हिमाचल के दरिया छलनी

By: Jul 29th, 2019 12:05 am

हिमाचल में खनन माफिया दिन-रात खड्डों का सीना छलनी कर चांदी कूट रहा है। नतीजतन, जहां पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, वहीं जलस्रोत भी सूख रहे हैं। अवैध खनन से भयानक हो रही तस्वीर पेश करता, इस बार का दखल…

सूत्रधारः शकील कुरैशी सहयोगः जितेंद्र कंवर,  शालिनी रॉय भारद्वाज,  नीलकांत भारद्वाज, विपिन शर्मा, अनिल डोगरा, कुलवंत शर्मा, गगन ललगोत्रा

अवैध रूप से नदियों व खड्डों का सीना छलनी करने से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। बरसात के दिनों में नदियां व खड्डें उफान पर होती हैं और यह साथ लगते गांवों को नुकसान पहुंचाती हैं। यहां से पानी निकलकर खेतों, सड़कों, पुलों को नुकसान पहुंचाता है और एक बड़ी संपत्ति का नुकसान हर साल होता है। बरसात के ये जख्म फिर ठीक नहीं होते, जिसमें अवैध रूप से खनन एक बड़ा कारण है। राज्य में अवैध खनन को रोकने का दंभ भरने वाली सरकार पूरी तरह से इसे नहीं रोक पा रही है। सरकार की सख्ती के बाद मामूली फर्क पड़ सका है। अवैध खनन के पिछले एक साल के आंकड़ें देखें तो 31 मार्च तक 2019 तक बिलासपुर जिला में 680 मामले, चंबा जिला में 510, हमीरपुर में 849, कांगड़ा में 2204, किन्नौर में 159, कुल्लू में 650, लाहौल स्पीति में 101, मंडी में 2348, सिरमौर में 1033, शिमला में 394, सोलन में 503 तथा ऊना जिला में 373 अवैध खनन के मामले सामने आ चुके हैं। कुल 9804 मामले सामने आए। इन पकड़े गए मामलों में अवैध कारोबारियों पर चार करोड़ 79 लाख 31 हजार 852 रुपए का जुर्माना लगाया गया है। उद्योग विभाग का माइनिंग विंग इस धंधे को रोकने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। माइनिंग विंग ही इस पूरे मामले को देखता है। उसके द्वारा माइनिंग प्लान अप्रूव किए जाते हैं और वहीं माइनिंग लीज व नीलामी भी करता है, परंतु दुखद यह है कि इस विभाग के पास स्टाफ की कमी है। जो लोग सेवानिवृत्त हुए उनकी जगह पर और नहीं रखे गए जबकि पूरे प्रदेश में खनन के अवैध धंधे को रोकने के लिए इनके पास अधिक संख्या में स्टाफ होना जरूरी था। बताया जाता है कि वर्ष 1973 में इनके पास मिनिस्ट्रियल कर्मचारियों की स्ट्रेंथ 26 की थी,जिसमें से वर्तमान में 19 पद खाली पड़े हुए हैं। स्टेट जियोलॉजिस्ट के कार्यालय में केवल चार मिनिस्ट्रियल स्टाफ कर्मचारी हैं, वहीं जिलों में तैनात माइनिंग आफिसरों के पास एक-एक कर्मचारी है। ऐसे में इतनी फैली हुई निर्माण सामग्री को अवैध कारोबारियों से बचाने की कोशिशें कैसे हो सकती हैं।

दस साल के लिए मिलती है मंजूरी

नीलामी के बाद खनन पट्टा 5 से 10 साल के लिए दिया जाता है, जो कि नॉन फोरेस्ट एरिया के लिए है। फोरेस्ट एरिया में यदि नीलामी की मंजूरी मिलती है तो खनन पट्टा 15 साल के लिए लीज पर दिया जाता है क्योंकि इसमें मंजूरी में ही करीब पांच साल लग जाते हैं।

