श्री गोरख महापुराण

By: Aug 17th, 2019 12:12 am

भूतों की करामात देखने लगे। फिर उन्होंने वज्रास्त्र मंत्र पढ़कर अपने चारों ओर लक्ष्मण रेखा की तरह एक लकीर खींच ली और वज्राशक्ति अपने मस्तक पर धारण कर ली, जिससे कोई भूत उनके निकट न आ सके। उन भूतों ने पेड़, पहाड़, उखाड़-उखाड़ कर मछेंद्रनाथ पर डालने शुरू किए, पर उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। फिर भूतों ने भांति-भांति के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया, लेकिन सब व्यर्थ साबित हुए। आखिरकार मछंेद्रनाथ को स्पर्शास्त्र शस्त्र छोड़कर सब भूतों को जहां का तहां ही स्थिर कर दिया। उस वक्त भूतों के अष्टनायकों में से झोरिगखेतला, बायरा मृगांदा, मंुजा महेश्वरा व धुलोव, ये सातों मछेंद्रनाथ के पैर पकड़ कर खींचने का दाव सोच रहे थे, लेकिन उसी क्षण योगीराज ने अपनी चतुराई से वज्रास्त्र को सिद्ध कर सब दिशाओं में कुछ क्षणों के लिए छोड़ दिया और दानवास्त्र सिद्ध कर मृदु, कंुभक, मरू, मलीमल, मचुकुंद, त्रिपुर, ब्रह्मजेठी। ये सात दानव निर्माण किए और उन सातों का भूत नायकों से युद्ध शुरू हुआ। युद्ध तो बारह घंटे तक चला, पर दानवों ने उनको खोखला कर दिया और हार कर रूपोश हो गए। मछंेद्रनाथ ने बासव शक्ति छोड़कर बेताल को भी मूर्छित कर दिया। जब उसके प्राणों पर बन आई, तब वह निरूपाय हो सारा अभिमान छोड़ योगी की शरण में आया और हाथ जोड़कर कहा, ‘आप मेरी जान बक्शें। हम सब संसार भर में आपका यश गाएंगे और आप जब जो कार्य करने की आज्ञा देंगे, उस कार्य को पूरा करेंगे। जिस प्रकार यम के पास यमदूत रहते हैं और भगवान विष्णु के पास विष्णु दूत। अगर हम वचन भंग करेंगे, तो अपने पुरखों को नरक कुंड में भेजने का पाप करेंगे।

बेताल की ऐसी प्रार्थना सुनकर मछंेद्रनाथ बोले कि-‘सांवरी मंत्र विद्या पर मेरा अधिकार है। इसलिए जो मंत्र जिस तरह का है, उसी तरह से जपने वाले की सहायता करोगे। सिद्धि होने पर मंत्र जपने वाले की सहायता करोगे। उसी तरह मंत्र वाले का मंत्र सिद्ध होना चाहिए। मछंेद्रनाथ की बात सब भूतों ने खुशी-खुशी मान ली। उसी तरह उनका भक्ष कौन सा है यह उन्हें भलीभांति समझाया और मंत्रों की सिद्धता का वक्त ग्रहण लगने के समय का बताया। मछंेद्रनाथ की सब शर्तें बेताल ने भी मान लीं और प्रेरक अस्त्र की योजना कर उन्हें छोड़ दिया। उसके पश्चात सब मछेंद्रनाथ के पैरों पर गिरे और उनसे कृपा दृष्टि रखने की प्रार्थना की।  फिर हाथ जोड़कर नमस्कार कर अपने-अपने स्थान को रवाना हुए। मछंेद्रनाथ ने बारामल्हार पवित्र स्थान पर अष्ट भैरवों को विश्वास दिलाकर देवी से प्रसाद प्राप्त किया और कुमार देवता की तीर्थ यात्रा कर कोंकण के कुडाल प्रति के अडूल ग्राम आकर रहे। जहां महाकाली का मंदिर है और जब वह माहामाई के दर्शनों को गए तो देवी का रूप बड़ा कठोर पाया। वहीं शिवजी भगवान के हाथ के कालिकास्त्र की स्थापना हुई। उसी अस्त्र से असंख्य दैत्यों का संहार किया है। शिवजी ने प्रसन्न होकर उस अस्त्र का वरदान देवी को दिया तब देवी ने वरदान मांगा कि-‘हे देव! आज तक मैंने सब कार्य आपकी आज्ञानुसार ही किए हैं। अब आप मुझे आराम करने की आज्ञा दें। तब शिवजी भगवान ने वहीं देवी की स्थापना करवा दी। इन्हीं के दर्शनों को गुरु मछंेद्रनाथ गए। तब उन्होंने देवी से विनती की। ‘हे माता! मैंने सांवर मंत्रों का काव्य तैयार किया है। उसमें आपकी सहायता की आवश्यकता है। आप दया करें और मुझे वरदान देकर मेरी कविता के गौरव को बढ़ाएं। मछंेद्रनाथ की प्रार्थना सुन देवी क्रोध में भर, लाल-पीली होकर ऐसे बोलीं जैसे किसी ने अग्नि में घी की आहुति डाल दी हो-‘अरे दुष्ट! तेरे यहां आने से मुझे काफी कष्ट पहुंचा है। मैं यहां एकांत देखकर रहती हूं और तू कविता विद्या निर्माण कर, वरदान मांगकर मुझे कष्ट पहुचाना चाहता है। तू यहां से एकदम चलता बन नहीं, तो मैं तुझे कड़ी सजा दूंगी। मैं शिवजी के हाथ का अस्त्र हूं। मैं तेरे आगे हाथ थोड़े ही जोड़ूंगी।


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