बैंकों में सुधार का परिदृश्य

By: Jul 15th, 2019 12:06 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

निस्संदेह सरकारी बैंकों में जहां नई पर्याप्त पूंजी बैंकिंग सुधार के लिए जरूरी है, वहीं छोटे और कमजोर बैंकों का एकीकरण देश के नए बैंकिंग दौर की जरूरत है। इस नए बैंकिंग दौर की यह भी जरूरत है कि पुनर्पूंजीकरण पर उपयुक्त निगरानी और उपयुक्त नियंत्रण रखा जाए। बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के साथ-साथ देश के विभिन्न सरकारी बैंकों को कोई आठ बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों के रूप में आकार देने की उपयुक्त रणनीति भी लाभप्रद होगी…

हाल ही वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर (एसएंडपी) ने भारत के बैंकिंग परिदृश्य पर प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2019-20 के बजट के तहत सरकारी बैंकों (पीएसबी) में 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी डालने का भारत सरकार का फैसला देश के बैंकिंग क्षेत्र के लिए क्रेडिट पॉजिटिव है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय बजट 2019-20 में पूंजी डालने के प्रस्ताव से सरकारी बैंकों को उद्योग-कारोबार को दिए जाने वाले कर्ज के मामले में आवश्यक लाभ मिलेगा और उन्हें अपनी पूंजी पर्याप्तता बढ़ाने में मदद मिलेगी। सरकार के इस कदम से कुछ बैंक भारतीय रिजर्व बैंक के त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) से बाहर आ सकते हैं और वे अपना बही-खाता दुरुस्त करने के लिए कर्ज देना शुरू कर सकते हैं। यह भी कहा गया है कि सरकारी बैंकों को जोखिम प्रबंधन, सेवा की गुणवत्ता, कुशलता और उत्पाद की पेशकश में विविधता को लेकर पर्याप्त सुधार करने की जरूरत है। गौरतलब है कि पिछले दिनों पांच जुलाई को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट प्रस्तुत करते समय वित्त वर्ष 2019-20 में सरकारी बैंकों की वित्तीय ताकत बढ़ाने और उधारी क्षमता में इजाफा करने के लिए 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी डालने का प्रावधान किया है। पिछले पांच वर्षों में 2014-15 से 2018-19 तक सरकारी बैंकों में 3.19 लाख करोड़ रुपए की पूंजी डाली जा चुकी है। इसका लाभ भी दिखाई दे रहा है।

