लेफ्ट-राइट सभी कर रहे मोदी सरकार की विनिवेश नीति का विरोध, बड़े आंदोलन की तैयारी

By: Jul 17th, 2019 11:46 am

RSS से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ भी कर रहा विनिवेश का विरोध मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी के पहले साल में ही सार्वजनिक कंपनियों (PSU) के विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इनमें से कुछ कंपनियां बीमार हैं, तो कुछ मुनाफे में भी हैं. लेकिन अब सरकार की इस विनिवेश नीति का विरोध शुरू हो गया है. वामपंथी ट्रेड यूनियन तो इसका विरोध कर ही रहे हैं, RSS का आनुषांगिक संगठन भारतीय मजदूर संघ (BMS) भी इसके खिलाफ खड़ा हो गया है.

BMS ने कहा है कि विनिवेश के मसले पर वह किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा. कुछ ट्रेड यूनियन ने तो इसके विरोध में बड़े आंदोलन की तैयारी भी शुरू कर दी है. गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के कंपनियों की ‘रणनीतिक विनिवेश’ करेगी. इसका मतलब यह है कि सरकारी कंपनी का हिस्सा पूरी तरह से निजी हाथों में दे दिया जाएगा.

अभी सरकार की कोशिश ये होती है कि सरकारी कंपनी का विनिवेश कर उसमें एलआईसी या एसबीआई जैसे पीएसयू से शेयर खरीद ली जाए. यहां निजीकरण और विनिवेश के अंतर को समझना जरूरी है. निजीकरण में सरकार अपने 51 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है, जबकि विनिवेश की प्रक्रिया में वह अपना कुछ हिस्सा निकालती है, लेकिन उसकी मिल्कियत बनी रहती है.

नीति आयोग ने विनिवेश के लिए 40 केंद्रीय पीएसयू की सूची तैयार की है. इनमें फायदे वाली कई सरकारी कंपनियां भी हैं. नीति आयोग की विनिवेश सूची में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, भारत हैवी इलेक्ट्र‍िकल्स, एयर इंडिया और महानगर टेलीफोन लिमिटेड शामिल हैं.

वामपंथी पार्टियों ने इसके विरोध में व्यापक हड़ताल की धमकी दी है. सीटू के महासचिव तापस सेन ने आजतक-इंडिया टुडे से कहा, ‘सरकार जानबूझ कर यह कर रही है. उसने पहले तो पीएसयू को आर्थि‍क मुश्किल में डाला और अब उनको बेचने का माहौल बना रही है. यह राष्ट्रीय हितों के साथ खिलवाड़ है.’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने राजधानी दिल्ली में 15 नवंबर को सीपीएसई वर्कर्स यूनियनों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया है. बीएमएस के अध्यक्ष साजी नारायण ने कहा, ‘हम सिर्फ विरोध के लिए विरोध नहीं करना चाहते. हम सरकार से बातचीत करना चाहते हैं. हम उन्हें समय देना चाहते हैं, क्योंकि अभी सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू ही हुआ है. लेकिन विनिवेश के मसले पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा.’  

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि टैक्स वसूली लक्ष्य से कम होने की वजह से सरकार विनिवेश कार्यक्रम को तेज करना चाहती है. देश में बेरोजगारी की दर काफी ऊंची है ऐसे में विनिवेश की वजह से नौकरियों की स्थ‍िति और खराब होगी.

मोदी सरकार के मंत्री अरविंद गणपत सांवत ने हाल ही में संसद में बताया था कि 28 कंपनियों के विनिवेश की मंजूरी दी जा चुकी है. इसके कुल 19 कंपनियां ऐसी हैं  जिन्‍हें बंद करने की सरकार ने मंजूरी दी है. ये सभी कंपनियां घाटे में चल रही हैं.

सरकार के इस कदम का दर्जनों केंद्रीय सार्वजनिक उद्यमों के (CPSE) कर्मचारियों में व्यापक विरोध शुरू हो गया है. ट्रेड यूनियनों ने मोदी सरकार के इस निर्णय का विरोध करना शुरू कर दिया है. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (DLW) के कामगारों ने सरकार को चेतावनी दी है कि वह 15 दिन के भीतर रेल कोच कारखानों के निजीकरण पर पुनर्विचार करे.

DLW वर्कर्स यूनियन के नेता विष्णु देव दुबे ने कहा, ‘चुनाव प्रचार के दौरान हमारे ही ग्राउंड में मोदी जी ने वादा किया था कि वह रेलवे का निजीकरण नहीं होने देंगे और अब वह इसका उलटा कर रहे हैं. हमने अपने विरोध प्रदर्शन को 15 दिन के लिए रोक रखा है. यदि हमारी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया तो हम संयुक्त रूप से विरोध शुरू करेंगे.’ 

1974 जैसे बड़े आंदोलन की धमकी

पंजाब के कपूरथला में रेल कोच कारखाने के कामगार तो 1974 जैसा बड़ा आंदोलन करते हुए ट्रेनों का संचालन रोकने की धमकी दे रहे हैं. कारखाने के यूनियन लीडर के नेता सर्वजीत सिंह ने कहा, ‘हमारा कारखाना मुनाफे में है, मोदी सरकार सभी प्रोडक्शन यूनिट को एक कंपनी में बदलकर इसे निजी हाथों में बेचने की तैयारी कर रही है. हम इसे होने नहीं देंगे और जरूरत पड़ी तो हम 1974 जैसा ही ट्रेनों का चलना रोक देंगे.’ 

पश्चिम बंगाल के चितरंजन और तमिलनाडु में सालेन के सेल स्टील प्लांट में ही इसी तरह का विरोध प्रदर्शन हो रहा है. गौरतलब कि सन 1974 में न्यूनतम बोनस देने की मांग को लेकर भारतीय रेल के कर्मचारियों द्वारा 20 दिन की हड़ताल की गई थी. इस हड़ताल में 17 लाख कर्मचारियों ने भाग लिया था और यह अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल है. इसका नेतृत्व जॉर्ज फर्नांडीज ने किया था जो उस समय इंडिया रेलवे मेन्स फ़ेडरेशन के अध्यक्ष थे. बीस दिन चली रेल हड़ताल से पूरे देश में हाहाकार मच गया था.  


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