भृगु ने ली त्रिदेवों की परीक्षा

By: Aug 17th, 2019 12:13 am

गतांक से आगे…

मैं ब्रह्मपुत्र भृगु जो महान सप्तर्षिओं में से एक है, स्वयं आपके सामने खड़ा है, किंतु आप समाधि का ढोंग कर मेरा अपमान कर रहे हैं। ये न भूलिए कि मैं आपका ससुर भी हूं और उस नाते आपको मेरे सम्मान हेतु अपने आसन से उठना चाहिए। महर्षि भृगु के इतना कहने पर भी जब नारायण योगनिद्रा से नहीं जागे, तो उन्हें लगा कि प्रभु जान बूझ कर उनकी अवहेलना कर रहे हैं। योगमाया से घिरे भृगु को उचित-अनुचित का ध्यान न रहा और उन्होंने क्रोध में आकर भगवान विष्णु के वक्ष पर प्रहार कर दिया। त्रिलोक ये देख कर कांप उठा कि इस जगत के पालनहार के वक्ष पर एक मनुष्य ने अपने पैरों से प्रहार किया। देवता और सप्तर्षि ये सोच कर चिंतित हो उठे कि अब पता नहीं भृगु को इस अपराध का क्या दंड मिले। नारायण पर प्रहार करते ही महर्षि भृगु उनकी माया से बाहर निकल आए। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि उन्होंने कितना बड़ा पाप कर दिया है, तो लज्जा के मारे उनके नेत्र न उठे। उसी समय भृगु के पाद प्रहार के कारण नारायण जागे और इससे पहले भृगु कुछ समझ पाते, भगवान विष्णु ने शेषशैय्या से उतर कर उनके पैर पकड़ लिए। उन्होंने कहा, हे महर्षि! आपने मेरे वज्र समान वक्ष पर प्रहार किया। कहीं उससे आपके पैरों में कोई आघात तो नहीं पहुंचा। मैं अत्यंत लज्जित हूं कि मेरे कारण आपको ऐसा कष्ट उठाना पड़ा। अब क्या था? महर्षि भृगु नारायण के चरणों में गिर गए और अपने अश्रुओं से उनके चरण पखारने लगे। आत्मग्लानि के कारण उनके अश्रु रुक ही नहीं पा रहे थे। अंततः नारायण ने स्वयं उन्हें उठाया और उनके अश्रु पोंछे। तब उनकी इस विनम्रता से अभिभूत महर्षि भृगु ने समस्त जगत में घोषणा की, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का महत्त्व एक सामान ही है किंतु इन तीनों में केवल भगवान विष्णु ही त्रिगुणातीत हैं।                                                         -समाप्त


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