नेरवा अस्पताल कागजों में गुम

छह दशक से घोषणाओं तक सीमित है प्रोजेक्ट; कागजों में पांच बार हो चुका है स्तरोन्नत, लोगों को नहीं मिली सुविधाएं

नेरवा -आज हम आपको उपमंडल चौपाल का हृदय और केंद्र बिंदु कहलाए जाने वाले नेरवा स्थित अस्पताल के छह दशक के सिसकते सफर से रू-ब-रू करवा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि छह दशक के इस सफर में अस्पताल के लिए कुछ न किया गया हो, परंतु जो किया गया है व सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। कागजों में यह अस्पताल पांच मर्तबा स्तरोन्नत हो चुका है। साठ के दशक में डिस्पेंसरी के रूप में अस्तित्व में आए इस अस्पताल कर दर्जा बढ़ा कर पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र किया गया,उसके बाद इसका दर्जा बढ़ा कर इसे सामुदायिक केंद्र बनाया गया। तीन सितंबर 2006 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसे एफआरयू का दर्जा प्रदान करते हुए इसका शिलान्यास किया। इसी प्रकार अस्पताल के नाम को एक और स्तरोन्नति 26 जून 2014 को 50 बिस्तरों वाले नागरिक अस्पताल के रूप में मिली व अस्पताल के प्रांगण में एक और शिलान्यास पट्टिका सुशोभित हो गई। इसके बाद बीते साल जुलाई माह में मुख्यमंत्री के नेरवा दौरे के दौरान जिस अस्पताल में डाक्टरों के बैठने के लिए स्थान नहीं है। उसमें मूलभूत सुविधाएं जुटाने के स्थान पर उसे एक बार फिर से स्तरोन्नत कर 50 से 75 बिस्तरों का करने की घोषणा की गई। बहरहाल, मात्र कागजी घोषणाओं के चलते  बार-बार किए गए इन शिलान्यासों की पट्टिकाएं अस्पताल आने वालों का मुंह चिढ़ाती नजर आती है। अस्पताल के नए भवन के टेंडर तीन साल पहले 2016 में लग गए थे,तब से ही इसका निर्माण कार्य चला हुआ है। अब लोगों का एक ही सवाल है कि इस का निर्माण कार्य पूरा होने में और कितने साल लगेंगे और कब इस अस्पताल में उचित सुविधाएं मिलेंगी। कागजों में सीएचसी का दर्जा प्राप्त 75 बिस्तरों के इस कागजी अस्पताल में एक भी विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं। लंबे समय से एकाध नियमित चिकित्सक को छोड़ बाकी चिकित्सक अनुबंध पर ही तैनात रहे हैं। एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड के लिए लोगों को 125 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।