सोलन में अपराध की तह

By: Jul 18th, 2019 12:05 am

सोलन जैसे प्रगतिशील शहर में गुनाह अब दबे पांव नहीं, सरेआम हिमाकत कर रहा है, तो पहाड़ की निशानियां चीख उठी हैं। आर्थिक अपराध की जद में यह हादसा मात्र दो नकाबपोश नहीं देखता, बल्कि शहर में शांति की लाचारी को महसूस करता है। एक कारोबारी पर हमलावर होने की शिनाख्त में सोलन की गलियां मासूम नहीं रहीं और न ही चिन्हित इरादों की बादशाहत में शहरी अमन की चादर मुकम्मल रही। यहां दौलत और शोहरत के खिलाफ अपराध के मजमून पैदा हो रहे हैं, तो समाज से सरकार तक की समझ में परिवर्तन आना लाजिमी है। निशाना नहीं लगा इसमें किसी सुरक्षा का भरोसा नहीं बढ़ता, बल्कि अपराधी की चूक में जिंदगी बच गई। ऐसा नहीं है कि हर बार कातिल इरादे असफल हो जाएं या बारूद की तहें सुलगना भूल जाएंगी। कमोबेश ऐसी घटनाओं के मुहाने पर व्यापारिक उद्देश्यों की सरहदें, माफिया गर्दनें और भविष्य की चुनौतियां तन रही हैं। हम यह तो नहीं कह सकते कि इस साजिश के पीछे के क्या कारण रहे, लेकिन कारोबार के परिदृश्य में अपराध के सुराख नए नहीं। बीबीएन क्षेत्र में लूटपाट की बढ़ती घटनाएं तथा पूरे प्रदेश में एटीएम जैसी लूट की वारदातें अपना सीना फुला रही हैं। अवैध खनन तथा नशे के कारोबार में शरीक माफिया हाथ में हथियार रखता है। पिछले कुछ समय में पुलिस के सामने आक्रामक खनन-नशा माफिया ही नहीं आया, बल्कि पर्यटक सीजन के दौरान वर्दी को चुनौती दी गई। ऐसे में शहरीकरण, बेरोजगारी व युवाओं के जीवन की रिक्तता तथा भविष्य की चिंता को सकारात्मक विकल्पों की रोशनी नहीं दिखाई तो सड़क पर ऊर्जा का बिखराव तय है। हिमाचल समाज के भीतर सांस्कृतिक परिवर्तन, सामाजिक मूल्यों का हृस और प्रदेश के प्रति घटते सरोकार, जीवन के चौराहे बना रहे हैं। आश्चर्य यह कि शहर से गांव तक की समृद्धि में हाथ बंटाने बाहरी लोग ही शिरकत कर रहे हैं, तो कहीं अपराध की शरणस्थली हमारे आसपास ही विकसित होगी। नए कारोबारों के जरिए माफिया की घुसपैठ और कायदे-कानून की लाचारी ने हिमाचल की आर्थिकी का स्वर्णिम इतिहास भ्रष्ट कर दिया है। ऐसे में सोलन की घटना नए निवेश की जेब में चेतावनियां भर देती हैं। प्रशासनिक तौर पर प्रदेश अपनी रक्षा नहीं कर पा रहा है, क्योंकि हर तरह के कारोबार में राजनीतिक चेहरा दिखाई देता है। पिछले दो दशकों में हिमाचलियों की निजी आय में वृद्धि के चबूतरे पर नेता वर्ग सबसे अधिक और आगे देखा गया। रियल एस्टेट, भूमि की खरीद-बिक्री, शराब और विभागीय ठेकेदारी तथा सरकार के साथ मिलकर चलते कारोबार की परंपराएं भयावह मोड़ पर पहुंच चुकी हैं। व्यापारिक तरक्की के बीच विध्वंसक होते इरादों का जो नंगा नाच शुरू हुआ है, उसके खिलाफ सुरक्षा कवच सुदृढ़ करने होंगे। प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों की चौकसी के लिए पुलिस महकमे की संरचना बदलनी होगी। कुछ बड़े व सीमांत जिलों के लिए पुलिस आयुक्तालयों की स्थापना करनी होगी, ताकि ग्रामीण, शहरी तथा ट्रैफिक की नजर से नफरी बढ़े और स्वतंत्र-निष्पक्ष भूमिका में विभाग की कसरतें सक्षम व उद्देश्यपूर्ण हों। सोलन की घटना ने प्रदेश के नागरिकों से फिर भोले-भाले होने का तमगा छीना है और इसे शीघ्रातिशीघ्र स्वीकार करके पुलिस व कानून-व्यवस्था में जीरो टालरेंस के लक्ष्य पर चलना होगा। 


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