सुबह से रात तक ब्यास, सीर और शुक्कर खड्ड का सीना जख्मी

हमीरपुर जिला में भी अवैध खनन जारी है।  यहां छोटी-बड़ी करीब दर्जनभर खड्डें बहती हैं।  सीमावर्ती क्षेत्रों की बात करें तो एक तरफ  सुजानपुर और दूसरी तरफ  नादौन में ब्यास नदी हमीरपुर-कांगड़ा की सीमा से होकर बहती है। नादौन शहर के साथ-साथ बह रही ब्यास नदी सहित क्षेत्र भर में बहने वाली सभी खड्डों में अवैध खनन भारी मात्रा में जारी है। ब्यास नदी के तट पर स्थानीय गुरूद्वारा के निकट हो रहे खनन पर तो गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी आपत्ति दर्ज करवा चुकी है इसके अलावा क्षेत्र  में बहने वाली कुनाह, मान , मसेह खड्ड  सहित अन्य स्थलों पर अवैध खनन जारी है। इसके अलावा   रंगस, धनेटा, कश्मीर, बदारन, गौना करौर, बसारल, बटाहली, बड़ा, कोहला, कलूर, कामलू सहित अन्य क्षेत्रों में यह खनन हो रहा है। इतना ही नहीं ब्यास पुल के निकट हो रहे खनन के कारण पुल के पिल्लरों के पास भी खाइयां बन चुकी हैं। भोरंज में बहने वाली सीर खड्ड की सीमा हमीरपुर जिला के अलावा मंडी और बिलासपुर को भी छूती है। यहां धड़ले से दिन-रात खनन होता रहता है। ट्रैक्टर चालक बेखौफ  खनन को अंजाम देकर मोटी कमाई कर रहे हैं। इससे लगातार खड्डों का जल स्तर नीचे गिर रहा है। इससे सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि पिछले दो.तीन वर्षों से बरसात में खड्डों का बहाव उपजाऊ जमीन को भी बहाकर ले जा रहा है। यही नहीं रिहायशी इलाकों में पानी घुसने से करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। स्थानीय लोगों की मानें, तो शुक्कर खड्ड में जगह-जगह खनन माफिया द्वारा रेत-बजरी व पत्थरों के बड़े-बड़े ढेर लगाए गए हैं। इन्हें ये लोग सरेआम तीन गुना भाव पर बेचकर चांदी कूट रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सुबह पांच बजे से लेकर नौ बजे तक और शाम को पांच बजे से लेकर रात 10 बजे तक दर्जनों ट्रैक्टरों को शुक्कर खड्ड में अवैध खनन करते देखा जा सकता है

खनन पट्टों की नीलामी से 105 करोड़

कांगड़ा जिला में 30 खनन पट्टे नीलाम किए गए हैं, जिनसे सरकार को 8.84 करोड़ रुपए की राशि मिली। हमीरपुर में 14 साइट्स से 3.96 करोड़ रुपए, सिरमौर में 23 साइट्स से 32.30 करोड़, ऊना में छह साइट्स से 3.08 करोड़, मंडी में 49 साइट्स से 46.38 करोड़, बिलासपुर में चार साइट्स से 1.83 करोड़, कुल्लू में 19 साइट्स से 3.72 करोड़, शिमला में नौ साइट्स से 3.78 करोड़ तथा चंबा जिला में दो खनन पट्टों की नीलामी से सरकार को 1.15 करोड़ रुपए की कमाई अभी तक हो चुकी है। कुल 1285-93-03 हेक्टेयर एरिया को 105 करोड़ रुपए में नीलाम किया गया है।

