‘क’ विष बीज, तो ‘ख’ स्तंभन बीज है

By: Aug 31st, 2019 12:05 am

अं – गजराज (हाथी) आदि वन्य जीवों को वश में करने वाला अः – मृत्युनाशक।  क : विष बीज है। ख : स्तंभन बीज है। ग : गणपति बीज है। घ : स्तंभन बीज है। ड. : असुर बीज है। च : चंद्रमा बीज है। छ : लाभ बीज है। यह मृत्युनाशक है। ज : ब्रह्मराक्षस बीज है। झ : चंद्रमा बीज है। यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्षप्रद है। ट : क्षोभण बीज है। यह चित्त को चंचल करने वाला है। ठ : चंद्रमा बीज है। यह विष तथा अपमृत्यु नाशक है। ड : गरुड़ बीज है। ढ : कुबेर बीज है। उत्तराभिमुख होकर चार लाख जप करने से धन-धान्य की वृद्धि करता है। ण : असुर बीज है। त : अष्ट वसुओं का बीज है। थ : यम बीज है। यह मृत्यु के भय को मिटाता है…

-गतांक से आगे…

ए – वशीकरण का कारक (किसी व्यक्ति को अपने अनुकूल बनाने वाला)

ऐ – पुरुष का वशीकरण

ओ – लोक वश्यकारक

औ – राज वश्यकारक

अं – गजराज (हाथी) आदि वन्य जीवों को वश में करने वाला अः – मृत्युनाशक।  क : विष बीज है। ख : स्तंभन बीज है। ग : गणपति बीज है। घ : स्तंभन बीज है। ड. : असुर बीज है। च : चंद्रमा बीज है। छ : लाभ बीज है। यह मृत्युनाशक है। ज : ब्रह्मराक्षस बीज है। झ : चंद्रमा बीज है। यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्षप्रद है। ट : क्षोभण बीज है। यह चित्त को चंचल करने वाला है। ठ : चंद्रमा बीज है। यह विष तथा अपमृत्यु नाशक है। ड : गरुड़ बीज है। ढ : कुबेर बीज है। उत्तराभिमुख होकर चार लाख जप करने से धन-धान्य की वृद्धि करता है। ण : असुर बीज है। त : अष्ट वसुओं का बीज है। थ : यम बीज है। यह मृत्यु के भय को मिटाता है। द : दुर्गा बीज है। यह वश्य एवं पुष्टि कर्म के निमित्त उत्तम है। ध : सूर्य बीज है। यह यश और सुख की वृद्धि करता है। न : ज्वरनाशक है। यह एकांतर एवं तिजारी ज्वर को दूर करता है। प : वीरभद्र और वरुण बीज है। फ : विष्णु बीज है। यह धन-धान्य की वृद्धि करता है। ब : ब्रह्म बीज है। यह त्रिदोषनाशक है। भ : भद्रकाली का बीज है। यह भूत-प्रेत और पिशाचादि के भय का शमन करता है। म : माला, अग्नि तथा रुद्र का बीज है जो स्तंभन और मोहन कर्म के लिए उपयोगी है। यह अष्ट महासिद्धि देने वाला है। य : उच्चाटनकारण वायु बीज है। र : उग्र कर्मों की सिद्धि देने वाला अग्नि बीज है। ल : धन-धान्य की वृद्धि करने वाला इंद्र बीज है। व : विष तथा मृत्यु का नाशक वरुण बीज है। श : एक लाख जप से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति कराने वाला लक्ष्मी बीज है। ष : धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला सूर्य बीज है। स : ज्ञानसिद्धि तथा वाकसिद्धि प्रदान करने वाला वाणी बीज है। ह : आकाश एवं शिव का बीज है। क्ष : पृथ्वी बीज है। यही नृसिंह तथा भैरव का भी बीज है। यदि उपरोक्त किसी भी अक्षर का जप करना हो तो उस पर अनुनासिक चंद्रबिंदु लगाकर तथा ‘ह्रीं’ बीज का संपुट करके (आदि और अंत में जोड़कर) जप करना चाहिए। वैसे तंत्र ग्रंथों में प्रत्येक वर्ण का ध्यान भी प्राप्त होता है, जैसे : अ-कारं वृत्तासन गजवाहनं हेमवर्ण कुंकुमगंधं लवणस्वादुं जबूद्वीपविस्तीर्णं चतुर्मुखमष्टबाहुं कृष्णलोचनं जटा-मुकुटधारिणं सितवर्णं मौक्तिकाभरणमतीव बलिनं गंभीरं पुल्लिंगं ध्यायामि। 


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