ड्ढवास्तु देवता की पूजा कैसे करें
इसका भाव इस प्रकार है- हे वास्तुदेव, हम आपके सच्चे उपासक हैं, इस पर आप पूर्ण विश्वास करें और तदनंतर हमारी स्तुति-प्रार्थनाओं को सुनकर आप हम सभी उपासकों को आधि-व्याधि मुक्त कर दें और जो हम अपने धन-ऐश्वर्य की कामना करते हैं, आप उसे भी परिपूर्ण कर दें। साथ ही इस वास्तुक्षेत्र या गृह में निवास करने वाले हमारे स्त्री-पुत्रादि परिवार-परिजनों के लिए कल्याणकारक हों तथा हमारे अधीनस्थ गौ, अश्वादि सभी चतुष्पद प्राणियों का भी कल्याण करें…
-गतांक से आगे…
वास्तोष्पते प्रति जानीह्यस्मान तस्वावेशो अनमीवोः भवानः।
यत त्वेमहे प्रति तन्ने जुषस्व शां नोभव द्विपदे शं चतुष्पदे।।
-(ऋग्वेद 7/54/1)
इसका भाव इस प्रकार है- हे वास्तुदेव, हम आपके सच्चे उपासक हैं, इस पर आप पूर्ण विश्वास करें और तदनंतर हमारी स्तुति-प्रार्थनाओं को सुनकर आप हम सभी उपासकों को आधि-व्याधि मुक्त कर दें और जो हम अपने धन-ऐश्वर्य की कामना करते हैं, आप उसे भी परिपूर्ण कर दें। साथ ही इस वास्तुक्षेत्र या गृह में निवास करने वाले हमारे स्त्री-पुत्रादि परिवार-परिजनों के लिए कल्याणकारक हों तथा हमारे अधीनस्थ गौ, अश्वादि सभी चतुष्पद प्राणियों का भी कल्याण करें। वैदिक संहिताओं के अनुसार ‘वास्तोष्पति’ साक्षात परमात्मा का नाम नामांतर है, क्योंकि ये विश्वब्रह्मांडरूपी वास्तु के स्वामी हैं। आगमों एवं पुराणों के अनुसार वास्तुपुरुष नामक एक भयानक उपदेवता के ऊपर ब्रह्मा, इंद्र आदि अष्टलोकपाल सहित 45 देवता अधिष्ठित होते हैं, जो वास्तु का कल्याण करते हैं। कर्मकांड ग्रंथों तथा ग्रह्यसूत्रों में इनकी उपासना और हवन आदि के अलग-अलग मंत्र निर्दिष्ट हैं। यद्यपि तड़ाग, आराम, कूप, वापी, ग्राम, नगर और गृह, प्रासाद तथा दुर्ग आदि के निर्माण में विभिन्न प्रकार के कोष्ठकों वास्तुमंडप की रचना का विधान है, किंतु उनमें मुख्य उपास्य देवता 45 ही होते हैं। हयशीर्षपांचरात्र, कपिल-पांचरात्र, वासुराजवल्लभ आदि ग्रंथों के अनुसार प्रायः सभी वास्तु संबंधी कृत्यों में एकाशीति (81) तथा चतुष्पष्ट (64) कोष्ठात्मक चक्रयुक्त वास्तुवेदी के निर्माण करने की विधि है। इन दोनों में सामान्य अंतर है। एकाशीति पद वास्तुमंडल की रचना में उत्तर-दक्षिण में पूर्व-पश्चिम से 10-10 रेखाएं खींची जाती हैं। और चक्र रचना के समय 20 देवियों के नामोल्लेखपूर्वक नमस्कार मंत्र से रेखाकरण-क्रिया संपन्न की जाती है। इसी प्रकार चतुष्षष्टिपदवास्तुमंडल में दोनों ओर से 9-9 रेखाएं होती हैं। वास्तुवेदी में श्वेत वस्त्र बिछा कर उसमें कुंकुम आदि के द्वारा पूर्व-पश्चिम 9 रेखाएं खींची जाती हैं। ये 9 रेखाएं 9 देवियों की प्रतिनिधिभूत हैं। इन्हें रेखा-देवता भी कहा जाता है। रेखा खींचते समय क्रमशः नाम-मंत्रों या वेद-मंत्रों से इन देवियों को नमस्कार करना चाहिए।
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