खनन पर ऐसे रखा जाता है चैक

हिमाचल में वैद्य तरीके से खनन के लिए भी नियमों में प्रावधान है। जो व्यक्ति नीलामी  में भाग लेकर खनन पट्टा हासिल करता है वह भी वैज्ञानिक तरीके से खनन करेगा। इनको बांधने के लिए उद्योग विभाग ने नीति में प्रावधान रखा है कि एक टन सामग्री निकालने में उसकी कितनी बिजली इस्तेमाल होती है इसका पता विभाग को रहता है। बिजली के इस्तेमाल से पता चल जाता है कि क्रशर मालिक ने कितना खनन किया है। उसे माइनिंग लीज मंजूर करवानी होती है जिसके साथ माइनिंग प्लान बनता है। इसे विभाग क्रॉस चैक करता है जिसके मुताबिक काम करना होता है। इस तरह से साइंटिफिक माइनिंग सुनिश्चित बनाई जाती है।

खनन पट्टे की लीज प्रक्रिया

खनन पट्टे को लीज पर देने से पहले साइट का चयन किया जाता है,जिसके लिए एक विशेष कमेटी बनी है। इस कमेटी में क्षेत्र का एसडीएम, वन विभाग का डीएफओ, आईपीएच व लोक निर्माण विभाग का एसडीओ, प्रदूषण बोर्ड का प्रतिनिधि, माइनिंग आफिसर, पर्यटन विभाग का प्रतिनिधि शामिल रहता है। यह कमेटी साइट को मंजूरी देती है, जिसके बाद वहां पर तय स्थान पर ही वैज्ञानिक तरीके से खनन हो सकता है।

बद्दी में ड्रोन की मदद से नजर

हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में अवैध खनन का कारोबार चल रहा है। सबसे अधिक खनन सीमाई क्षेत्रों में होता है जहां पर पड़ोसी राज्यों से आकर लोग निर्माण सामग्री ले जाते हैं। इन पर नजर रखने के लिए पर्याप्त व्यवस्था हिमाचल के पास नहीं है। सोचा जा रहा है कि ड्रोन से इस पर नजर रखी जाएगी, जिसके लिए बद्दी में प्रयास किए गए हैं। अभी इसे लेकर भी कंपनी से रिपोर्ट मिलनी है, जिसके बाद तय होगा कि ड्रोन इस अवैध खनन पर नजर रखेगा या फिर नहीं।

यहां धड़ल्ले से हो रहा खनन

राज्य के बद्दी, बरोटीवाला, ऊना के साथ लगते बार्डर एरिया, कांगड़ा के नूरपुर, चक्की खड्ड, जयसिंहपुर की न्यूगल खड्ड, ऊना की स्वां, रोहडू की पब्बर, कांगड़ा का मंड, ऐसे कुछ प्रमुख स्थान हैं, जहां पर अवैध रूप से खनन की शिकायतें बार-बार सामने आती हैं।

बार्डर एरिया माफिया का मददगार

खड्डों व नदियों में इंटर बार्डर एरिया सबसे बड़ा बाधक बनता है। खड्ड से खनन कर ऐसे कारोबारी  दूसरी ओर भाग जाते हैं, जिन्हें फिर पकड़ा नहीं जा सकता। जयसिंहपुर की न्यूगल खड्ड को अवैध खनन कारोबारियों से बचाने के लिए अब जल्दी ही यहां कानूनी तरीके से नीलामी करने की सोची गई है।

खनन पट्टों की मंजूरी का इंतजार

वर्तमान में उद्योग विभाग ने अवैध खनन को रोकने के नजरिए से यमुना नदी के सभी चिन्हित स्थानों को पूरी तरह से नीलाम कर दिया है।  यहां पर जिन लोगों ने खनन पट्टे हासिल किए हैं,उन्होंने पर्यावरण व वन मंत्रालय की स्वीकृति के लिए मामले भेज रखे हैं। दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2016 से लेकर जो मामले केंद्रीय मंत्रालय को मंजूरी के लिए भेजे गए हैं, उनमें आज तक भी मंजूरी नहीं मिल पाई है। ऐसे में उन लोगों का लाखों रूपया भी फंस चुका है। गिरि नदी में आधी साइट्स को ऑक्शन कर दिया गया है । सिरमौर जिला में अभी तक एफसीए की मंजूरी अटकी हुई है। इसके साथ ऊना, कांगड़़ा, हमीरपुर, मंडी, कुल्लू, शिमला, सोलन जिलों में कुल 156 साइट्स की नीलामी अब तक की जा चुकी है।