मार्च 2018 की तुलना में मार्च 2019 में सरकारी बैंकों में फंसा हुआ कर्ज (एनपीए) कम हुआ है। अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि सरकार द्वारा सरकारी बैंकों में जो अतिरिक्त पूंजी डाली जा रही है, उससे बैंकों में एनपीए के लिए प्रावधान में सुधार लाने में मदद मिलेगी। ऐसे में वर्ष 2019 के बाद सरकारी बैंकों को बहुत ज्यादा बाहरी पूंजी की जरूरत नहीं होगी। जहां सरकारी बैंकों में पुनर्पूंजीकरण लाभप्रद है, वहीं सरकारी बैंकों के एकीकरण से बड़े और मजबूत बैंक भी लाभप्रद दिखाई दे रहे हैं। पिछले दिनों वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में सरकार द्वारा छोटे-छोटे बैंकों के एकीकरण से बड़े और मजबूत बैंक बनाया जाना देश के बैंकिंग परिदृश्य की जरूरत है। विगत अप्रैल 2019 में बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक के विलय के बाद भारत के सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ बड़ौदा दूसरा सबसे बड़ा बैंक बन गया है। निश्चित रूप से अब बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक के विलय के बाद बड़े एवं मजबूत सरकारी बैंक की डगर आगे बढ़ेगी। उल्लेखनीय है कि छोटे बैंकों को बड़े बैंक में मिलाने का फार्मूला केंद्र सरकार पहले भी अपना चुकी है। कोई दो वर्ष पहले एक अप्रैल, 2017 को एसबीआई के पांच सहायक बैंकों और भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) का एसबीआई में विलय किया गया था। भारत में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जैसे बड़े बैंकों में सहायक बैंकों के विलय से उद्योग-कारोबार व विभिन्न वर्र्गों की कर्ज की जरूरतें पूरी हुई हैं। ऐसे में इन दिनों देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञ यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि भारत में सरकारी बैंकों का बुरा समय समाप्त होने जा रहा है। ऐसे में देश और दुनिया के अर्थविशेषज्ञों का कहना है कि सरकार द्वारा छोटे और कमजोर बैंकों के साथ मजबूत बैंकों का एकीकरण देश की जरूरत है। भारत में बैंकों की जन हितैषी योजनाओं के संचालन संबंधी भूमिका के कारण सरकारी बैंकों के निजीकरण की बजाय सरकारी बैंकों में नई जान फूंकने के लिए और अधिक प्रयास जरूरी हैं। वस्तुतः छोटे-छोटे सरकारी बैंकों का एकीकरण तथा सरकारी बैंकों में पुनर्पूंजीकरण का कदम एक बड़ा बैंकिंग सुधार है। इससे सरकारी बैंकों को दोबारा सही तरीके से काम करने का अच्छा मौका मिल रहा है। चूंकि सरकार की जनहित की योजनाएं सरकारी बैंकों पर आधारित हैं, ऐसे में मजबूत सरकारी बैंकों की जरूरत स्पष्ट दिखाई दे रही है। देशभर में चल रही  विभिन्न कल्याणकारी स्कीमों के लिए धन की व्यवस्था करने और उन्हें बांटने की जिम्मेदारी सरकारी बैंकों को सौंप दी गई है। सरकारी बैंकों द्वारा एक ओर मुद्रा लोन, एजुकेशन लोन और किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए बड़े पैमाने पर कर्ज बांटा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर बैंकरों को लगातार पुराने लोन की रिकवरी भी करनी पड़ रही है। परिणामस्वरूप बैंक आफिसर अपने मूल काम यानी कोर बैंकिंग के लिए बहुत कम समय दे पा रहे हैं। चूंकि बीमा या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ लेने के लिए बैंक खाता जरूरी है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधाओं की भारी कमी है।

वित्त मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार तीन जुलाई, 2019 तक जनधन योजना के तहत 36.06 करोड़ खाते हैं। इन बैंक खातों में जमा राशि एक लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर गई है। ऐसे में भारत की नई बैंकिंग जिम्मेदारी बैंकों के निजीकरण से संभव नहीं है। अतएव ऐसी जिम्मेदारी मजबूत सरकारी बैंक द्वारा ही निभाई जा सकती है। निस्संदेह सरकारी बैंकों में जहां नई पर्याप्त पूंजी बैंकिंग सुधार के लिए जरूरी है, वहीं छोटे और कमजोर बैंकों का एकीकरण देश के नए बैंकिंग दौर की जरूरत है। इस नए बैंकिंग दौर की यह भी जरूरत है कि पुनर्पूंजीकरण पर उपयुक्त निगरानी और उपयुक्त नियंत्रण रखा जाए। बैंकों को दी गई भारी-भरकम नई पूंजी के आबंटन की उपयोगिता और प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करेगी कि बैंक इसका इस्तेमाल कितने प्रभावी ढंग से करेंगे और फंसे हुए कर्ज से कैसे निपटेंगे, साथ ही बैंकों के पुनर्पूंजीकरण से देश की दोहरी बैलेंस शीट की समस्या भी हल होगी। बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के साथ-साथ देश के विभिन्न सरकारी बैंकों को कोई आठ बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों के रूप में आकार देने की उपयुक्त रणनीति भी लाभप्रद होगी। ऐसा होने पर ही बैंकों में नए निवेश से सभी प्रकार के छोटे-बड़े उद्योग-कारोबार के साथ-साथ आम आदमी भी लाभान्वित होंगे।

साथ ही सरकारी बैंक मजबूत बनकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था को गतिशील कर सकेंगे। हम आशा करें कि वर्ष 2019-20 के नए बजट में इस वित्तीय वर्ष के दौरान सरकारी बैंकों में 70,000 करोड़ रुपए के पुनर्पूंजीकरण से सरकारी बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी, ग्राहक सेवा बेहतर होगी और डूबते ऋण नहीं बढ़ेंगे। हम आशा करें कि सरकार पुनर्पूंजीकरण  के साथ-साथ कमजोर और मजबूत सरकारी बैंकों के एकीकरण की डगर को आगे भी जारी रखेगी, ताकि बैंकिंग सुधारों को दिशा दी जा सके।


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