टिकरी खड्ड का निर्माण करता है भराड़ा धारा का जल

By: Aug 21st, 2019 12:20 am

भराड़ा धारा का सारा जल एकत्रित होकर टिकरी खड्ड का निर्माण  करता है तथा इस खड्ड का जल चान्जू खड्ड में विलय हो जाता है। सिंधनाड़ की पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली गूणू खड्ड का भी चान्जू खड्ड में विलय हो जाता है। सिधंनाड़ की पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली गूणू खड्ड स्यूल सपड़ाह नामक स्थान पर स्यूल नदी में  मिल जाती है…

गतांक से आगे …           

अप्पर चुराह की प्रसिद्ध जोत द्राटी और महलवा की सभी जलधाराएं ‘ खन्जू खड्ड’ का सजृन करती हैं। इस जलधारा में मुख्यतः चार अन्य खड्डें मिलती हैं। द्राटी की उत्तरी पर्वत मालाओं का जल देहरा खड्ड और स्वाला खड्ड का सृजन करती हैं। ये दोनों खड्डें भी  सम्मिलित हो जाती हैं महलवा जोत की पर्वत श्रेणियों से  प्रवाहित होने वाली चरड़ा खड्ड और बधेई खड्ड भी इस जल वाहिनी की मुख्य धारा में मिल जाती है। भराड़ा धारा का सारा जल एकत्रित होकर टिकरी खड्ड का निर्माण  करता है तथा इस खड्ड का जल चान्जू खड्ड में विलय हो जाता है।। सिंधनाड़ की पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली गूणू खड्ड का भी चान्जू खड्ड में विलय हो जाता है। सिधंनाड़ की पर्वत श्रेणियों से निकलने वाली गूणू खड्ड स्यूल सपड़ाह नामक स्थान पर स्यूल नदी में  मिल जाती है। इसके अतिरिक्त कई और छोटी छोटी खड्डे जो स्यूल नदी से मिलकर अंतत ः रावी नदी में  मिल जाती है।  इनमें प्रमुख हैं: सितार खड्ड , घराट खड्ड, सुंडला खड्ड, कंदला खड्ड, कहलाती हैं।  यह खड्ड भी स्यूल नदी में मिल जाती हैं। टिक्करी झुलाड़ा की पहाडि़यों से प्रवाहित होने वाली करोडी खड्ड भी कोटी गांव के समीप रूयूल नदी में मिल जाती है। लोअर चुराहा के  चौहड़ा नामक स्थान पर  स्यूल नदी और रावी नदी का परस्पर संगम होता है। और उसके आगे यह नदी विशाल रावी के  नाम से जानी जाती है। हिमाचल प्रदेश में इसका  स्त्रवण क्षेत्र 5451 किलोमीटर है। चंबा इसके दोनों तटों पर बसने वाला हिमाचल का प्रसिद्ध  शहर है। चंबा शहर के साथ बहती हुई हिमाचल प्रदेश में  कुल 158 किलोमीटर बह कर यह खेडी नामक स्थान पर  पंजाब में प्रवेश करती हैं।

चिनाब

वेदों  में असीकनी के नाम से वर्णित यह नदी बृहद हिमालय पर्वत श्रृंखला के बारालाचा दर्रे के आर-पार से समुद्रतल से लगभग 4891 मीटर की  ऊंचाई से निकलने वाली चंद्रा और भागा नामक दो नदियों के ‘तांदी’ नामक स्थान पर  मिलनें से बनती हैं। ‘भुजिद’ नामक स्थान पर यह पांगी घाटी में प्रविष्ट होती है।

      -क्रमशः


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