शहनाज को नाटक में रानी का रोल दिया गया

By: Aug 10th, 2019 12:15 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है उन्नीसवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

इलाहाबाद में, शहनाज और मल्लिका का दाखिला सेंट मैरी कान्वेंट में कराया गया, जबकि वल्ली बॉयज हाई स्कूल में गया। नए स्कूल में अपने पहले दिन बच्चे बेकरारी से स्कूल की आखिरी घंटी बजने का इंतजार कर रहे थे। यह विचार कि अब उन्हें लकड़ी की लंबी सी मेज और बेंचों पर बैठकर स्टू और रोल्ड चपाती नहीं खानी पड़ेगी, संतोषजनक था। निश्चित रूप से, जब वह घर लौटकर आए, उनकी मां ने करीने से सजी मेज पर हर बच्चे की पसंदीदा डिश सजा रखी थीं। उनका इरादा आने वाले दिनों में बच्चों को पूरी तरह बिगाड़ देने का था, शायद यह उनका अपना तरीका था, अपनी गैरहाजिरी वाला प्यार लुटाने का। बीते सालों में, शहनाज पढ़ाई में मेहनत करके, हमेशा क्लास में बेस्ट स्टूडेंट रहने की कोशिश करती थीं। पढ़ाई में वह हमेशा अपनी कड़ी प्रतिद्वंद्वी दीप्तिमा मुखर्जी से आगे रहा करती थीं। हालांकि एक प्रोफेसर की बेटी, किम्मी मल्होत्रा, पर्सनेलिटी में शहनाज की प्रतिद्वंद्वी थी। एक दिन खेल के मैदान पर, किम्मी शहनाज के पास आई और उन्हें धक्का दे दिया। शहनाज ने हैरानी से उसे घूरा, वह समझ नहीं पा रही थीं कि उन हालात में क्या करें। तभी उनकी नजर किम्मी की लंबी चोटियों पर पड़ी, जो उनके सामने लटक रही थीं। उन्होंने अपने दोनों हाथों से उसकी चोटियां कसकर पकड़ लीं। किम्मी दर्द से चिल्ला उठी और फिर पलटवार करते हुए उसने भी शहनाज के बाल पकड़ लिए। लेकिन शहनाज के बाल छोटे थे और कुछ ही पल में किम्मी की पकड़ छूट गई। शहनाज ने अभी भी उसकी चोटियां पकड़ रखी थीं, वह नहीं जानती थीं कि अब आगे क्या करना है और अचानक वे दोनों बेतहाशा हंसने लगीं। किसी कारण से उन दोनों के बीच पसरी कड़वाहट छंट गई और आगे वे सालों तक अच्छी दोस्त रहीं। अब तक शहनाज के अंदर का लेखक भी सिर उठाने लगा था और शब्दों से खेलने के अपने हुनर के कारण उन्हें सेंट मैरी में नाटक लिखने की भूमिका मिली। एक दिन, शहनाज ने अपना लिखा नाटक मैडम को सौंप दिया। ‘शहनाज’, अगली सुबह मिसेज मिश्रा ने कहा। ‘यह तो कमाल का है।’ ‘थैंक्यू मैम’, शहनाज ने कहा। ‘रानी का किरदार तो बहुत नाटकीय है।’ ‘जी मैम, वह बहुत मजबूत किरदार है।’ ‘और शहनाज, उस रोल के लिए तुम्हारे दिमाग में कोई है।’ शहनाज ने नीचे देखा, एक पल के लिए झिझकीं। ‘मैं वह रोल करना चाहूंगी, मैम। अगर आपकी इजाजत हो तो।’ मिसेज मिश्रा ने अपने नाक पर सरक आए चश्में से शहनाज को देखा। ‘क्या तुमने यह रोल अपने लिए लिखा है?’ ‘जी मैम’, शहनाज ने कबूल किया। मिसेज मिश्रा हैरान दिख रही थीं, उनके चेहरे पर छोटी सी मुस्कान थी। ‘सच में? तुम्हें पूरा यकीन है कि तुम यह कर पाओगी?’ शहनाज ने उत्सुकता से सिर हिलाया।


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