संशोधित पालिसी में कड़े प्रावधान

2015 में यहां माइनिंग की पालिसी पूर्व कांग्रेस सरकार ने बनाई, जिसे वर्तमान जयराम सरकार ने 6 अप्रैल 2018 को संशोधित किया। संशोधित की गई माइनिंग पालिसी में प्रावधानों को कुछ और कड़ा किया गया, जिसमें अवैध खनन करने वाले को सजा का प्रावधान है। इसके साथ वाहन को जब्त करने और दोबारा कभी माइनिंग लीज की ऑक्शन में ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं हो सकता। इसके अलावा भारी भरकम जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं, सड़क से कितनी दूरी पर माइनिंग की गई, पानी की पेयजल व सिंचाई योजना के साथ कितनी दूरी पर माइनिंग की गई ऐसे कई मामले हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करने का प्रावधान संशोधित पालिसी में किया गया है।

39 अफसरों को कार्रवाई की है पावर, महज चार विभाग सक्रिय

अवैध रूप से माइनिंग को रोकने के लिए सरकार ने विभिन्न विभागों के 39 अधिकारियों को शक्तियां दे रखी हैं, लेकिन कोई इस काम को करने में दिलचस्पी नहीं दिखाता। उद्योग विभाग के माइनिंग विंग ने एक साल में 2631 मामलों को पकड़़ा  है। इनके अलावा राजस्व विभाग, जिनके एसडीएम ने अलग-अलग जगहों पर 38 मामले  पकड़े हैं। वन विभाग की टीम ने प्रदेश भर में  176 अवैध खनन के मामले पकड़े वहीं  पुलिस डिपार्टमेंट ने सबसे अधिक सक्रियता दिखाई है। पुलिस ने प्रदेश भर में 6958 मामले अवैध कारोबार के पकड़े और कार्रवाई की। इनके अलावा लोक निर्माण विभाग, महाप्रबंधन जिला उद्योग केंद्र, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग, बीडीओ ने उनके पास शक्तियां होने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाया। उनकी निष्क्रियता का मामला सरकार के ध्यान में भी लाया गया है।

भुंतर एयरपोर्ट को भी खतरा

जिला कुल्लू में अवैध खनन माफिया खड्डों और नदियों को छीना छलनी करने में दिन-रात जुटा हुआ है।  ब्यास किनारे अवैध खनन करने वाले बेलगाम माफिया के हौसलों ने प्रदेश के सबसे पुराने कुल्लू-मनाली एयरपोर्ट भुंतर के एक छोर को भी खतरे की जद में ला दिया है। जानकारों के अनुसार शाढ़ाबाई के पास रेत और पत्थर निकालने वाला माफिया कुछ सालों से एयरपोर्ट के एक छोर के पास वाले इलाके तक जा पहुंचे हैं। कुल्लू-मनाली एयरपोर्ट अथॉरिटी भी इस मामले को उठाकर चिंता जाहिर कर चुकी है। विधानसभा में भी दो साल पहले इस मामले पर हंगामा हो चुका है। सूत्रों के अनुसार यहां पर इस प्रकार की गतिविधियों को लगाम नहीं लगती है तो एक सिरा ज्यादा पानी की स्थिति में ढह सकता है। इसके अलावा  ब्यास को तटो को भुंतर, शाढ़ाबाई, बजौरा, शियाह बिहाली, औट, मौहल-पिरड़ी, रामशिला, पतलीकूहल में अवैध खनन से नुकसान पहुंच रहा है तो जीया, शाट सहित अन्य स्थानों पर पार्वती, लारजी में तीर्थन में भी अवैध खनन बदस्तूर जारी है।

