बक्सरः यहां राम ने किया था ताड़का का वध

By: Aug 31st, 2019 12:07 am

श्री राम कथा में रुचि रखने वाले लोग बक्सर का नाम बड़े आदर से लेते हैं। यही वह जगह है जहां त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने धर्म की रक्षा के लिए सुकेतु यक्ष की कन्या ताड़का का वध किया था। महात्मा बुद्ध की तपस्थली, भगवान महावीर स्वामी की जन्मस्थली बिहार राज्य का छोटा सा जनपद है बक्सर। कहते हैं कि वाल्मीकि रामायण का गहनता से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि श्रीराम ताड़का का वध करना नहीं चाहते थे, क्योंकि वह स्त्री थी। विश्वामित्र के बार-बार कहने पर राम ने उनसे कहा, महामुनि भला मैं इसे कैसे मार सकता हूं, यह तो स्त्री है। इसका वध संस्कृति के विपरीत है। इस पर विश्वामित्र ने राम को राजधर्म के बारे में समझाते हुए कहा, प्रजापालक नरेश को प्रजाजनों की रक्षा के लिए क्रूरतापूर्ण अथवा क्रूरता रहित, पातकयुक्त कर्म भी करना पड़े, तो करना चाहिए।  अतः हे रघुनंदन एक हजार हाथियों के बल वाली ताड़का महापापिनी है। 

यहीं पाई थी शस्त्रविद्या : वाल्मीकि रामायण के बालकांड के 25वें, 26वें और 27वें सर्ग में उल्लेख मिलता है कि चैत्र रथवन या चरित्रवन (बक्सर) में ही ताड़का वध से प्रसन्न होकर विश्वामित्र ने राम को दिव्यास्त्र दिए थे। इसी स्थान पर उन्होंने राम और लक्ष्मण को शिक्षा दी थी और यहीं पर दोनों भाइयों को धनुर्विद्या भी सिखाई थी। युगों-युगों से भारत एवं भारतीयों के सुख-दुःख की संगिनी रही गंगा के किनारे बसा और कभी विश्वामित्र एवं राम का साक्षी रहा बक्सर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यदि हम धर्म ग्रंथों का अवलोकन करें, तो पाते हैं कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर दैत्यराज बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। इसकी प्रामाणिकता को सिद्ध करता है बक्सर जिले के केंद्रीय कारागार में बना भगवान वामन का प्राचीन मंदिर। राम रेखाघाट, नाथघाट, लक्ष्मीनारायणघाट, रानीघाट से सुशोभित उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर स्थित सिद्धाश्रम अति प्रसिद्ध है।

व्याघ्रसर से बना बक्सर : बक्सर के नामकरण के बारे में ठीक-ठीक तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सामान्य जनमानस में प्रचलित कथाओं के आधार पर बताया जाता है कि पूर्वकाल में इसी स्थान पर ऋषि दुर्वासा और वेदसिरा ऋषि ने तप किया था। एक-दूसरे से खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए एक दिन वेदसिरा व्याघ्र का रूप धारण कर दुर्वासा को डराने पहुंच गए। अपने तपोबल से वेदसिरा को पहचानते ही दुर्वासा ने उन्हें श्राप दे डाला। वेदसिरा के बार-बार विनय करने पर उन्होंने श्राप से मुक्ति का मार्ग बताते हुए कहा कि सिद्धाश्रम क्षेत्र में एक सरोवर है, जहां स्नान करने पर तुम्हें श्राप से मुक्ति मिलेगी और तुम व्याघ्र से पुनः ऋषि रूप में आ जाओगे। तब वेदसिरा ने इसी सरोवर में स्नान कर श्राप से मुक्ति पाई। इस ‘सर’ (सरोवर) का नाम व्याघ्रसर हो गया। यह आज भी बक्सर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित है और श्रद्धालु यहां स्नान करने आते हैं। संभवतः वेदसिरा और दुर्वासा की कहानियों से जुड़ा व्याघ्रसर कालांतर में बक्सर नाम से प्रसिद्ध हो गया।

बैकुंठनाथ मंदिर : आधुनिक बक्सर का मुख्य आकर्षण है बैकुंठनाथ मंदिर, जिसे नौलखा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर मीनाक्षी मंदिर का आभास कराता है। निर्माण की दृष्टि से इसे 3 भागों, गोपुरम, यज्ञमंडपम और गर्भगृह में बांट सकते हैं। लगभग 40 फुट ऊंचे मंदिर के शिखर को यक्षों, गंधर्वों एवं अन्य कलाकृतियों से सजाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमाएं हैं। अपने आपमें अनोखे इस मंदिर में सुबह भगवान बैकुंठनाथ को दूध और मिसरी का भोग लगता है। इसके बाद चावल और मूंग की दाल की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। बक्सर के अन्य दर्शनीय स्थलों में गंगा किनारे स्थित त्रिदंडी स्वामी मंदिर, नाथ घाट पर स्थित आदिनाथ मंदिर और रामरेखा घाट सहित अन्य मंदिर और घाट अति दर्शनीय हैं।


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