सोने में तेजी के मायने

By: Jul 1st, 2019 12:06 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

 

निश्चित रूप से भारत जैसे विकासशील देश के लिए सोने में निवेश उत्पादक नहीं है। ऐसे में सोने की मांग घटाने के सार्थक प्रयास किए जाने जरूरी हैं। सोने की मांग घटाने के लिए लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक रुख में बदलाव लाना जरूरी है। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि हमारे देश में जो बचत अब भी सामाजिक सुरक्षा का प्रमुख आधार बनी हुई है, वह बचत कम ब्याज दर से घटती जा रही है। जहां छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज बढ़ना सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से लाभप्रद है, वहीं इससे लोगों को महंगाई की पीड़ाओं से भी बचाव करने में सहायता मिलती है…

इन दिनों पूरी दुनिया में सोने में तूफानी तेजी का परिदृश्य दिखाई दे रहा है और सोने की कीमतें छह साल की ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। सोने की कीमतें बढ़ने के चार प्रमुख कारण दिखाई दे रहे हैं। एक, दुनिया के केंद्रीय बैंकों  द्वारा डालर की तुलना में सोने को महत्त्व दिया जा रहा है और वे सोने की खरीदी बढ़ा रहे हैं। दो, अमरीका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से युद्ध की आशंका बढ़ गई है। तीन, अमरीका और चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर के कारण वैश्विक मंदी का डर सता रहा है। ऐसे में  निवेशक  सोने की खरीदी को उपयुक्त  मान रहे हैं। चार, अमरीका में ब्याज दरें घटने की संभावना से डालर कमजोर हुआ है और इससे सोने की चमक तेज हुई है। गौरतलब है कि पूरी दुनिया के अधिकांश केंद्रीय बैंकों द्वारा की जा रही सोने की अधिक खरीदी के कारण सोने की कीमतें सर्वोच्च ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। जून 2015 में सोने की जो कीमतें करीब 1070 डालर प्रति औंस थीं, वे जून 2019 में करीब 1400 डालर प्रति औंस के पार हो गई हैं। भारत के बाजार में 26 जून, 2019 को सोने की कीमतें 35 हजार रुपए प्रति 10 ग्राम को पार कर गई हैं। यद्यपि भारत में सोने के दाम अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए हैं, लेकिन नए सोने की मांग सोने की ऊंचाई पर पहुंच गई कीमत के कारण अधिक नहीं बढ़ी है। सोने की अधिक कीमत हो जाने के कारण लोगों द्वारा पुराने सोने तथा गहनों की बिक्री सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है।

वस्तुतः पिछले कई वर्षों में सोने से दूरी बनाए रखने वाले केंद्रीय बैंकों के लिए सोना एक बार फिर से महत्त्वपूर्ण हो गया है। रूस, चीन और भारत सहित दुनिया के कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने पिछले कुछ महीनों में काफी मात्रा में सोना खरीदा है। 613 टन के सोने के भंडार के साथ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस मामले में 10वां सबसे बड़ा सोना भंडार वाला केंद्रीय बैंक है। कजाकिस्तान और तुर्की के केंद्रीय बैंकों ने भी अपना सोना भंडार बढ़ाया है। वेस्ट गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में केंद्रीय बैंकों की सोने की मांग कई दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सोने की कीमतों में नई तेजी की जड़ें दुनिया के कई विकसित देशों द्वारा डालर के नए विकल्प की तलाश में आगे बढ़ना भी है। चीन इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2030 के आरंभ में वह अमरीका को पीछे करते हुए दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की संभावना रखता है। इसी के चलते चीन अमरीकी डालर की तुलना में सोने की खरीदी पर अधिक जोर दे रहा है। कच्चे तेल के भंडार रखने वाले कई खाड़ी देश भी सोना खरीद रहे हैं। यद्यपि अमरीका के पास फिलहाल सबसे बड़ा हथियार डालर या ऐसा कहें कि पेट्रो डालर है। दुनिया जीवाश्म ईंधन पर चल रही है और उसे खरीदने के लिए डालर आवश्यक है। यद्यपि पेट्रो डालर ने करीब पांच दशक तक वैश्विक व्यवस्था को संभाला और संभव है कि वह एक-दो दशक तक और ऐसा करता रहे, लेकिन डालर के विकल्प बहुत तेजी से उभर रहे हैं। ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था में डालर की तुलना में सोना अधिक उपयुक्तता रखते हुए दिखाई दे रहा है। निस्संदेह  भारत में भी सोने की बढ़ती हुई मांग का बढ़ता हुआ परिदृश्य बता रहा है कि एक बार फिर भारत के अधिकांश बचतकर्ता सोने की तरफ और अधिक आकर्षित हो रहे हैं। सोने की कुल वैश्विक मांग का एक-तिहाई भारत में है। भारत में सोने की 90 फीसदी मांग आभूषणों या भगवान को चढ़ाने के लिए होती है। बड़ी संख्या में लोग मंदिरों में सोना धार्मिक आस्था की वजह से चढ़ाते हैं। इसके अलावा सोने के आभूषण पहनना हमारी संस्कृति का अंग भी है। सोने में अमीरों द्वारा किए जाने वाले निवेश के साथ-साथ गरीबों की ओर से भी लगातार ज्यादा निवेश किया जा रहा है। वे भी अपनी छोटी-छोटी बचतों से छोटी-छोटी सोने की वस्तुएं खरीदते हैं। प्रतिवर्ष देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तीन फीसदी सोने के रूप में कम उत्पादक पूंजी में बदल रहा है ।

