रुद्रयामल तंत्र की उपासना दृष्टि विशाल है
रुद्रयामल तंत्र की उपासना-दृष्टि अति विशाल है। तंत्र से संबंधित किस देवता की मंत्र साधना कैसे की जाए, पूर्वाचार्यों ने साधकों के लिए इसका निर्देश किया है। प्रत्येक तंत्र साधक को इन निर्देशों का पालन करना चाहिए। इष्ट देवता ः मत देवता या आत्म देवता के अवतार या अवतरण देवता को ‘इष्ट देवता’ कहा जाता है। परलोक संबंधी ज्ञान देने, विपत्तियों से रक्षा करने, शत्रुओं को दंड देने एवं अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए जिन देवताओं की साधना की जाती है, उन्हें इष्ट देवता कहते हैं। इनमें उपर्युक्त मत देवता एवं आत्म देवता के अतिरिक्त हनुमान जी, बटुक भैरव जी, शक्ति के अनेक रूप महाकाली, दुर्गा, महालक्ष्मी, महासरस्वती और बगलामुखी देवी आदि हैं। कुल में जिस देवता की पूजा की जाती है, वह कुल देवता है…
-गतांक से आगे…
जॉन वुडरफ ने आगे लिखा है कि मैंने उससे पूछा कि उसने यह सब कैसे किया? अधिवक्ता ने जवाब दिया कि यह सब योग के कारण संभव हो सका। बचपन से ही योग भी मेरी दिनचर्या में शामिल था। एक दिन योगकाल के दौरान मुझे महसूस हुआ कि मेरे अंदर एक अद्भुत शक्ति विद्यमान हो गई है और मैं जब चाहूं, उसका प्रयोग कर सकता हूं। इससे यह सहज ही ज्ञात हो जाता है कि जब एक साधारण योगकर्ता को इस प्रकार के अतींद्रिय ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तो जो साधक कुंडलिनी जाग्रत कर लेगा, उसे कितनी शक्तिशाली सिद्धियां प्राप्त हो जाएंगी।
मंत्र विधान
रुद्रयामल तंत्र की उपासना-दृष्टि अति विशाल है। तंत्र से संबंधित किस देवता की मंत्र साधना कैसे की जाए, पूर्वाचार्यों ने साधकों के लिए इसका निर्देश किया है। प्रत्येक तंत्र साधक को इन निर्देशों का पालन करना चाहिए।
इष्ट देवता
मत देवता या आत्म देवता के अवतार या अवतरण देवता को ‘इष्ट देवता’ कहा जाता है। परलोक संबंधी ज्ञान देने, विपत्तियों से रक्षा करने, शत्रुओं को दंड देने एवं अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए जिन देवताओं की साधना की जाती है, उन्हें इष्ट देवता कहते हैं। इनमें उपर्युक्त मत देवता एवं आत्म देवता के अतिरिक्त हनुमान जी, बटुक भैरव जी, शक्ति के अनेक रूप महाकाली, दुर्गा, महालक्ष्मी, महासरस्वती और बगलामुखी देवी आदि हैं। इसके अतिरिक्त कुल में जिस देवता की पूजा की जाती है, वह कुल देवता, घर में जिस देवता की पूजा होती है, वह गृह देवता तथा ग्राम में पूजा जाने वाला ग्राम देवता कहलाता है। ब्रह्मा, प्रजापति, इंद्र, मरुद्गण, वरुण, अग्नि, वायु और नवग्रह आदि लोक देवता कहे जाते हैं। तंत्र संबंधी मंत्र साधना की दो रीतियां हैं – पहली, वैदिक तथा दूसरी तांत्रिक। समयानुसार देवता का चयन कर उसके मंत्र की साधना करनी चाहिए। इसमें गुरु की सहायता लेना परमावश्यक है। मंत्र को गुरुमुख से लेना अति उत्तम है। यों मंत्र दीक्षा संन्यासी को संन्यासी से, साधु को साधु से, वैष्णव को वैष्णव से तथा वानप्रस्थी को वानप्रस्थी से ही लेनी चाहिए। गुरु जो मंत्र दे, वह उसे सिद्ध होना चाहिए अथवा गुरु अपने शिष्य को मंत्र देने से पहले उसका विधिवत पुरश्चरण करे। यदि किसी को उत्तम गुरु न मिले तो वह इष्टदेव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर उन्हीं से मंत्र की दीक्षा ले।
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