अब गर्मी में भी हरे चारे की नो टेंशन

By: Aug 25th, 2019 12:26 am

बंगाणा -बंगाणा उपमंडल के अंतर्गत गैर-सिंचिंत पहाड़ी क्षेत्र के किसानों और पशुपालकों के लिए पशुपालन विभाग बंगाणा के उपमंडल पशु चिकित्सा अधिकारी डा. सत्येंद्र ठाकुर के एक साल के प्रयास कारगर साबित हुए हैं। उन्होंने गर्म ऋतु में हरे चारे के विकल्पों पर शोध किया। इससे हरे चारे की कमी को पूरा करने कि लिए उनके प्रयास सफल रहे हैं। इसका लाभ उपमंडल के करीब 3000 पशुपालकों को मिला है। शोध दो चरणों में किया गया है। इससे पशुपालकों को लाभ हुआ है। गर्मी के मौसम में इन पशुपालकों को चारे की समस्या से जूझना पड़ता था, लेकिन अब इन पशुपालकों और किसानों को यह समस्या नहीं झेलनी पड़ेगी। गैर-सिंचित पहाड़ी क्षेत्र होने की बजह से गर्म ऋतु में मवेशियों के लिए हरे चारे की भारी कमी होने की बजह से दूध उत्पादन में भारी गिरावट होने के साथ-साथ मवेशियों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर होता है। इससे गरीब पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान होता था। पशुपालकों के कल्याण के लिए उपमंडल के पशु चिकित्सा अधिकारियों एवं कुछ कर्मचारियों के सहयोग से अति निर्धन पशुपालक कल्याण समिति बनाई। इसके तहत दो चरणों में कार्य किया गया। इसका लाभ करीब 3000 हजार पशुपालकों को मिल रहा है। वहीं, उपमंडल के प्रगतिशील पशुपालक इस पौधे की प्राप्ति एवं गुणों के विस्तार से चर्चा के लिए वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी एवं नजदीकी पशु चिकित्सा अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।

बंगाणा में तैयार किया जीवामृत्त

इस समिति द्वारा प्रथम चरण में ‘अजोला’ जिसे पशुपालकों का हरा सोना के रूप में जाना जाता है। पानी में तैरने वाला अद्भुत फेरन संपूर्ण पौष्टिक तत्त्वों से युक्त बीज मंगवा कर उपमंडल  पशु चिकित्सालय बंगाणा में जीवामृत तैयार किया। इसके कल्चर को लगवा कर, प्रदर्शनी के माध्यम से लगभग 850 पशुपालकों को प्रशिक्षित किया गया है। लगभग 400 के  करीब पशुपालक सफलतापूर्वक इसका दोहन कर लाभ उठा रहे हैं। अजोला न केवल दूध उत्पादन में दस से 20 प्रतिशत वृद्धि करता है। बांझपन की समस्या को काफी हद तक कम करता है। बल्कि दूध उत्पादन में पशु आहार के खर्च को 50 फीसदी कम करता है। गर्म ऋतु में हरे चारे का बेहतर विकल्प सिद्ध हुआ है। इसे बकरी पालन व मुर्गी पालन से जुड़े किसानों को भी वितरित किया जा रहा है। यहां तक शोध में पाया गया है कि अजोला को खिलाने से मुर्गियों और बकरियों में वजन में बढ़ोतरी पाई गई है।

आयुर्वेद में बीमारियों की रोकथाम की क्षमता

पहले चरण की अभूतपूर्व सफलता कि बाद दूसरे चरण में सहजन जिसे ड्रमस्टिक के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति का मानव एवं पशुओं के लिए एक अद्भुत वरदान है। आयुर्वेद में 300 से अधिक बीमारियों की रोकथाम की क्षमता रखता है। मवेशियों कि लिए तमाम औषधीय व उत्कृष्ट पौष्टिक तत्त्वों से युक्त 90-न्यूट्रिएंट्स, 46- एंटीऑक्सीडेंट्स, दूध से 17 गुना अधिक कैल्शियम, पालक से 25 गुना अधिक आयरन, संतरे से सात गुना अधिक विटामिन-सी, गाजर से 10 गुना अधिक बीटा करोटीन तथा प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसका बीज हैदरावाद की प्रतिष्ठित कंपनी से मंगवा कर अंकुरित करवाकर, पौध को वन परिक्षेत्र अधिकारी उपमंडल बंगाणा की सहयोग से तैयार करवाकर ‘डेयरी एवं बकरी पालन व्यवसाय’ से जुड़े प्रगतिशील पशुपालकों को मुफ्त में वितरित कर  उनकी जरूरत के हिसाब से लगाया जा रहा है। करीब 2500 के करीब सहजन कि पौधे लगवाए जा रहे हैं। इस पौधे की प्रत्येक तीन महीने में एक बार कटिंग होती है। फलियां साल में एक बार लगती हैं। इसकी हरी-पत्तियां और फलियां पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। यह हरे चारे का गर्म ऋतु में बेहतर विकल्प के साथ-साथ दूध उत्पादन, पशु स्वास्थ्य एवं मनुष्य के  स्वास्थ्य के  लिए अति उत्तम सिद्ध होगा। पौधारोपण विशेष अभियान के बाद पशुपालकों को चरणबद्ध तरीके से इस अदभुत पौधे की चमत्कारिक औषधीय गुणों कि बारे में विस्तार से चर्चा कर प्रशिक्षित किया जाएगा।


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