अनंत देव वंश का प्रसिद्ध ठाकुर था

By: Aug 7th, 2019 12:20 am

यह इस वंश का एक प्रसिद्ध ठाकुर हुआ। उसने लड़ाई में एक बार कांगड़ा के विरुद्ध कहलूर की सहायता की थी और इसमें कांगड़ा के एक अफगान सरदार आगर खां को अपनी तलवार से मार दिया था। संभवतः यह लड़ाई सन् 1783 की होगी, जब कहलूर की रानी नागर देवी ने अपनी सेना का नेतृत्व स्वयं कांगड़ा के राजा संसार चंद के विरुद्ध किया था। 1795 ई. में हिंदूर और बाघल ने मिलकर कुनिहार पर आक्रमण किया ..

गतांक से आगे …

ये सैनिक क्योंथल के नहीं हो सकते, क्योंकि क्योंठल ठकुराई इसके बाद अस्तित्व में आई। यह कोई स्थानीय सामंत या मवाणा होगा। अभोज देव तथा उसके साथियों ने उसे परास्त किया और हाटकोट में आकर रहने लगे। इसके पश्चात उन्होंने इधर-उधर के कुछ किले जीत लिए।

कुनिहार के शासकों की जो सूची प्राप्त हुई है उनमें ये नाम हैं-

  1. अभोज देव, 2. उदय देव, 3. साही देव, 4. साहूपाल देव, 5. बहनूआ देव, 6. बेल देव, 7. आरसी राव, 8. परस राव, 9. कौल राव, 10. मेघ राव, 11 गनचन राव, 12. रावो पूर्ण चंद, 13. रावो भाओ चंद, 14. रावो वीर चंद, 15. राव चतर देव, 16. जस देव, 17. मदन देव, 18. केसर देव, 19. सुल्तान देव, 20 शींबर देव, 21. अब्राहम देव, 22. राम सिंह, 23 आनंद देव (सिंह) (ज. 1715), 24. मगन देव (सिंह) (मृ. 1816), 25. पूर्ण सिंह (1816-1937), 26. किशन सिंह (1837-1866), 27 तेग सिंह (1866-1905), 28 हरदेव सिंह (1905)।

यह ठकुराई क्षेत्रफल, जनसंख्या और आय की दृष्टि से बहुत छोटी थी। इसलिए पड़ोसी शक्तिशाली ठाकुरों की कुनिहार के क्षेत्र पर नजर लगी रहती थी। 1500 ई. के लगभग केशव राय संभवतः ऊपर की सूची का केसर देव कुनिहार का ठाकुर था। वह बड़ा दुर्बल और आलसी शासक था। उसकी इस स्थिति से लाभ उठाकर बाघल ने कुनी नदी के पार के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। कुछ क्षेत्र पर क्योंथल ने अधिकार कर लिया।

अनंत देव: (ऊपर सूची का आनंद देव) का जन्म 1715 ई. में हुआ। यह इस वंश का एक प्रसिद्ध ठाकुर हुआ। उसने लड़ाई में एक बार कांगड़ा के विरुद्ध कहलूर की सहायता की थी और इसमें कांगड़ा के एक अफगान सरदार आगर खां को अपनी तलवार से मार दिया था। संभवतः यह लड़ाई सन् 1783 की होगी, जब कहलूर की रानी नागर देवी ने अपनी सेना का नेतृत्व स्वयं कांगड़ा के राजा संसार चंद के विरुद्ध किया था। 1795 ई. में हिंदूर और बाघल ने मिलकर कुनिहार पर आक्रमण किया। उस समय अनंत देव की आयु 80 वर्ष हो गई थी। उसने इनके आक्रमण को बड़ी वीरता से असफल कर दिया। उन्होंने अपनी पराजय देखकर उसे समझौते के लिए बुलाया, परंतु बाघल के आदमियों ने उसे मार्ग में धोखे से मार दिया।

मगन देव (सन् 1795-1816) ः दूसरी पहाड़ी रियासतों की तरह गोरखों ने कुनिहार पर भी अधिकार कर लिया। वे कुनिहार से कर वसूल करते रहे और उन्होंने वहां के ठाकुर मगन देव को राजगद्दी से हटाकर उसे जागीर दे दी। गोरखा युद्ध के पश्चात अंग्रेज सरकार ने मगन देव को चार सितंबर, 1815 को एक सनद द्वारा कुनिहार की ठकुराई पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए वापस लौटा दी थी। मगन देव को 1816 में मृत्यु हो गई                             – क्रमशः    


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