हमारे देश में इस समय सोने की खरीदी बढ़ने का एक बड़ा कारण यह भी है कि विभिन्न बचत योजनाओं में बचत करने वालों को समुचित प्रतिफल हासिल नहीं हो रहा है। हाल ही में 24 जून को केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि विभिन्न छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में और कमी की जाएगी। अभी भी देश के अधिकांश लोग शेयर बाजार में निवेश से दूर हैं। ऐसे में इस समय कोई भी व्यक्ति, जो अपना पैसा बैंक की सावधि जमा योजना, किसी म्युचुअल फंड अथवा भविष्य निधि योजना में लगाने की इच्छा रख रहा है, उसे वर्तमान परिदृश्य में यह साफ नजर आ रहा है कि सोने में निवेश किसी अन्य बचत योजना की तुलना में अधिक लाभप्रद होगा।

निश्चित रूप से भारत जैसे विकासशील देश के लिए सोने में निवेश उत्पादक नहीं है। ऐसे में सोने की मांग घटाने के सार्थक प्रयास किए जाने जरूरी हैं। सोने की मांग घटाने के लिए लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक रुख में बदलाव लाना जरूरी है। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि हमारे देश में जो बचत अब भी सामाजिक सुरक्षा का प्रमुख आधार बनी हुई है, वह बचत कम ब्याज दर से घटती जा रही है। जहां छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज बढ़ना सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से लाभप्रद है, वहीं इससे लोगों को महंगाई की पीड़ाओं से भी कुछ बचाव करने में सहायता मिलती है। सोने में निवेश करने वालों के कदम शेयर बाजार की ओर मोड़ने के लिए लोगों का शेयर बाजार में विश्वास बढ़ाना होगा। भारत के  शेयर और पूंजी बाजार को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि सेबी शेयर बाजार की गतिविधियों पर सतर्कता से ध्यान देकर उसे स्वस्थ दिशा प्रदान करे और शेयर बाजार में निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

हम आशा करें कि सरकार देश में चीन और अमरीका के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर की चिंताओं,  अमरीका और ईरान के बीच युद्ध की बढ़ती चिंताओं और दुनिया के विभिन्न केंद्रीय बैंकों  द्वारा सोने की बढ़ती हुई खरीदारी के बीच देश के उपभोक्ताओं को उनकी बचत को सोने की खरीदी की तुलना में स्वर्ण बांड जैसी बचत योजनाओं के विकल्पों की ओर प्रवृत्त करने  के लिए प्रयास करेगी। सरकार विभिन्न बचत एवं निवेश योजनाओं को इस तरह आकर्षक एवं सुरक्षित बनाएगी कि बचत करने वालों को समुचित प्रतिफल हासिल हो और बचतकर्ता के कदम सोने की खरीदी की बजाय बचत योजनाओं में निवेश की डगर पर आगे बढ़ जाएं।


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