किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

By: Aug 31st, 2019 12:05 am

दुर्योधन के प्रति कर्ण के स्नेह के कारण, यद्यपि अनिच्छुक रूप से, उसने अपने प्रिय मित्र के पांडवों के प्रति सभी कुकर्मों में उसका साथ दिया। कर्ण को पांडवों के प्रति दुर्योधन की दुर्भावनापूर्ण योजनाओं का ज्ञान था। उसे यह भी ज्ञान था कि असत के लिए सत से टकराने के कारण उसका पतन भी निश्चित है। जबकि कुछ लोगों का यह मानना है कि कुरु राजसभा में द्रौपदी के लिए ‘वेश्या’ शब्द का उपयोग करके कर्ण ने अपने नाम पर स्वयं कालिख पोत ली थी, वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि वह अपने इस कृत्य में सही था, क्योंकि पहले द्रौपदी ने उसे अपने स्वयंवर में ‘सूत पुत्र’ कहकर उसका अपमान किया था ताकि वह उसके स्वयंवर में प्रतियोगी न बन सके…

-गतांक से आगे…

उसे पीछे खिसकाना तो दूर, एक अणु के बराबर हिला पाना भी असंभव है, इस पर भी यदि कर्ण ने तुम्हारे रथ को दो कदम पीछे खिसका दिया तो यह आश्चर्य ही नहीं, अपितु प्रशंसा और गौरव की  बात है।     

कर्ण की छवि पर प्रश्नचिन्ह

दुर्योधन के प्रति कर्ण के स्नेह के कारण, यद्यपि अनिच्छुक रूप से, उसने अपने प्रिय मित्र के पांडवों के प्रति सभी कुकर्मों में उसका साथ दिया। कर्ण को पांडवों के प्रति दुर्योधन की दुर्भावनापूर्ण योजनाओं का ज्ञान था। उसे यह भी ज्ञान था कि असत के लिए सत से टकराने के कारण उसका पतन भी निश्चित है। जबकि कुछ लोगों का यह मानना है कि कुरु राजसभा में द्रौपदी के लिए ‘वेश्या’ शब्द का उपयोग करके कर्ण ने अपने नाम पर स्वयं कालिख पोत ली थी, वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि वह अपने इस कृत्य में सही था, क्योंकि पहले द्रौपदी ने उसे अपने स्वयंवर में ‘सूत पुत्र’ कहकर उसका अपमान किया था ताकि वह उसके स्वयंवर में प्रतियोगी न बन सके। फिर भी, अभिमन्यु के मारे जाने में कर्ण की भूमिका और एक योद्धा से अनेक योद्धाओं के लड़ने के कारण उसके एक महायोद्धा होने की छवि को कहीं अधिक क्षति पहुंची और फिर उसी युद्ध में उसकी भी वही गति हुई। महाभारत की कुछ व्याख्याओं के अनुसार, यही वह कृत्य था जिसने भली प्रकार से यह प्रमाणित कर दिया कि कर्ण युद्ध में अधर्म के पक्ष में लड़ रहा है और इस कृत्य के कारण उसके इस दुर्भाग्य का भी निर्धारण हो गया कि वह भी अर्जुन द्वारा इसी प्रकार मारा जाएगा जब वह शस्त्रास्त्र हीन और रथहीन हो और उसकी पीठ अर्जुन की ओर हो। कर्ण के पास सत्रहवें दिन के युद्ध में अर्जुन का वध करने का पूरा अवसर था, लेकिन युद्ध नियमों का पालन करते हुए उसने अर्जुन पर बाण नहीं चलाया क्योंकि तब तक सूर्यदेव अस्त हो चुके थे।

कर्ण की मृत्यु के कारक

कर्ण की मृत्यु के संबंध में निम्नलिखित कारक गिनाए जा सकते हैं : एक, कर्ण की मृत्यु का सर्वप्रथम कारक तो स्वयं ऋषि दुर्वासा ही हैं। कुंती को यह वरदान देते समय कि वह किसी भी देव का आह्वान करके उनसे संतान प्राप्त कर सकती है, इस वरदान के परिणाम के बारे में नहीं बताया। इसलिए, कुंती उत्सुकतावश सूर्यदेव का आह्वान करती है और यह ध्यान नहीं रखतीं कि विवाह-पूर्व इसके क्या परिणाम हो सकते हैं और वरदानानुसार सूर्यदेव कुंती को एक पुत्र देते हैं। लेकिन लोक-लाज के भय से कुंती इस शिशु को गंगाजी में बहा देती है। तब कर्ण, महाराज धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिलता है। वे उसका लालन-पालन करते हैं और इस प्रकार कर्ण की क्षत्रिय पहचान निषेध कर दी जाती है। कर्ण, न कि युधिष्ठिर या दुर्योधन, हस्तिनापुर के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी था, लेकिन यह कभी हो न सका क्योंकि उसका जन्म और पहचान गुप्त रखे गए।                     


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App