भ्रष्टाचार से आजादी की दरकार

By: Aug 19th, 2019 12:05 am

जगदीश बाली

लेखक, शिमला से हैं

वैसे तो भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति शोचनीय है, परंतु भोले-भाले व ईमानदार लोगों का प्रदेश माना जाने वाले इस राज्य में भी भ्रष्टाचार के मामलों की कमी नहीं हैं। बात एक व्यक्ति की नहीं और न ही किसी एक व्यवसाय की। लगता है कि हर शाख पर उल्लू बैठा है। जब हर शाख पर उल्लू बैठा है, तो पेड़ के हरा-भरा बने रहने की कैसे उम्मीद करें। सरकारी गलियारों में ऊंचे-नीचे हर ओहदे पर बैठे अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार व घूसखोरी के मामले में अपना कमाल दिखाते रहते हैं…

अगर बागवां ही गुलों को मसलने पर तुला हो और माली ही पौधों की जड़ों में पानी की जगह तेल डालने में लगा हो, तो वो गुलशन कैसे आबाद व शादाब हो सकता है। ऐसा उस वक्त महसूस हुआ, जब चंद रोज पहले इसी समाचार पत्र के पहले पन्ने पर विजिलैंस द्वारा हिमाचल प्रदेश के जवाली के डीएसपी को पचास हजार की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने की खबर पढ़ी। इससे एक रोज पहले समाचार पत्र के उसी पहले पन्ने पर हिमाचल प्रदेश के परौर में सिपाही भर्ती की परीक्षा देने आए छह फर्जी मुन्नाभाइयों को पकड़े जाने व हमीरपुर में फर्जी  एडमिट कार्ड पर परीक्षा देने पहुंचे एक शातिर को परीक्षा हाल से गिरफ्तार किए जाने की खबर को पढ़ा। सोचिए ऐसे मुन्नाभाई जब सफल होते हैं, तो कैसे कर्मचारी व अधिकारी मिलेंगे। आप समझ सकते हैं। कुछ महीनों पहले प्रदेश के स्टेट विजीलैंस एवं एंटी क्रप्शन की टीम ने पांवटा साहिब में एक लाख रुपए की रिश्वत के मामले में दो बिचौलियों की गिरफ्तारी के साथ एक एचएएस अधिकारी को भी हिरासत में लिया था। इसके अलावा भी अफसरों की घूसखोरी के मामले अखबारों की सुर्खियां बनती रही है। इससे पहले अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड में हुए चिटों पर भर्ती घोटाले में एक पूर्व अध्यक्ष भी संलिप्त पाए गए थे। फर्जी प्रमाणपत्र के मामले में कई वर्ष पहले स्कूल शिक्षा बोर्ड के एक पूर्व अध्यक्ष भी जेल की हवा खा चुके हैं। ये बात भी सामने आती रही है कि ईमानदार अफसरों को अपनी ईमानदारी की कीमत भी चुकानी पड़ी है जो भ्रष्ट माफिया के बुलंद हौसलों को दर्शाता है।

कसौली में हुई महिला पुलिस अफसर की हत्या को अभी हम भूले नहीं हैं, जिसे अवैध निर्माण मामले में घूस न लेने के एवज में अपनी जान गंवानी पड़ी। वैसे तो भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति शोचनीय है, परंतु भोले-भाले व ईमानदार लोगों का प्रदेश माने जाने वाले इस राज्य में भी भ्रष्टाचार के मामलों की कमी नहीं है। बात एक व्यक्ति की नहीं और न ही किसी एक व्यवसाय की, लगता है कि हर शाख पर उल्लू बैठा है। जब हर शाख पर उल्लू बैठा है, तो पेड़ के हरा-भरा बने रहने की कैसे उम्मीद करें। सरकारी गलियारों में ऊंचे-नीचे हर ओहदे पर बैठे अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार व घूसखोरी के मामले में अपना कमाल दिखाते रहते हैं। वास्तविकता यह है कि कोई भी राज्य हो, कोई भी जगह हो, कोई विभाग हो, कोई व्यवसाय हो, भ्रष्टाचार हर जगह व्याप्त है। पिछले गणतंत्र दिवस पर कोटा में तैनात नारकोटिक्स डिप्टी कमिश्नर सहीराम मीणा ने तिरंगा फहराया व अपने भाषण में कर्मचारियों को ईमानदारी का सबक दिया। परंतु दो घंटे बाद ही एक लाख की घूस लेते भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। एक अन्य मामले में अल्मोड़ा के मुख्य शिक्षा अधिकारी को गणतंत्र दिवस पर सीएम अवॉर्ड से नवाजा गया परंतु चंद घंटों के बाद शिक्षकों की नियुक्ति में लाखों रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में उन्हें पद से हटा दिया गया।

शेयर घोटाला, चारा घोटाला, सीडब्लयू जी स्कैम, 2जी स्कैम, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी बैंक घोटाला ये सब मामले इस बात का द्योतक है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार बड़े-बड़े मंत्रियों व ओहदेदारों से आरंभ होता है और सबसे निचली पायदान चपड़ासी तक फैला है। सरकारी फाइलों पर भ्रष्टाचार का वजन इतना है कि फाइल चलाने के लिए छोटा आम आदमी मजबूरी में भ्रष्ट तरीके से काम निकलवाने में ही गनीमत मानता है। इंटरनेशनल ट्रांस्पेरैंसी इंडैक्स में भारत का 79वें से 81वें स्थान पर खिसक जाना बेमानी नहीं है। विडंबना है कि ऐसा उस देश में हो रहा है जहां सारनाथ के सिंहचतुर्मुख वाले अशोक स्तंभ पर लिखा सत्यमेव जयते नानृतंष् हमारा आदर्श वाक्य है और हमारे जीवन का मार्गदर्शन करता है।

दरअसल हमारी कथनी और करनी में जो अंतर है वो हमारी करतूतों में साफ  झलकता है। तभी तो धर्म और अध्यात्म की शिक्षा देने वाले कितने ही संत-गुरु बापू जेल की सलाखों के पीछे हैं। तभी तो गीता पर हाथ रख सत्य बोलने की सौगंघ खा कर बहुत सारा झूठ बोल कर ही अपराधियों को छुड़ा लिया जाता है। हमारे देश में सरकारी कर्मचारियों का वेतन इतना तो होता ही है कि वह आराम से अपना व परिवार का बोझ उठा सकता है। तो फिर इतनी लूट-खसूट क्यों? सीधा सा उत्तर है लालच, स्वार्थ और समाज व राष्ट्र के प्रति संवेदनहीनता जिसकी कोई सीमा नहीं। वास्तव में भ्रष्टाचार व बेईमानी हमारे चरित्र से जुड़ा हुआ प्रश्न है। नीदरर्लैंड के साथ संघर्ष में फ्रांस को जब खास सफलता नहीं मिली, तो वहां के सम्राट लुई चौदहवां अपने मंत्रियों को कोसने लगा। तभी उसके एक काबिल मंत्री जीन कॉल्बर्ट ने करारा जवाब देते हुए कहा -सर किसी राष्ट्र का बड़ा या छोटा होना उसकी लंबाई और चौड़ाई से निर्धारित नहीं होता, बल्कि उस देश में रहने वाले लोगों के चरित्र से होता है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।                                              

-संपादक


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