देहरा में रात होते ही सक्रिय हो जाता है खनन माफिया

देहरा में ब्यास के किनारे पर रात को खनन माफिया पूरी तरह से सक्रिय होकर ब्यास पर बीबीएमबी की साइट का सीना छलनी कर रहा है। अहम बात तो यह है कि उक्त साइट सेंचुरी एरिया है और यहां पर खनन तो दूर की बात फसलों की बिजाई तक नहीं की जा सकती है, लेकिन यहां पर चौंकाने वाली बात तो यह ब्यास की प्रतिबंधित एरिया पर खनन होना, उन 31 विभागों की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े करती है, जो अवैध खनन पर समय -समय पर चालान करने की बात करते हैं। गौर करने लायक पहलू तो यह है कि खनन माफिया कई मर्तबा तो दिन-दहाड़े प्रशासन की नाक तले रेत और पत्थरों के ट्रैक्टरों को बेखौफ  दिन में ही ब्वायज स्कूल वार्ड नंबर एक के रास्ते से शहर से निकाल कर ले जाते हैं। यहां बता दें कि ब्यास और साथ लगती नेकेड खड्ड के साथ कलोहा तथा बढलठोर की खड्ड पर भी खनन माफिया सक्रिय है। खड्डों का सीना छलनी करने से जहां माफिया तो चांदी कूट रहा है, वहीं पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।

भांग की आड़ में छुप जाते हैं ट्रैक्टर

बीबीएमबी की ब्यास की साइट के मौजूदा हालतों पर गौर किया जाए, तो 20 कनाल के प्लॉट में हरी छह फुट ऊंची भांग है।  जब पुलिस या खनन विभाग माफिया पर कार्रवाई करने के लिए साइट पर जाता है, तो खनन माफिया  भांग की आड़ में अपने ट्रैक्टरों को छुपा देता है, जिससे खनन माफिया पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है।

ऊना में अंधेरा होते ही खड्डों में डट जाता है माफिया

जिला ऊना में अवैध खनन का धंधा खूब फल-फूल रहा है। विशेषकर जिला के बार्डर एरिया में बड़े पैमाने पर अवैध खनन दिन-रात जारी है। अवैध खनन में संलिप्त लोगों को कथित तौर पर राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है,जिसके चलते उनका धंधा बेरोक-टोक जारी है। जिला ऊना के बार्डर एरिया में अवैध खनन की गतिविधियां खुलेआम चल रही हैं। यूं तो सारा दिन अवैध खनन जारी रहता है,लेकिन अंधेरा होते ही खनन का कारोबार भी पूरे यौवन पर पहुंच जाता है। क्रशर की डिमांड को पूरा करने के लिए पीले पंजे से अवैज्ञानिक ढंग से पहाड़ों का सीना छलनी किया जा रहा है, जबकि जिला की स्वां नदी व सहायक खड्डों में भी जेसीबी व पोकलेनों से नियमों को ताक पर रखकर बड़े पैमाने पर खनन किया जा रहा है। रात के समय बार्डर एरिया पर बड़े स्तर पर रेत-बजरी से भरी ट्रालियां व टिप्परों का आवागमन देखा जा सकता है। रेत-बजरी से ओवरलोडिड वाहन न केवल नियमों की अवहेलना करते हैं, वहीं सड़कों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। बाथू, बेला-बाथड़ी, जननी, कुठार, पूबोवाल, गोंदपुर जयचंद, गोंदपुर बूल्ला, दुलैहड़,कलरूही, कुनेरन, चंदपुर-कलेड़ा,डुमखर, कलरूही सहित गगरेट, अंब व चिंतपूर्णी क्षेत्रों में विभिन्न खड्डों में मशीनों से अवैध खनन दिन-रात जारी है। जलस्रोतों के नजदीक अवैध खनन के चलते जिला में भूमिगत जलस्तर में भी गिरावट दर्ज की गई है। ऊना के हरोली क्षेत्र में तो नए नलकूपों को बोर करने पर भी प्रतिबंध लग चुका है। पानी का जलस्तर लगातार कम होता जा रहा है। वहीं खड्डों में बीस-बीस फुट से अधिक गहरे खोदे गए गड्डे भी दुर्घटनाओं को न्योेता दे रहे हैं।

