सत्र की अनुगूंज

By: Aug 21st, 2019 12:05 am

ऊना की कानून-व्यवस्था में राजनीतिक उन्माद का एक नजारा, मानसून सत्र की पेशकश में हाजिर रहा। मामला एक विधायक की परिधि में कानूनी शक्ल अख्तियार कर चुका है, तो अब मानसून सत्र की आवाज में विपक्ष के पास मुद्दे के मानिंद प्रतिष्ठित हो रहा है। सत्र के पहले दो दिन का टकराव न सामान्य नागरिक के पक्ष में था और न ही विपक्ष के वाकआउट के तात्पर्य में जनता के किसी मसले का ताप था। ऊना सदर के विधायक के स्टाफ पर पुलिस कार्रवाई का निष्कर्ष निकालना भले ही आसान न हो, लेकिन सत्र को मालूम कराने की हर संभव कोशिश में कांग्रेस खुद को परवान चढ़ाने लगी और इस तरह समय अपनी कहानी लिख गया। हम इसे राजनीतिक जीवंतता कहें या हिमाचल में विपक्ष की प्रासंगिकता, क्योंकि कांग्रेस ने सदन के सामने अपने सुर तीखे कर लिए। सत्ता पक्ष की आक्रामकता में जोशीले नारों की तत्परता का हिसाब भी सत्र की रखवाली करता है, तो नशे के खिलाफ हुंकार पैदा होती है। यह दीगर है कि हिमाचल में नशे का माफिया संगठित हो चुका है और आम आदमी के सामने औलाद की चिंता स्वाभाविक तौर पर सरकार के फैसलों पर अमल देखना चाहती है। देखना यह होगा कि नशे की बिसात में फंसे आम आदमी को बाहर निकलने का मौका विधानसभा सत्र देता है या राजनीति अपने खेल के भंवर में राज्य के सरोकार भूल जाती है। जो भी हो यह तय है कि पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच कानून-व्यवस्था के प्रहरी को लगाम जरूर लग सकती है। सत्र ने अपने कुछ पूर्व विधायकों की खामोशी पर खामोश रहकर मौन धारण किया, तो अतीत की पलकों ने भी उन्हें याद रखा। वर्तमान में अनिल शर्मा सरीखे विधायक के आस-पास मौन रहने की सियासी वजह यह सत्र देख रहा है, भले ही उन्हें अपने पास बैठा कर भी सत्तारूढ़ दल खुद को संतुष्ट नहीं कर पा रहा। सत्ता के सपनों का जिक्र मानसून की बौछारों की तरह होता है, तो पर्यटन व परिवहन की चर्चा में शरीक होने की पारी में कई विधायक सफल हो गए। जल परिवहन का खाका उन्ही बांधों पर मुकम्मल हो रहा है, जहां बरसाती पानी का खौफ पहाड़ों से उतरा है। तत्तापानी के डूबने, पौंग-गोविंद सागर से उजड़ने और चमेरा की बांध श्रृंखला में भाग्य आजमाने के लिए जल परिवहन परियोजनाओं को हर कोई मुकम्मल होता देखना चाहेगा, लेकिन पिछले पांच-छह वर्षों से जो शोर नेशनल हाई-वे या फोर लेन सड़कों को लेकर मचा था, उसे कौन लूट गया। खैर खुश रहने के लिए ख्याल अच्छा है और यह भी कि मोदी सरकार ने जल परिवहन परियोजनाओं के लिए जिस पचास हजार करोड़ का प्रावधान किया है, उससे हम कितना हासिल कर पाते हैं। फिलहाल केंद्र से उस पानी का हिसाब तो हो, जिसकी जरूरत पर हिमाचल के योगदान का दाहिना हाथ देखा नहीं जाता और जब बरसात में पानी अंधा हो जाता है तो प्रदेश की मदद के लिए केंद्र का बायां हाथ भी कंजूसी कर जाता है। देखें या सत्र के मार्फत दिखाएं कि बारिश की तबाही का मंजर, केंद्र से अपनी भरपाई के लिए जो मांग रहा है उसकी वित्तीय व्यवस्था हो जाए। सत्र की निगरानी में सरकार के वादे किसी बांध से कम नहीं, इसलिए जब बात टूरिज्म पर होती है तो भविष्य दिखाई देता है। ट्राइबल टूरिज्म की चमक में लाहुल-स्पीति का जिक्र आशातीत ढंग से आगे बढ़ता है, लिहाजा की- मोनेस्ट्री में सुविधाओं का इजाफा हर सूरत धरोहर को पूजने सरीखा है। इसी के साथ सांगला वैली के नए उद्गार में पर्यटन बोलता है, तो ऐसे संकल्प की विस्तृत भूमिका का सदैव इंतजार रहेगा। विधानसभा ने उफनती सीर खड्ड के तटीकरण की हामी भरी है। लगे हाथ उन तमाम उत्पाती खड्डों और नालों पर चर्चा होनी चाहिए, जो बरसात में कहर बनकर टूटते हैं। जाहिर है ये खड्डे-नाले केवल बरसाती पानी की निकासी का काम करते हैं, लेकिन खतरनाक प्रवृत्ति को समझने के बजाय इनके आस-पास अतिक्रमण बढ़ गया। बरसाती जल निकासी के लिए इन तमाम खड्डों-नालों का तटीकरण तथा चैक डैमों से समय-समय पर गाद निकाल कर गहरा करने की प्रक्रिया जारी रखनी होगी। 


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