सावन में क्यों भोलेनाथ को है जल चढ़ाने का विधान

By: Jul 20th, 2019 12:05 am

भगवान शंकर ने विष का पान किया, जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया। इस वजह से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। विष पान करके सृष्टि की रक्षा करने के कारण सभी देवताओं ने भगवान शिव का गुणगान किया और उनको जल अर्पित किया, ताकि उस विष का प्रभाव और ताप कम हो सके और भगवान शिव को राहत मिले। इस कारण से ही भगवान शिव को सावन में जल चढ़ाया जाता है…

हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान शिव का प्रिय माह 16 जुलाई से शुरू हो गया है। इस बार सावन महीने में चार सोमवार पड़ रहे हैं। यह महीना भगवान शिव को अति प्रिय है। कहते हैं कि इस माह में भगवान की पूजा करने से मन की हर मुराद पूरी होती है।  सावन में देवों के देव महादेव भगवान शिव शंकर को जल चढ़ाने का विधान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में अगर भगवान शिव को केवल जल ही अर्पित कर दिया जाए, तो भी वह प्रसन्न हो जाते हैं।  भगवान शिव को जल क्यों चढ़ाया जाता है, इसकी वजह समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सावन मास में ही समुद्र मंथन हुआ था। समुद्र मंथन में सबसे पहले विष निकला था। अगर वो विष धरती पर आ जाता, तो पूरी सृष्टि संकट में आ जाती। किसी भी देव ने उस हलाहल विष का पान करने का साहस नहीं दिखाया था। देवों के देव महादेव ने उस विष का पान कर सृष्टि को बचाने का निर्णय लिया। भगवान शंकर ने उस विष का पान किया, जिसके कारण उनका कंठ नीला पड़ गया। इस वजह से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। विष पान करके सृष्टि की रक्षा करने के कारण सभी देवताओं ने भगवान शिव का गुणगान किया और उनको जल अर्पित किया ताकि उस विष का प्रभाव और ताप कम हो सके और भगवान शिव को राहत मिले। इस कारण से ही भगवान शिव को सावन में जल चढ़ाया जाता है। ऐसा करने से भक्तों को भोलेनाथ की विशेष कृपा मिलती है। एक दूसरी मान्यता यह भी है कि भगवान शिव सुसराल जाने के लिए सावन में ही पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। जब वे ससुराल पहुंचे तो उनका स्वागत जलाभिषेक से हुआ था, जिससे वे अत्यंत प्रसन्न हुए थे। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि वे हर वर्ष सावन माह में ससुराल आते हैं। ऐसे में भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त करने का यह उत्तम समय है। शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओें में से एक हैं। वेद में इन्हें रुद्र नाम से पुकारा गया है। यह चेतना के अंतर्यामी हैं और इनकी अर्द्धांगिनी मां पार्वती है। शिव के मस्तक पर चंद्रमा और जटाओं में मां गंगा का वास है। सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा की जाती है, लिंग सृष्टि का आधार है और शिव कल्याण के देवता हैं। वैसे तो शिव जी की पूजा में कोई विशेष नियम और बाध्यता नहीं है, क्योंकि शिव बहुत ही भोले हैं और भाव के भूखे हैं। इस महीने में शिव मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं। सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था में सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया।


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