उल्टे बांस बरेली को

By: Aug 15th, 2019 12:05 am

सुरेश सेठ

साहित्यकार

जनता प्रसन्न है क्योंकि उसे बताया जा रहा है कि देश में कार्य संस्कृति बदल गई। युग परिवर्तन के लक्षण अब साफ-साफ  नजर आने लगे हैं। ऐसी-ऐसी नई बातें सामने आ रही हैं कि आदमी दांतों तले अंगुली दबा कर कहे, अरे बाबा देखते ही देखते जमाना कयामत की चाल चल गया। ऐसा पहले तो नहीं होता था। हम सोचते हैं। अब फूल बिखेर कर इस परिवर्तन का स्वागत करें या माथा पीट कर चिल्लाएं हाए ऐसे भी दिन देखने थे। आपने पूछा अरे भई क्या हो गया जो तुम्हारी कल्पना से परे था। अच्छा हुआ है तो तुम अपना सिर झुका भाग्य को क्यों दोष दे रहे हो। बातें कई हैं। जैसे अभी-अभी हमें पता चला कि राज्य में एक नए जेल मंत्री नियुक्त हुए और जेल में बंद एक खरांट अपराधी ने फोन करके उन्हें कहा मुबारिक हो मंत्री जी, अब अवश्य हमारी अर्थात् जेल वासियों की जिंदगी में सुधार होगा। अब साहिब जेलर या जेल कर्मचारी या जेलों के आस-पास बसने वाली साधारण जनता उन्हें फोन करके बधाई देती या अपने हालात में सुधार की मांग करती तो बात समझ में आती थी। आखिर जेलों का आधुनिक नाम सुधार गृह भी तो है। उम्मीद की जाती है कि जब अपराधी सजा काट कर जेल से बाहर आएगा तो उसमें एक नए इंसान और एक नए नागरिक का निर्माण हो चुका होगा, लेकिन यह न थी हमारी किस्मत। जेलों का नाम रखा था सुधार गृह और ये बनवाये लगते हैं कुमार्ग घर। जो भी निकला देरी वज़्क से परेशान निकला की तरह जो भी अपराधी सजा काट कर इन कथित सुधार गृहों से निकलाए वह और भी दुर्दांत बन गया। जो जेबकतरा या अब डकैती और बड़ी चोरी के मन्सूबे बना रहा है। जो दंगे फसाद की धारा  सात इक्यावन में अंदर  हुआ था अब रिहा होकर इरादा-ए-कत्ल दफा 307 या सीधा कत्ल  दफा 302 की योजना के कीड़े ले आया है। पहले वह हफ्ता वसूल करने वाला सड़क छाप दादा था, अब सत्ता का दलाल बन सरकार की मूंछ का बाल बनने की शिक्षा ले आया है। अरे भाई यह मानव सुधार गृह हैं या अपराध जगत की अगली परीक्षा पास करवाने वाली स्कूली फैक्ट्रियां। कभी उन्हीं जेलों की सुरक्षा के लिए तैनात एक महानिदेशक सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्ति के बाद वह बार-बार चिल्लाते रहे। इन जेलों में बंद माफिया डॉनों ने एक समानांतर अपराध दुनिया बसा रखी है। नशों की तस्करी ये करें, अपहरण की फिरौतियां ये मांगें। यहां तक कि जेल में बैठ कर अपने गुर्गों या बंधुबांधवों को चुनाव लड़वाते ही नहीं के जितवाते भी हैं और खुद बाहुबली कहलाते हैं। जगत प्रसिद्ध नाटककार बनार्ड शाह भी कभी कहते रहे राजनीति शैतानों का अंतिम शरण-स्थल है। क्या उन्होंने यह उक्ति नहीं पढ़ी थी जो जेलों को इसकी जगह लेने वाला बताने पर तुल गए अजी तुलना नहीं तालमेल कहिए। नहीं तो भला उस अपराधी ने जेल मंत्री को बधाई का मोबाइल कैसे मिला लिया, इस बधाई संदेश पर गद्गद् होने की बजाय नेता जी क्या इस बात की जांच-पड़ताल न करवाए कि हमारी इन सुधार गृहों में कैदियों द्वारा मोबाइल के खुले इस्तेमाल का कुमार्ग कैसे अपनाया जा सका है। चलिए जांच पड़ताल के इस ठंडे बस्ते को पुकार लगानी बंद कीजिए। ठंडे बस्तों का यह भंडार गृह इतना बड़ा हो गया है कि इसमें से आती हुई वायवीय ठंडक भी सर्द पड़ते रक्त को गर्म नहीं करती।


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