शिक्षा का स्तर सुधारने को शिक्षकों में ईमानदारी जरूरी

By: Aug 31st, 2019 12:01 am

शिमला  – हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि शिक्षा एक मौलिक अधिकार है और देश के नागरिकों को अकुशलता, अनुशासनहीनता, मूलभूत सुविधाओं व स्टाफ  के अभाव के चलते इस बहुमूल्य अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के लिए यह जरूरी है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों में काम के प्रति ईमानदारी, समर्पण व निष्ठा हो। उनकी ऐसी वास्तविक उत्कृष्टता के कारण ही उन्हें पहले सही मायने में गुरु नाम से संबोधित किया जाता था। न्यायाधीश धर्म चंद चौधरी व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने सरकारी स्कूलों से शिक्षकों के बिना अनुमति नदारद रहने के मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही। पिछली सुनवाई के दौरान शिक्षा विभाग को यह स्पष्ट करने के आदेश दिए थे कि क्या स्कूलों में शिक्षकों की अनुपस्थिति पर नजर रखने के लिए कोई कारगर प्रणाली तैयार की गई है। न्यायालय ने दोनों शिक्षा निदेशकों को यह बताने के लिए भी कहा था कि क्या बिना स्वीकृति के शिक्षकों के छुट्टी पर जाने कोई नजर रखी जाती है। क्या शिक्षक आपातकाल में छुट्टी पर जाने से पहले कोई आवेदन या किसी तरह की जानकारी विभाग को देते हैं, जिसका स्कूल रिकार्ड में भी उल्लेख हो। कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के दौरान पाया कि प्रदेश के स्कूलों में, विशेषतया ग्रामीण इलाकों में शिक्षक बिना अनुमति के स्कूल से गायब रहते हैं। शिक्षक स्कूलों में देरी से भी आते हैं और जल्दी चले जाते हैं। इससे गरीब छात्रों को उनका शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पा रहा है। कोर्ट ने यह भी पाया था कि विभाग ने ऐसी नियमित तौर पर कोई प्रणाली तैयार नहीं की है कि सभी स्कूलों की इंस्पेक्शन समय-समय पर होती रहे। इसी का फायदा लेते हुए कुछ शिक्षक नौकरी से बिना सूचना के नदारद रहते हैं। मामले के अनुसार प्रार्थी बबिता ठाकुर वाणिज्य विषय की प्रवक्ता के तौर पर वर्ष 2004 में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल पाहल, जिला शिमला में तैनात थी। 18 नवंबर, 2004 को उप निदेशक शिक्षा ने अचानक स्कूल का निरीक्षण किया, जिसमें 20 में से 13 शिक्षक गायब पाए गए। प्रार्थी ने कारण बताओ नोटिस के जवाब में बताया कि उसकी घर पर नौकरानी न आने के कारण उसे अपने दो वर्षीय बच्चे की देखरेख के लिए उस दिन घर पर रहना पड़ा। इस जवाब से विभाग संतुष्ट नहीं हुआ और प्रार्थी के अनुपस्थिति के उक्त कार्यकाल को उसकी सेवा से हटाने के आदेश जारी कर दिए। प्रार्थी ने इन आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। सिंगल जज ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है। नौकरानी का छुट्टी पर जाना स्कूल से अनुपस्थित रहने का कोई उचित कारण नहीं है। प्रार्थी ने सिंगल बैंच के फैसले को डिवीजन बैंच के समक्ष चुनौती दी थी। डिवीजन बैंच ने भी प्रार्थी की अपील को खारिज करते हुए जनहित में शिक्षा विभाग से शिक्षकों की छुट्टियों से जुड़ी जरूरी प्रक्रियाओं पर स्पष्टीकरण मांगा था। न्यायालय को शपथ पत्र के माध्यम से यह बताया गया कि स्कूल से नदारद रहने वाले पांच शिक्षकों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई अमल में लाई गई है। चार के खिलाफ  जांच अभी लंबित है, एक को विभागीय तौर पर दंडित भी किया गया है। न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा की गई कार्रवाई से संतुष्ट होते हुए अपील पर सुनवाई बंद कर दी।


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