महिलाओं के उल्लास का त्योहार है हरियाली तीज 

By: Aug 3rd, 2019 12:08 am

हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। मुख्यतः यह स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘श्रावणी तीज’ कहते हैं। इसे ‘हरितालिका तीज’ भी कहते हैं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है…

पौराणिक महत्त्व

श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं। मां पार्वती का इस दिन पूजन विवाहित स्त्री-पुरुष के जीवन में हर्ष प्रदान करता है। समस्त उत्तर भारत में तीज पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। बुंदेलखंड के जालौन, झांसी, दनिया, महोबा, ओरछा आदि क्षेत्रों में इसे हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, मिर्जापुर, गोरखपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परंपरा है। लोकगायन की एक प्रसिद्ध शैली भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गई है जिसे कजली कहते हैं। राजस्थान के लोगों के लिए त्योहार ही जीवन का सार है। तीज के आगमन के हर्ष में मोर हर्षित होकर नृत्य करने लगते हैं। स्त्रियां उद्यानों में लगे रस्सी के झूले में झूलकर प्रसन्नचित होती हैं तथा सुरीले गीतों से वातावरण गूंज उठता है।

तीज उत्सव की परंपरा

तीज भारत के अनेक भागों में मनाई जाती है, परंतु राजस्थान की राजधानी जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है। तीज का आगमन भीषण ग्रीष्म ऋतु के बाद पुनर्जीवन व पुनर्शक्ति के रूप में होता है। यदि इस दिन वर्षा हो तो यह और भी स्मरणीय हो उठती है। लोग तीज जुलूस में ठंडी बौछार की कामना करते हैं। ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होने पर काले-कजरारे मेघों को आकाश में घुमड़ता देखकर पावस के प्रारंभ में पपीहे की पुकार और वर्षा की फुहार से आभ्यंतर आनंदित हो उठता है। ऐसे में भारतीय लोक जीवन कजली या हरियाली तीज का पर्वोत्सव मनाता है। आसमान में घुमड़ती काली घटाओं के कारण ही इस त्योहार या पर्व को कजली तीज तथा पूरी प्रकृति में हरियाली के कारण तीज के नाम से जाना जाता है। इस त्योहार पर लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर लड़की को ससुराल में नहीं छोड़ा जाता है। नवविवाहिता लड़की की ससुराल से इस त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है। हरियाली तीज से एक दिन पहले सिंजारा मनाया जाता है। इस दिन नवविवाहिता लड़की की ससुराल से वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई भेजी जाती है। इस दिन मेहंदी लगाने का विशेष महत्त्व है।

मेहंदी

स्त्रियां अपने हाथों पर त्योहार विशेष को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न प्रकार की मेहंदी लगाती हैं। मेहंदी रचे हाथों से जब वह झूले की रस्सी पकड़ कर झूला झूलती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता है, मानो सुहागिनें आकाश को छूने चली हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियां सुहागी पकड़कर सास के पांव छूकर उन्हें देती हैं। यदि सास न हो तो स्वयं से बड़ों को अर्थात जेठानी या किसी वृद्धा को देती हैं। इस दिन कहीं-कहीं स्त्रियां पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिह्न माना जाता है। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है। वास्तव में देखा जाए तो हरियाली तीज कोई धार्मिक त्योहार नहीं वरन् महिलाओं के लिए एकत्र होने का एक उत्सव है। नवविवाहित लड़कियों के लिए विवाह के पश्चात पड़ने वाले पहले सावन के त्योहार का विशेष महत्त्व होता है।

मेहंदी रचाने का उत्सव

इस अवसर पर नवयुवतियां हाथों में मेहंदी रचाती हैं। तीज के गीत हाथों में मेहंदी लगाते हुए गाए जाते हैं। समूचा वातावरण श्रृंगार से अभिभूत हो उठता है। इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता है महिलाओं का हाथों पर विभिन्न प्रकार से बेल-बूटे बनाकर मेहंदी रचाना। पैरों में आलता लगाना महिलाओं के सुहाग की निशानी है। राजस्थान में हाथों व पांवों में भी विवाहिताएं मेहंदी रचाती हैं। इस दिन राजस्थानी बालाएं दूर देश गए अपने पति के तीज पर आने की कामना करती हैं, जो कि उनके लोकगीतों में भी मुखरित होता है। तीज पर तीन बातें त्यागने का विधान है ः पति से छल-कपट, झूठ एवं दुर्व्यवहार करना तथा परनिंदा।

मल्हार और झूलों का उत्सव

तीज के दिन का विशेष कार्य होता है खुले स्थान पर बड़े-बड़े वृक्षों की शाखाओं पर झूला बांधना। झूला स्त्रियों के लिए बहुत ही मनभावन अनुभव है। मल्हार गाते हुए मेहंदी रचे हुए हाथों से रस्सी पकड़े झूलना एक अनूठा अनुभव ही तो है। सावन में तीज पर झूले न लगें तो सावन क्या? तीज के कुछ दिन पूर्व से ही पेड़ों की डालियों पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले पड़ जाते हैं और नारियां सखी-सहेलियों के संग सज-संवरकर लोकगीत, कजरी आदि गाते हुए झूला झूलती हैं। पूरा वातावरण ही उनके गीतों के मधुर लयबद्ध सुरों से रसमय, गीतमय और संगीतमय हो उठता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App