बीबीएन में जेसीबी बेखौफ, 90 फीसदी ट्रैक्टर अवैध खनन में जुटे

खनन माफिया अब इस कद्र बैखौफ  हो चुका है कि वह बेधड़क हिमाचल की सीमा में घुस कर अवैध खनन को अंजाम दे रहा है। बीबीएन के सीमावर्ती क्षेत्रों में सुबह-शाम जेसीबी से हो रही खुदाई और खनन सामग्री ढोते ट्रैक्टर का नजारा आम दिखता है। बद्दी के मलकूमाजरा , गुरुमाजरा, हररायुपर गांव में तो खनन माफिया बेरोकटोक सरकारी भूमि पर जेसीबी से खुदाई में जुटा है, यही हाल सरसा लुहंड व बाल्द नदियों का भी है। सरसा नदी, बाल्द, लुहंड, महादेव व चिकनी खड्ड में खनन माफिया स्थानीय रसूखदार लोगों के सहयोग से बेधड़क खनिज संपदा की लूट को अंजाम दे रहा है, लेकिन प्रशासन इन सबसे बेखबर है। खनन माफिया ने पड़ोसी राज्यों की सीमा से सटी क्षेत्र की नदियों व खड्डों का सीना किस हद तक  छलनी कर रखा है, इसे नदी-नालों व सरकारी भूमि पर बने कई फुट गहरे गड्ढे बखूबी बयां कर रहे हैं। बीबीएन के पड़ोसी राज्यों से सटे इलाके में नदियों से गुजरते करीब दो दर्जन चोर रास्ते हैं, जो खनन माफिया के लिए वरदान बने हुए हैं। सरसा पुल, चिकनी नदी पुल व बाल्द पुल पर अवैध खनन की ही मार पड़ी थी। अवैध खनन ने इनकी नीवें हिला कर रख दी थी। यही वजह रही थी कि ये पुल बरसात की मार नहीं झेल सके और ढह गए। अवैध खनन से पेयजल स्रोतों पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। बीबीएन में तीन हजार से ज्यादा ट्रैक्टर हैं, जिसमें से 90 फीसदी अवैध खनन में लगे हैं।  

तो इसीलिए बढ़ रहा अवैध खनन

प्रदेश में व्यापक बेरोजगारी के अलावा जिन लोगों ने कृषि के लिए सस्ता लोन व सबसिडी लेकर ट्रैक्टर लिए हैं, उनके पास भी काम नहीं बचा है, लिहाजा ये लोग रेत-बजरी निकालकर अपना धंधा चला रहे हैं। वैद्य तरीके से खनन लीज लेने के लिए कई तरह की मुश्किल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, लाखों रुपए लगाने के बाद भी सालों तक कुछ नहीं मिलता, लिहाजा लोग अवैध धंधे का रास्ता अपनाते हैं। समय पर एनओसी नहीं मिलना और जिला कमेटियों की मंजूरियों की प्रक्रिया को खत्म कर देने से भी लोगों के सामने परेशानी है, जिसके चलते वे अपना कारोबार गैर कानूनी तरीके से करने को तवज्जो देते हैं।

