शिक्षा एकमात्र विकल्प और समाधान

By: Jul 23rd, 2019 12:05 am

शक्ति चंद राणा

लेखक, बैजनाथ से हैं

जिस शिक्षा के बल पर हमारे किसान बिन बादल बताने की काबिलीयत रखते थे कि आज बारिश होगी, उस दिव्य ज्ञान की आज बेहद जरूरत है। आज उसी तकनीक के बलबूते हमारे कृषि वैज्ञानिक अलग-अलग तरह की सब्जियां, फल, हर्बल्स से बनने वाली दवाइयां बनाने का काम करते आ रहे हैं। बजाय सफेदपोश नौकरी के लिए तैयारी करने के इन इच्छुक उम्मीदवार नवयुवकों को स्कूल स्तर पर ही हम ऐसे प्रशिक्षण देने के बारे विचार करें, जिन्हें पूरा करने पर बालक अपने माता-पिता पर निर्भरता कम कर सके। वह कुछ भी सीखे, मगर सीखे तो ऐसा कि बाजार उसे हाथों हाथ ले। आज बाजार दूध की मांग पूरी नहीं कर पा रहा। क्या हम नौजवानों को डेयरी के धंधे की ओर आकर्षित कर सकते हैं…

शिक्षा में सभी प्रकार की सामाजिक विषमताओं, बुराइयों, बीमारियों का समाधान निहित है। यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो शिक्षा सभी बीमरियों के लिए एकमात्र रामबाण है,  फिर भले वह अन्याय हो, बेरोजगारी हो, कानून की व्यवस्था लागू कर पाने की चुनौती हो। शिक्षा का मुख सफेदपोश नौकरी की ओर मोड़ दिया गया, तो लाखों करोड़ों में सफेदपोश पढ़े-लिखों की नौकरी तलाश करती सेना खड़ी हो गई। आईटीआई और बी. टेक की शिक्षा के द्वार खुल गए। इस अध्ययन से पता चला कि आप जो पढ़ाएंगे, वे पढ़ लेंगे, आप पढ़ाइए, तो सही। आने वाली बेरोजगारी की बढ़ती चुनौतियों का इस वास्ते यदि कोई समाधान है, तो वह भी शिक्षा में ही मौजूद मिलेगा। इसे आप शिक्षा कहें या प्रशिक्षण, पर है शिक्षा ही। जिस शिक्षा के बल पर हमारे किसान बिन बादल बताने की काबिलीयत रखते थे कि आज बारिश होगी, उस दिव्य ज्ञान की आज बेहद जरूरत है।

आज उसी तकनीक के बलबूते हमारे कृषि वैज्ञानिक अलग-अलग तरह की सब्जियां, फल, हर्बल्स से बनने वाली दवाइयां बनाने का काम करते आ रहे हैं। बजाय सफेदपोश नौकरी के लिए तैयारी करने के इन इच्छुक उम्मीदवार नवयुवकों को स्कूल स्तर पर ही हम ऐसे प्रशिक्षण देने के बारे विचार करें, जिन्हें पूरा करने पर बालक अपने माता-पिता पर निर्भरता कम कर सके। वह कुछ भी सीखे, मगर सीखे तो ऐसा कि बाजार उसे हाथों हाथ ले। आज बाजार दूध की मांग पूरी नहीं कर पा रहा। क्या हम नौजवानों को डेयरी के धंधे की ओर आकर्षित कर सकते हैं। आज हिमाचल में ऐसे कितने ही नवयुवक हैं, जो फूलों-फलों का अपने गांव में उत्पादन कर एक-दो महीने में उतना कमा रहे हैं, जितना एक साल में उसके स्तर का नहीं कमा पा रहे। समस्या अधिक पढ़-लिख जाने और सफेद कमीज की है। हम मेहनत नहीं करना चाहते। समस्या बनते हैं, समस्या का हल नहीं बनते, हम सरकार से उम्मीद करते हैं, वह हमें नौकरियां दे। इस स्वैच्छिक बेकारी का परिणाम है कि हम नशे के गर्त में आइडल रह कर अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। मेहनतकश आज भी हिमाचल से लाखों-करोड़ों कमा कर बिहार, उत्तर प्रदेश को मालामाल कर रहे हैं और यहां हम कहते हैं, काम ही नहीं है। बदल दीजिए एक ब्लॉक में दो स्कूलों को प्रशिक्षण संस्थान में। जो मैट्रिक या जमा दो के बाद कुछ सीखना चाहते हैं, उनको दाखिला दीजिए। एक-दो साल की थियोरी के साथ-साथ प्रशिक्षण फिर प्रैक्टिकल मार्केट में उतारिए, साथ गाइडेंस रखें। जब यकीन हो जाए, तो स्वतंत्र छोड़ दीजिए। दरिया में लाइफबैल्ट के बिना तैरने वाला ही सफल होता है। सहारे पर खड़ी दीवारें सहारा हटने के बाद कम ही टिकती हैं। अपने बलबूते खड़ा होने का प्रशिक्षण सरकार की जिम्मेदारी है। आगे का सफर वे खुद तय करें और कर भी लेंगे।  विदेशों में खासकर मिडल ईस्ट में युवक-युवतियों का निर्दयतापूर्ण शोषण हो रहा है।

सरकार को चाहिए हमारे बच्चे इस हनीट्रैप से बचें और अपना जीवन बर्बाद न करें। नौकरी का झूठा आश्वासन देकर उनको गुलामियत और वेश्यावृत्ति में धकेलने वालों के सुनहरे सब्जबाग वाली बातों में न आएं। यह काउंसिलिंग कालेज स्कूल लेवल पर टयूटर दें। नेटवर्किंग में भी करियर है, पर आपको यकीन करना पड़ेगा कि आप कैसी नेटवर्किंग संस्था में काम करने की सोच रहे हैं। जिसमें रिस्क कम है, तो जाहिर है कि पैसे भी कम मिलेंगे, पर यह सुरक्षित मानी जा सकती है। मान लीजिए जिसमें पैसा भारी मात्रा में है, पर वह आज नहीं तो कल आपको बीच में छोड़कर भागने वाली है।

इस अधिक लाभ लेने के चक्कर में ही लोग ठगे जाते हैं। जिंदगी का मोटा सा एक सूत्र है कि कामयाबी का कोई शार्टकट नहीं है। शार्टकट में रिस्क ही रिस्क है। छोटे काम करते समय अपना लक्ष्य धीरूभाई अंबानी जैसा रखिए, पकड़ बनाइए, संसाधन जुटाइए और अनुभव हासिल कीजिए। नए काम में सफलता जल्द नहीं मिलती। टिकना पड़ता है, समझना होता है। एक रुपया इनवेस्ट करने वाले के पास ग्राहक दो आने वाले ही आएंगे। हां, यदि आप हजार रुपए इनवेस्ट करते हैं, तो ग्राहक सौ रुपए तक के आ सकते हैं। लाख रुपए वाले के ग्राहक हजार वाले भी उमड़ सकते हैं। अपना अनुभव और जेब दोनों में संतुलन बनाएं। फिर धीरे-धीरे व्यापार में उतरें। सफलता आपके कदम चूमेगी। याद रखें  ‘इट्स एन आइडिया, दैट रूल्स ओवर दि वर्ल्ड।’

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।                                               

-संपादक


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