ताजमहल या तेजो महालय, जानिए रहस्य

By: Aug 17th, 2019 12:05 am

शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु हो गई थी। इतिहास में मुमताज से शाहजहां के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता है। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। शाहजहां युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह अपने सारे विरोधियों की हत्या करने के बाद गद्दी पर बैठा था…

-गतांक से आगे…

शाहजहां के बादशाह बनने के बाद ढाई-तीन वर्ष में ही मुमताज की मृत्यु हो गई थी। इतिहास में मुमताज से शाहजहां के प्रेम का उल्लेख जरा भी नहीं मिलता है। यह तो अंग्रेज शासनकाल के इतिहासकारों की मनगढ़ंत कल्पना है जिसे भारतीय इतिहासकारों ने विस्तार दिया। शाहजहां युद्ध कार्य में ही व्यस्त रहता था। वह अपने सारे विरोधियों की हत्या करने के बाद गद्दी पर बैठा था। ब्रिटिश ज्ञानकोष के अनुसार ताजमहल परिसर में अतिथि गृह, पहरेदारों के लिए कक्ष, अश्वशाला इत्यादि भी हैं। मृतक के लिए इन सबकी क्या आवश्यकता?

ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के सबूत

इतिहासकार पुरुषोत्तम ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं। सबसे पहले यह कि मुख्य गुंबद के किरीट पर जो कलश है, वह हिंदू मंदिरों की तरह है। यह शिखर कलश आरंभिक 1800 ईस्वी तक स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। आज भी हिंदू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है। यह हिंदू मंदिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है। अपने नियोजन के कारण चंद्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती है जो कि हिंदू भगवान शिव का चिह्न है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुंबद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।

शाहजहां द्वारा ताजमहल बनाने के कोई सबूत नहीं

इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था। यह सब मनगढ़ंत बाते हैं जो अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकारों ने 18वीं सदी में लिखी। दरअसल 1632 में हिंदू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ।  1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिंदू शैली का छोटे गुंबद के आकार का मंडप है और अत्यंत भव्य प्रतीत होता है। आस-पास मीनारें खड़ी की गईं और फिर सामने स्थित फव्वारे को फिर से बनाया गया।


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