइयों व थोक विक्रेताओं के सामान सहित अपनी पहुंच बनाता रहा है। हालांकि प्रतिबंध का असर शुरुआती दौर में जरूर देखने को मिला। धीरे-धीरे यह कचरा किसी भी रूप में हमारे घरों, दुकानों से बाहर निकल कर हमारे प्रदेश को बदरंग करने की तरफ अग्रसर हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी ओकओवर शिमला में पोलिथीन हटाओ, पर्यावरण बचाओ अभियान के शुभारंभ पर प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय बताया। प्लास्टिक कचरे के निष्पादन के लिए सरकार ने प्लास्टिक कचरे से ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए परियोजनाओं को शुरू करने का आह्वान भी किया। शिमला में इस प्रकार का संयंत्र स्थापित भी किया जा चुका है और कुल्लू या बद्दी में भी इसे स्थापित किया जा रहा है। ऐसे में उन संयंत्रों तक कचरा पहुंचाने के क्रम में आम जनमानस का सहयोग ही संभावित नतीजे ला सकता है। पर्यटन नगरी के रूप में विख्यात हिमाचल में इस तरह की शुरुआत जरूर असर दिखाएगी। हमारी सड़कें और बाजार बदरंग नजर न आएं, इसके लिए पर्यटन संग स्वास्थ्य की दृष्टि से पर्यावरण को सुंदर व स्वच्छ रखने की जरूरत है। इसमें संदेह नहीं है कि आज बहुतायत में प्लास्टिक कचरा दूध के पैकेटों, चिप्स, बै्रड व अन्य उत्पादों में मिलकर प्रदेश में पहुंच बना रहा है। पर्यावरण अनुकूल पैकिंग मैटीरियल व अन्य वस्तुओं के लिए भी ऐसी पहल करना शायद कोई समस्या नहीं है, परंतु इसके लिए सख्त रवैये संग स्वच्छ सोच का दायरा बढ़ाना आवश्यक है। मैं तो समझता हूं कि मानव तो उपलब्ध वस्तुओं के उपभोग व प्रयोग की अंतिम कड़ी है, तो वहीं से कचरा अगला रुख लेता है। अगर औद्योगिक इकाइयां व विक्रेता उन्हें उपभोग की प्रक्रिया तक पहुंचाने में मानव तक प्लास्टिक का हस्तांतरण न करें, तो समस्या काफी हद तक सुलझ सकती है। बाजार मानव के लिए वर्तमान में एक ऐसा केंद्र है, जहां से सामान का अग्रिम परिचालन होता है। वस्तुओं की पैकिंग अगर पर्यावरण अनुकूल होगी, तो परिवर्तन का रुख परिणामों में बेहतरी ला सकता है।

घर-घर तक पहुंच बनाने वाले चिप्स व अन्य पदार्थ आज बच्चों तक किस रूप में पहुंचते हैं, इससे सब वाकिफ हैं। खानपान के इस परिवर्तन संग उपयोगकर्ता कचरे को जहां भी डालता है, वह वहां व्यवस्थित नहीं रह पाता है। हवा के रुख संग उड़ते रैपर घरों की नालियों को ही बदरंग नहीं करते, बल्कि सुंदर वाटिकाओं, खेल के मैदानों व सुंदर स्थलों को बदसूरत बनाने में अपनी भूमिका अदा कर जाते हैं। आज व्यक्ति को सशक्त इरादों संग परिवर्तन लाने में अपनी भूमिका अदा करने की जरूरत है। व्यक्ति या तो प्लास्टिक में लिपटे खाद्य पदार्थों से तौबा कर ले या जरूरी पदार्थों में लिपटे पोलिथीन या प्लास्टिक को संभाल कर रखते हुए पूर्ण निष्पादन के लिए कचरा निष्पादन संयंत्रों के हवाले करने की भूमिका जरूर असर दिखाएगी। इसकी पहल पंचायत स्तरों पर पूर्ण गंभीरता संग करने की आवश्यकता है। बरसात का मौसम कचरे में विशेषकर पोलिथीन का असर हर वर्ष दिखाता रहता है। पोलिथीन कचरे की वजह से अवरुद्ध हुई नालियां, गलियां, सड़कें, घरों व आने-जाने वालों के लिए सिरदर्द बन जाती हैं। गंदे पानी का रुका प्रवाह पोलिथीन की क्रूरता की कहानी स्वयं व्यक्त कर जाता है।

बरसात में गलियों में बरसात की फुहार के आनंद लेते हमारे बच्चे छपाक-छपाक उसी गंदे पानी से सने हुए बीमारियों को दावत दे जाते हैं। ऐसे में आज पोलिथीन कचरे की बदरंग भूमिका को नजरअंदाज करने के बजाय इससे छुटकारा पाने की परिपाटी को ज्यादा बल देने की आवश्यकता है। औद्योगिक इकाइयों को पर्यावरण अनुकूल पैकिंग पदार्थों को पहल देते हुए प्रदेश व देश की सुंदरता निखारने के लिए अपनी मजबूत शुरुआत के लिए संकल्प लेना चाहिए। वहीं जनजागृति के संदेश संग जनमानस को प्रकृति पर्यावरण संरक्षण की अपनी शपथ को साकार रूप देते हुए पोलिथीन व प्लास्टिक उत्पादों संग लिपटे उत्पादों को बाय-बाय कहना चाहिए।


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