विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Jul 20th, 2019 12:05 am

निःसंदेह युग के महान दार्शनिकों में से रूसो और मार्क्स की भांति ही फ्रैडरिक नीत्से की भी गणना की जाए। इन तीनों ने ही समय की विकृतियों को और उनके कारण उत्पन्न होने वाली व्यथा-वेदनाओं को सहानुभूति के साथ समझने का प्रयत्न किया है। अपनी मनःस्थिति के अनुरूप उपाय भी सुझाए हैं। अपूर्ण मानव के सुझाव भी अपूर्ण ही हो सकते हैं…

-गतांक से आगे….

निःसंदेह युग के महान दार्शनिकों में से रूसो और मार्क्स की भांति ही फ्रैडरिक नीत्से की भी गणना की जाए। इन तीनों ने ही समय की विकृतियों को और उनके कारण उत्पन्न होने वाली व्यथा-वेदनाओं को सहानुभूति के साथ समझने का प्रयत्न किया है। अपनी मनःस्थिति के अनुरूप उपाय भी सुझाए हैं। अपूर्ण मानव के सुझाव भी अपूर्ण ही हो सकते हैं। कल्पना और व्यवहार में जो अंतर रहता है, उसे अनुभव के आधार पर क्रमशः सुधारा जाता है। यही उपरोक्त प्रतिपादनों के संबंध में भी प्रयुक्त होना चाहिए, हो भी रहा है। शासनतंत्र पिछले दिनों निरंकुश राजाओं और सामंतों के हाथ चल रहा था, उनके स्वेच्छाचार का दुष्परिणाम निरीह प्रजा को भुगतना पड़ता था, प्रजातंत्र का, तदुपरांत साम्य तंत्र का विकल्प सामने आया। बौद्धिक जगत में ईश्वर की मान्यता सबसे पुरानी और सबसे सबल और लोक-समर्थित होने के कारण बहुत प्रभावशाली रही थी। वह मानव तंत्र को दिशा देने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका संपादित करती है, किंतु दुर्भाग्य यह है कि ईश्वरवाद के नाम पर भ्रांतियों का इतना बड़ा जाल-जंजाल खड़ा कर दिया गया है, जिससे आस्तिकवादी दर्शन का मूल प्रयोजन ही नष्ट हो गया। निहित-स्वार्थों ने भावुक जनता का शोषण करने में कोई कसर न रखी। इतना ही नहीं, अनैतिक और अवांछनीय कार्यों को भी, ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, करने के विधान बन गए। राजतंत्र की दुर्गति ने जिस प्रकार रूसो और मार्क्स को उत्तेजित किया, ठीक वैसी ही चोट ईश्वरवाद के नाम पर चल रही विकृतियों ने नीत्से को पहुंचाई। उसने अनीश्वरवाद का नारा बुलंद किया और जनमानस पर से ईश्वरवाद की छाया उतार फेंकने के लिए तर्कशास्त्र और भावुकता का खुलकर प्रयोग किया। उसने जन-चेतना को उद्बोधन करते हुए कहा-‘ईश्वर की सत्ता मर गई, उसे दिमाग से निकाल फेंको, नहीं तो शरीर पूरी तरह गल जाएगा। स्वयं को ईश्वर के अभाव में जीवित रखने का अभ्यास डालो। अपने पैरों पर खड़े होओ। अपनी उन्नति आप करो और अपनी समस्याओं का समाधान आप ढूंढो। अपने सत् को अपनी इच्छा शक्ति से स्वयं जगाओ और उसे ईश्वर की सत्ता के समकक्ष प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत करो। अतिमानव बनने की दिशा में बढ़ो, पर जमीन से पांव उखाड़कर, आसमान में मत उड़ो। वस्तुस्थिति की उपेक्षा कर, कल्पना के आकाश में उड़ोगे, तो तुम्हारा भी वही हश्र होगा, जो ईश्वर का हुआ है।’ 

 (यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा

द्वारा रचित किताब ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं)


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