अवसाद एवं बढ़ती आत्महत्या की दर

By: Aug 24th, 2019 12:05 am

नीलम सूद

स्वतंत्र लेखिका

भारत में अवसाद के कारण होने वाली आत्महत्याओं में दिन-प्रतिदिन इजाफा हो रहा है जो चिंता का विषय बनता जा रहा है । भारत में सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि अवसाद को एक बीमारी न मानते हुए इसे  एक सामाजिक कलंक की संज्ञा दे दी जाती है।  वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन द्वारा नेशनल केयर आफ मेडिकल हेल्थ के लिए किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत  में अवसाद से ग्रस्त रोगियों की संख्या दुनिया के बाकी देशों की  तुलना में  सबसे अधिक है, एवं  देश  की कुल जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग गंभीर मानसिक तनाव से जूझ रहा है। देश के 20 भारतीयों में से एक भारतीय अवसाद से ग्रस्त है।

अध्ययन के अनुसार एक लाख लोगों में से 109 लोग अवसाद के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। शिक्षा की कमी एवं सामाजिक त्रुटियों के चलते अवसाद को भारत में बीमारी कम व पारिवारिक प्रतिष्ठा से जोड़ कर अधिक देखा जाता है इसलिए इस बीमारी से ग्रस्त  व्यक्ति की हर हरकत को समाज से छुपाया जाता है । अन्य बीमारीयों की ही तरह अवसाद भी एक घातक बीमारी है, जो कभी भी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। अवसाद वंशानुगत भी हो सकता है तो इस बीमारी के कई अन्य कारण भी हो सकते है जैसे सामाजिक, आर्थिक या वातावरण से संबंधित। अवसाद शरीर में हारमोन के असंतुलन के कारण भी हो सकता है। थाईराइड व मधुमेह के रोगियों को अवसाद होने की अधिक संभावना रहती है। अतः ऐसे रोगियों को अपना नियमित परीक्षण करवा कर चिकित्सक से समय-समय पर परामर्श लेते रहना चाहिए। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट के असंतुलन से भी व्यक्ति गंभीर मानसिक बीमारी की चपेट में आ सकता है। कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट और सोडियम जैसे मिनरल या खनिजों को इलेक्ट्रोलाइट्स कहा जाता है। इन खनिजों में बिजली का संचार होता है जो सोचने और देखने जैसी शारीरिक गतिविधियों के लिए आवश्यक बिजली के आवेगों को उत्पन्न करने में मदद करते हैं। इन दोनों के अलावा, कुछ सामान्य कारणों में डिहाइड्रेशन, एक्सरसाइज, विटामिन डी की कमी, नशीली दवाओं की लत, लैक्सेटिव का अधिक सेवन, सर्जरी जैसे कारण भी इलेक्ट्रोलाइट्स के असंतुलन की वजह बन सकते हैं।

मनोचिकित्सक द्वारा समय-समय पर  बीमार के खून का  परिक्षण करवा कर शरीर में उपरोक्त घटकों के अनुपात का पता लगा कर दवाईयां दी जाती हैं। कई बार गंभीर बीमारियों के इलाज हेतु ली गई दवाईयों के कारण भी मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। अतः मरीज को  पारिवारिक सदस्यों एवं मित्रों के सहयोग की आवश्यकता होती है। प्यार, स्नेह एवं  मनोवैज्ञानिक के साथ काउंसिलिंग करवाने से व्यक्ति अवसाद से उबर सकता है । आत्महत्या जैसे विचार करने वाले व्यक्ति को अकेला छोड़ना भयंकर भूल हो सकती है, वह कभी भी स्वयं को चोट पहुंचा सकता है। अतः ऐसे व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक से लंबे समय तक काउंसिलिंग की जरूरत होती है । मनोचिकित्सक द्वारा दी गई दवाओं का  सेवन भी अति आवश्यक है। परिस्थितिवश समाज के हर व्यक्ति को उसकी बीमारी से अवगत करवा कर एक सुरक्षा घेरा बनाया जा सकता है, जिससे  हर वो व्यक्ति जो बिमार के संपर्क में हो उस की हरकतों पर पैनी नजर रख सके व उसे स्वयं को कोई हानि पहुंचाने से रोक सके।

भारतीय समाज की यह विडंबना रही है कि अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति को बीमार नहीं माना जाता है, उसे व उसके परिवार को प्रताडि़त करने का कोई भी अवसर निम्न सोच वाले लोग खोना नहीं चाहते और उन्हें समय-समय पर जलील करते रहते हैं। विकृत मानसिकता वाले सगे  संबंधी ही अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति व उसके परिवार पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते और स्थिति को और भी भयावह बना देते हैं । जबकि ऐसे समय में प्यार व अपनेपन की जरूरत दवाइयों से अधिक होती है । परिवार के लोग अवसाद के विषय में विस्तार से बात करने में हिचकिचाते हैं व इस बीमारी को छुपा कर रखते हैं। यही एक मात्र कारण है कि अवसाद भारत में महामारी का रूप धारण कर चुका है जिसके लिए न तो देश की सरकार सजग है और न ही समाज विभिन्न सामाजिक संस्थाओं एवं कार्यकर्ताओं को आगे आ कर लोगों को शिक्षित एवं जागरूक करने की पहल करने की अति आवश्यकता है।


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