सुख-शांति के लिए नाचे देवी-देवता

कुल्लू—देवभूमि कुल्लू की देव परंपराएं अनोखी व अद्भूत है। यहां जहां लोग परंपराओं से बंधे हुए हैं। वहीं, देवी-देवता स्वयं रथों में विराजमान होकर अपने हारियानों को देवनृत्य करते हुए देव परंपराओं कायम रखने का आह््वान करते हैं। जी हां पुराने रिति-रिवाज के साथ सदियों से आ रही परंपरा के अनुसार बनोगी कोठी की दुर्गा माता और पुंडरीक ऋ षि ने जोलाई पर्व के दौरान देव नृत्य के साथ गूरवाणी के माध्यम से की गई भविष्यवाणी में नियमों को यथावत रखने का आह््वान किया। वहीं, सुख-शांति रखने के लिए भी दोनों देवी-देवताओं ने मंदिर, प्रांगण नहीं बल्कि पुरानी रीत अनुसार खेत में बने एक विशेष स्थान पर जाकर ढोल-नगाड़ों की थाप पर भव्य देव मिलन के साथ नृत्य किया। यह नृत्य मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा। बता दें कि हारियानों ने इस पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया। इस धार्मिक परंपरा के साक्षी सैकड़ों श्रद्धालु बने।  सैंज घाटी के चमन राणा ने बताया कि ढोल-नगाड़ों, करनाल, नरसिंगों की थाप से दियोहरी गांव गूंठा। इस जोलाई की परंपरा को देवता के मुख्य कारकूनों में मोहन लाल पालसरा और लोतम राम कारदार हर साल निभाते आ रहे हैं। इस दौरान धाम का भी आयोजन भी किया गया। वहीं, शाम के दौरान नाटी का आयोजन किया गया। पुराने रिति- रिवाज के हिसाब से पुरुष और महिलाएं ने नाटी में भाग लिया। इसके बाद रात्रि के समय कीर्तन-भजन हुआ। चमन राणा का कहना है कि दुर्गा माता और पुंडरीक ऋ षि ने गूर के माध्यम से भविष्यवाणी भी की। देवताओं ने गूरवाणी में मुख्य कारकूनों को इस पुरानी परंपरा को हमेशा कायम रखने रखने का आह््््वान किया।