घाटी सुब्रमण्या मंदिर

By: Aug 10th, 2019 12:17 am

हिंदू धर्म में सर्पों की पूजा का विशेष महत्त्व है। नाग पंचमी के अवसर पर देशभर के मंदिरों में नाग देवता की पूजा की जाती है। बंगलूर शहर से 60 किमी. की दूरी पर डोड्डाबल्लापुरा तालुका के पास नाग देवता का विशेष मंदिर है, जिसे घाटी सुब्रमण्या मंदिर के नाम से जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान कार्तिकेय सभी नागों के स्वामी माने गए हैं। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रमण्या नाम से भी जाना जाता है। सुब्रमण्या घाटी मंदिर में भगवान सुब्रमण्या की सात मुख वाले सर्प के रूप में पूजा होती है। इस मंदिर में दोष निवारण पूजा जैसे सर्प दोष और नाग प्रतिष्ठापन आदि भी किया जाता है।

भगवान नरसिंह हुए थे प्रकट

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर भगवान सुब्रमण्या ने सर्प के रूप में तपस्या की थी। इस दौरान उन्हें एक नाग परिवार के बारे में पता चला जिसे भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ परेशान कर रहा था। इसलिए भगवान सुब्रमण्या ने भगवान विष्णु का ही अवतार माने जाने वाले भगवान नरसिंह की तपस्या की और उनसे प्रार्थना की कि वह गरुड़ को ऐसा करने से रोक लें। अंततः यहां पर भगवान विष्णु अपने नरसिंह रूप में प्रकट हुए थे और भगवान सुब्रमण्या की बात मान ली थी। यही वजह है कि इस स्थान पर भगवान सुब्रमण्या और नरसिंह दोनों की पूजा की जाती है।

सात मुख वाली मूर्ति है स्थापित

मंदिर के मुख्य परिसर में ही भगवान नरसिंह और भगवान सुब्रमण्या की सात मुख वाली मूर्ति स्थापित है। यहां पर भगवान कार्तिकेय ने पूर्व की ओर व भगवान नरसिंह ने पश्चिम की ओर मुख किया है। इसलिए परिसर के ऊपर एक दर्पण लगाया गया है जिसमें भक्त दोनों देवताओं के एक साथ दर्शन कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति स्वयंभू है और इसी स्थान प्रकट हुई थी।

श्रद्धालु स्थापित करते हैं सर्प

मान्यता है कि इस मंदिर में यदि निसंतान दंपति नाग देवता की मूर्ति स्थापित करते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। इसके लिए मंदिर में नाग प्रतिष्ठापन के लिए जगह तय है। इस जगह श्रद्धालुओं द्वारा स्थापित सर्पों की अनेक मूर्तियां रखी हुई हैं। मंदिर में स्थित सर्प की मूर्ति पर श्रद्धालु दूध अर्पित करते हैं।

लगता है मेला

मान्यता है कि यह मंदिर 600 वर्ष से ज्यादा पुराना है। वास्तविक मंदिर को संदूर के शासक घोरपड़े ने बनवाया था। कहा जाता है कि बाद में इस मंदिर को अन्य राजाओं द्वारा विकसित किया गया। ये तीर्थस्थल द्रविड़ शैली में बना है। इस मंदिर में नाग पंचमी और नरसिंह जयंती का त्योहार विशेष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके साथ ही यहां पर वार्षिक उत्सव के रूप में पुष्य शुद्ध षष्ठी भी मनाई जाती है, जिस पर मंदिर परिसर में मेला भी लगता है।


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