सुख-दुख जीवन के पहलू
प्रेमचंद माहिल, भोरंज
‘दिव्य हिमाचल’ में ‘आप कितने सुखी हैं’ लेख पढ़ने को मिला। विचार सराहनीय हैं, परंतु मेरे विचार से इस संसार में सुखी वही इनसान है, जिसे आप पूछते नहीं। कुछ लोगों के लिए आप सोचते होंगे कि वे सुखी हैं, परंतु जब उनसे बात करते हैं, तो वे भी अपनी व्यथा से आपको अवगत करवाते हैं। गरीब व्यक्ति अपने गरीबी भरे जीवन से दुखी है, अधिकारी वर्ग अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा है। जनता प्रशासन से दुखी है। विद्वान व्यक्ति मूर्खों के दुर्व्यवहार से दुखी है। कुछ लोग कलियुगी औलाद से दुखी हैं। अर्थात सुख-दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो इस दुनियादारी से ऊपर उठकर सोच रखता है, वही सुखी है। होनी बलवान है, जो होना है, वह होकर रहता है, फिर सुख, दुख, प्रसन्नता, चिंता का आभास करने की क्या आवश्यकता? इसलिए हर कार्य का मूल्यांकन ज्ञान, विवेक, तर्क से करने का प्रयत्न करें। मन, कर्म, वचन से कोई ऐसा कार्य न करें, जिससे किसी की आत्मा को ठेस पहुंचे। यही सर्वसुखी समाज बनाने का गूढ़़ मंत्र है।
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