शहनाज को ट्राउजर पकड़कर पूरा करना पड़ा डांस

By: Jul 20th, 2019 12:05 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है सोलहवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

उनकी टीम को निर्देश थे कि उन्हें शहनाज के स्टेप्स का ही अनुकरण करना है। परफार्मेंस के बीच में शहनाज को अहसास हुआ कि उनके ट्राउजर की इलास्टिक टूट गई है। लेकिन वह स्टेज पर हार मानने वालों या बीच में अपना काम छोड़कर जाने वालों में से नहीं थीं, तो वह हाथों से पेंट पकड़कर ही बाकी स्टेप्स करने लगीं। अब उनकी देखा-देखी पीछे वालों ने भी वैसा ही किया और कुछ ही देर में हाल उस बहादुर बच्ची की प्रशंसा में तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, जिसने अपनी सूझबूझ से न सिर्फ पूरी परफार्मेंस को संभाला था, बल्कि नेतृत्व और फाइटर के गुणों को भी बखूबी दिखाया था। उस दौरान, नसीरुल्ला बेग, जो लखनऊ के जाने-माने वकील बन गए थे, को इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के पद का प्रस्ताव दिया गया। नई नियुक्ति नसीरुल्लाह की मनोदशा के अनुकूल थी, वैसे भी सईदा के बिना उस घर में रहना उनके लिए बेहद तकलीफदेह था, तो उन्होंने फौरन उस अवसर को स्वीकार कर लिया। घर बदलने के सिलसिले में उन्हें लगातार एक शहर से दूसरे शहर में जाना पड़ रहा था। ऐसे ही एक सफर में उन्होंने अपने साथ जैनी को भी ले जाने का फैसला कर लिया, ताकि वह उनके साथ इलाहाबाद में ही रह सके। वह खुशी-खुशी उनके साथ ट्रेन में जा रही थी। हर स्टेशन पर वह खिड़की से बाहर देखती। जब ट्रेन नवाबगंज स्टेशन पर रुकी, तो नसीरुल्ला बेग ने अपनी घड़ी देखी, शाम के छह बज गए थे। वह चाय पीने के लिए स्टेशन पर उतरे, उन्हें उतरता देख जैनी भी अपनी पूंछ हिलाते हुए उनके पीछे-पीछे उतर गई। अपने मालिक की तरह ही वह भी अपने पैरों को स्ट्रेच करने लगी। जस्टिस बेग ने उसे प्यार से थपकी लगाई। वे दोनों ढलते सूरज की रौशनी में, उजाड़ स्टेशन पर टहलने लगे, जब तक कि स्टेशन मास्टर ने ट्रेन चलने के लिए सीटी नहीं बजाई। जस्टिस बेग जल्दी से अपने कंपार्टमेंट के गेट पर चढ़ गए, जैसे ही वह चढ़े, लोहे के भारी पहियों ने हिलना शुरू कर दिया। कानफोड़ू आवाज लगातार बढ़ती ही जा रही थी। इंजन भी घुरघुरा रहा था, जबकि छोटा सी जैनी इतनी आवाज से डरकर रुक गई। वह ट्रेन के पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। जस्टिस बेग ने तब पलटकर देखा, जब उनके हाथों से पट्टा फिसलने लगा। ‘जैनी आओ, आओ जैनी’, उन्होंने लाचारी से कहा, जैनी समझ नहीं पा रही थी कि दौड़कर उनकी तरफ जाए, या डरकर पीछे ही खड़ी रहे। जस्टिस बेग ने जैसे-तैसे ट्रेन रुकवाई और जैनी की तलाश में लौटकर नवाबगंज स्टेशन पर आए, लेकिन जैनी उन्हें कहीं दिखाई नहीं दी।  


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