चक्की पुल, ढांगू रेलवे ब्रिज चढ़ सकता है भेंट

पंजाब-हिमाचल के मध्य बहता चक्की और ब्यास दरिया अवैध खनन माफिया के लिए वरदान साबित हो रहा है। पंजाब प्रशासन पकड़ने जाए, तो माफिया हिमाचल भाग जाते हैं। यदि उधर से प्रशासन छापामारी करे, तो पंजाब निकल आते हैं। एक तरफ  जहां पंजाब-हिमाचल की सरकारें अवैध खनन रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करती नहीं थकती हैं, मगर जमीनी स्तर पर की कहानी कुछ और ही बयान करती है। भले ही प्रशासन का कहना है कि लीज पर ली गई जमीनों पर ही खनन हो रहा है, परंतु सरकारी कागजों में लीज पर ली हुई जमीन तो मात्र दिखावे के लिए ही खनन माफिया द्वारा फसलें लगाई जाती हैं और खनन चक्की दरिया और राम गोपाल मंदिर डमटाल की जगह पर किया जाता है। मगर यह भी मानते है कि जेसीबी से भी बड़ी पोकलेन मशीनों से खनन करने पर पूरी तरह से पाबंदी है। मगर हकीकत कुछ और ही दिखाई देती है इन बड़ी बड़ी पोकलेन मशीनों द्वारा खनन माफिया सरेआम कानून की धज्जियां उड़ा कर विभाग व प्रशासन की धज्जियां उड़ाकर बेखोफ  होकर चक्की दरिया व बयास दरिया  का सीना छलनी कर रहे हैं। पुलिस विभाग भी खानापूर्ति करने के लिए कभी कभार टिप्परों के चालान काटकर पल्ला झाड़ लेता है । जानकारों का मानना है कि अगर यहां अवैध खनन को न रोका गया तो चक्की पुल और ढांगू रेलवे ब्रिज बरसात की भेंट चढ़ सकता है। इसके अलावा मंड में टांडा पत्तन पुल के पास तो माफिया ने दरिया में 50 से 100 गहरे गड्ढे कर डाले हैं।

माफिया ने खोद डाली जयसिंहपुर की खड्डें

उपमंडल जयसिंहपुर में खनन दिन-रात जोरों से किया जाता है, अब यह वैध है या अवैध, किसी की समझ में नही आ रहा है। दिन-रात यहां की खड्डों चाहे हडोटी हो ब्यास या फिर सकाड या मंद खड्ड का सीना छलनी कर सोना रूपी रेत-बजरी-पत्थर निकाला जा रहा है। इन खड्डों में आठ से दस फुट तक गड्ढे देखे जा सकते हैं। इससे पर्यावरण को कितना नुकसान है यह किसी को नही दिखता है। खनन से पानी का स्तर काफी नीचे जा चुका है और कई स्कीमें प्रभावित हो रही हैं। खड्डों में चारागाह होते थे, जो आज बंजर बन चुके हैं आवारा जानवर खेतों की ओर रुख कर रहे हैं। यहां की स्थानीय मछली की प्रजाति तो लगभग लुप्त हो चुकी है। यहां खोदे गए गड्ढों में मानव से लेकर जानवर तक अपनी जान गंवा चुके हैं।  कोटलू में रात के अंधेरे में एक नौजवान खड्ड में खनन सामग्री के चक्कर में ट्रैक्टर से गिरकर अपनी जान गंवा बैठा था।  यहीं नहीं, हडोटी खड्ड के बहाव में कबीरपंथी भवन गिर चुका है। अंधाधुंध खड्डों के दोहन के कारण पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ रहा है, जहां कभी 25 के पार न जाने वाला तापमान आज 40 से ऊपर जा रहा है, जहां जंगल हुआ करते थे, आज वीरान समतल दिखता है। सरकार भले ही अवैध खनन को रोकने की बात करती हो मगर यह शाम होते ही शुरू होता है ब सुबह होने पर खत्म हो जाता है । इसमें अच्छी खासी कमाई होने पर इस से जुड़े माफिया इसको छोड़ने को तैयार नही हैं


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