किसी अजूबे से कम नहीं हैं
महाभारत के पात्र
माता कुंती को दिए वचनानुसार उसने किसी भी पांडव का वध नहीं किया। कर्ण ने अपना विजय धनुष उठाया और अर्जुन पर भार्गवास्त्र चला दिया। भार्गवास्त्र से करोड़ों योद्धा मारे गए और बाकी प्राणों की रक्षा के लिए अर्जुन के पास गए। अर्जुन ने कहा कि भार्गवास्त्र को निरस्त करना असंभव है और अगर कर्ण उसको भागने देगा तो वह युद्ध से भाग जाएगा। कृष्ण ने भयभीत अर्जुन को देखा और सोचा कि कर्ण जब थक जाएगा तब अर्जुन को उसके सामने लाना ठीक होगा। इतना सोचकर कृष्ण ने अर्जुन के लिए पलायन का मार्ग बनाया…
-गतांक से आगे…
माता कुंती को दिए वचनानुसार उसने किसी भी पांडव का वध नहीं किया। कर्ण ने अपना विजय धनुष उठाया और अर्जुन पर भार्गवास्त्र चला दिया। भार्गवास्त्र से करोड़ों योद्धा मारे गए और बाकी प्राणों की रक्षा के लिए अर्जुन के पास गए। अर्जुन ने कहा कि भार्गवास्त्र को निरस्त करना असंभव है और अगर कर्ण उसको भागने देगा तो वह युद्ध से भाग जाएगा। कृष्ण ने भयभीत अर्जुन को देखा और सोचा कि कर्ण जब थक जाएगा तब अर्जुन को उसके सामने लाना ठीक होगा। इतना सोचकर कृष्ण ने अर्जुन के लिए पलायन का मार्ग बनाया। अर्जुन को जान बचाकर भागता देख कर्ण ने भार्गवास्त्र को वापस ले लिया। सत्रहवें दिन के युद्ध में आखिरकार वह घड़ी आ ही गई जब कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आ गए। इस शानदार संग्राम में दोनों ही बराबर थे। कर्ण को उसके गुरु परशुराम द्वारा विजय नामक धनुष भेंट स्वरूप दिया गया था, जिसका प्रतिरूप स्वयं विश्वकर्मा ने बनाया था। दुर्योधन के निवेदन पर पांडवों के मामा शल्य, कर्ण के सारथी बनने के लिए तैयार हुए। दरअसल अर्जुन के सारथी स्वयं श्रीकृष्ण थे और कर्ण किसी भी मामले में अर्जुन से कम न हो, इसके लिए शल्य से सारथी बनने का निवेदन किया गया क्योंकि उनके अंदर वे सभी गुण थे जो एक योग्य सारथी में होने चाहिए। रण के दौरान अर्जुन के बाण कर्ण के रथ पर लगे और उसका रथ कई गज पीछे खिसक गया। लेकिन, जब कर्ण के बाण अर्जुन के रथ पर लगे तो उसका रथ केवल कुछ ही बालिश्त (हथेली जितनी दूरी) दूर खिसका। इस पर श्री कृष्ण ने कर्ण की प्रशंसा की। इस बात पर चकित होकर अर्जुन ने कर्ण की इस प्रशंसा का कारण पूछा क्योंकि उसके बाण रथ को पीछे खिसकाने में अधिक प्रभावशाली थे। तब कृष्ण ने कहा कि कर्ण के रथ पर केवल कर्ण और शल्य का भार है, लेकिन अर्जुन के रथ पर तो स्वयं वे और हनुमान विराजमान हैं और तब भी कर्ण ने उनके रथ को कुछ बालिश्त पीछे खिसका दिया। इसी प्रकार कर्ण ने 13 बार अर्जुन के धनुष की प्रत्यंचा काट दी। कर्ण और अर्जुन ने दैवीय अस्त्रों को चलाने के अपने-अपने ज्ञान का पूर्ण उपयोग करते हुए बहुत लंबा और घमासान युद्ध किया। कर्ण द्वारा अर्जुन का सिर धड़ से अलग करने के लिए नागास्त्र का प्रयोग किया गया। लेकिन श्री कृष्ण द्वारा सही समय पर रथ को भूमि में थोड़ा सा धंसा लिया गया जिससे अर्जुन बच गया। इससे नागास्त्र अर्जुन के सिर के ठीक ऊपर से उसके मुकुट को छेदता हुआ निकल गया। नागास्त्र पर उपस्थित अश्वसेना नाग ने कर्ण से निवेदन किया कि वह उस अस्त्र का दोबारा उपयोग करे ताकि इस बार वह अर्जुन के शरीर को बेधता हुआ निकल जाए, लेकिन कर्ण माता कुंती को दिए वचन का पालन करते हुए उस अस्त्र के पुनः प्रयोग से मना कर देता है।
अर्जुन ने किया कर्ण का वध
यद्यपि युद्ध गतिरोधपूर्ण हो रहा था, लेकिन कर्ण तब उलझ गया जब उसके रथ का एक पहिया धरती में धंस गया, धरती माता के श्राप के कारण। वह अपने को दैवीय अस्त्रों के प्रयोग में भी असमर्थ पाता है, जैसा कि उसके गुरु परशुराम का श्राप था। तब कर्ण अपने रथ के पहिए को निकालने के लिए नीचे उतरता है और अर्जुन से निवेदन करता है कि वह युद्ध के नियमों का पालन करते हुए कुछ देर के लिए उस पर बाण चलाना बंद कर दे।
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