प्रशासकीय ट्रिब्यूनल को बंद करने का निर्णय कर्मचारियों के हितों के खिलाफ 

 कुल्लू —मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में हिमाचल मंत्रिमंडल द्वारा प्रशासकीय ट्रिब्यूनल को भंग करने का निर्णय हजारों सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के हितों के विरुद्ध लिया गया एक दुखद निर्णय है।  सुदर्शन पठानिया ने  कहा कि कर्मचारियों को माननीय उच्च न्यायालय के चक्कर काटने पड़ेंगे, जहां पहले ही मुकदमों का भारी बोझ है। इस निर्णय से उन कर्मचारियों को बहुत ही नुकसान होने वाला है, जिनके मामले अंतिम स्टेज पर फैसले के लिए थे। क्योंकि उच्च न्यायालय द्वारा पुनः सुनवाई की जानी है, जिसमें कई वर्ष लग जाएंगे और कर्मचारियों को जो लाभ मिलने थे। उनसे भी वंचित रह जाएंगे । कई सेवानिवृत्त कर्मचारी तो अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर हं,ै जिन्हें अब शायद अपने जीवन काल में फैसला नजर नहीं आता है और वे सरकार के इस कर्मचारी विरोधी फैसले से आहत हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब- जब सत्ता में आई है। उसने कर्मचारी विरोधी निर्णय लिए हैं। सरकार और फिर चाहे शांता कुमार की हो या धूमल की हो और अब तो जयराम ठाकुर की सरकार भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलकर कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात कर रही है। वर्तमान सरकार ने चुनावी वेला में नुकसान को देखते हुए चुनावों के वक्त इस निर्णय को ठंडे बस्ते में डाला था अन्यथा यह निर्णय चुनाव से पहले सरकार ने किया होता तो भाजपा को करारी हार का मुंह देखना पड़ता। सरकार ने कुछ कर्मचारी नेताओं तथा आईएसएस लाबी की सलाह पर जो निर्णय लिया है। उसका खामियाजा सरकार को आगे भुगतना पड़ेगा। सेवानिवृत्त कर्मचारी सरकार से मांग करते हैं कि इस कर्मचारी विरोधी निर्णय पर पुनर्विचार करें और कर्मचारियों के हितों को देखते हुए प्रशासकीय ट्रिब्यूनल को बहाल करें।