राजा विजय सिंह को बिठाया था हिंदूर की गद्दी पर

By: Jul 10th, 2019 12:03 am

मान चंद को उसके चाचा पदम चंद ने धोखे से मार दिया। पदम चंद को इसका दंड देने के लिए कहलूर के राजा देवी चंद (1741-1778) ने बघाट के राणा रघुनाथ पाल से सहायता मांगी। इसके कारण पदम चंद जरजोहरू के पास लड़ाई में मारा गया। इसके पश्चात कहलूर के राजा ने विजय सिंह को हिंदूर की गद्दी पर बैठाया…

गतांक से आगे …

 रघुनाथ पाल (72वें) के समय में हिंदूर राजपरिवार में एक कलब मच गई। इस समय हिंदूर मेंराजा मान चंद (1756-1761) का राज था। मान चंद को उसके चाचा पदम चंद ने धोखे से मार दिया। पदम चंद को इसका दंड देने के लिए कहलूर के राजा देवी चंद (1741-1778) ने बघाट के राणा रघुनाथ पाल से सहायता मांगी। इसके कारण पदम चंद जरजोहरू के पास लड़ाई में मारा गया। इसके पश्चात कहलूर के राजा ने विजय सिंह को हिंदूर की गद्दी पर बैठाया। इस घटना को हिंदूर का इतिहास कुछ और प्रकार से प्रस्तुत करता है, जो उस राज्य के इतिहास के अंतर्गत दिया गया। रघुनाथ पाल के पश्चात उसका पुत्र दलील सिंह राणा बना। उसने अपने नाम के साथ पला के उपनाम को छोड़ कर सिंह लगाना आरंभ किया। दलील सिंह के समय में धर्मपुर और टकसाल महत्त्वपूर्ण स्थान थे। उस समय टकसाल एक बहुत बड़ा व्यापारिक केंद्र था। यहां अदरक, हल्दी, आदि का अच्छा व्यापार होता था। ये वस्तुएं यहां पर सिरमौर और बघाट के क्षेत्र से आती थीं। दलील के समय में हिंदूर ने बघाट पर आक्रमण किया। यह लड़ाइ्र कहीं धर्मपुर के पास हुई। इसमें दलील सिंह मारा गया।

राणा महेंद्र सिंह (1839 ई.)

राणा महेंद्र सिंह (1839 ई.) के समय में हिंदूर का राजा रामसरन सिंह (1788-1848 ई.) था। कहलूर में महानचंद था जो  1778 ई. में गद्दी पर बैठते समय छह वर्ष का था। राम सरन सिंह ने गद्दी पर बैठने के पश्चात 1790 ई. में कहलूर के साथ विवाद खड़ा कर दिया और  बिलासपुर नगर को जला दिया। इस स्थिति से लाभ  उठाकर बघाट ने अपने आपको कहलूर के आधिपत्य से मुक्त कर दिया। परंतु उसके साथ मैत्री संबंध बनाए रखे।

कहलूर ने कांगड़ा और हिंदूर से अपने झगड़े निपटाने के लिए गोरखा सेनानी अमर सिंह थापा  से सहायता मांगी। इसके परिणाम स्वरूप गोरखों ने 1805 ई. में कांगड़ा पर आक्रमण किया। कांगड़ा के महाराजा संसार चंद  ने कांगड़ा  किला में शरण ली। अंत में  1809 ई. में उसने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की सहायता से गोरखों को सतलुज से पीछे धकेल दिया। चूंकि कहलूर बारह ठकुराईयों पर अपना प्रभुतव्ज्ञ जताता था और  बघाट उसकी एक सहयोगी ठकुराई थी, इसलिए ये सब गारेखों के आधिपत्य में आ गई। बघाट को उन्होंने अपना करद राज्य बनाया और महेंद्र सिंह से वे  खिराज लेते रहे। महेंद्र सिंह ने अमर सिंह थापा  से अपने पारिवारिक संबंध  भी स्थापित किए।

सन 1814 -14 के गोरखा युद्ध के समय बघाट के राणा का व्यवहार अंग्रेजों के साथ मैत्रीपूर्ण नहीं रहा। युद्ध की समाप्ति पर  अंग्रेजों  ने अपने कथन के अनुसार पहाड़ी राजाओं , राणाओं और ठाकुरों को सनद द्वारा  उनके राज्य पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए वापस लौटा दिया।


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