सिहुंता में ‘दुनिया दे नोक्खे रंग…’
सिहुंता – आथर्ज गिल्ड आफ हिमाचल के कांगड़ा चैप्टर और भटियात साहित्य संस्कृति एवं कला मंच के संयुक्त तत्त्वावधान में एक विचार मंच एवं काव्य संगोष्ठी का आयोजन विश्राम गृह सिहुंता में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के पूर्व सचिव प्रभात शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ जबकि कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार कुलभूषण उपमन्यु ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। कार्यक्रम के प्रारंभ में आथर्ज गिल्ड आफ हिमाचल के कांगड़ा चैप्टर के अध्यक्ष रमेशचंद्र मस्ताना ने गिल्ड की गतिविधियों बताई। साथ ही इस दौरान भटियात क्षेत्र के गरनोटा से संबंधित साहित्यकार जैकरण मस्ताना के आकस्मिक निधन पर गहन दुख एवं संवेदना व्यक्त की और मंच के कर्मठ एवं प्रारंभिक सदस्य रामपाल अवस्थी को भी स्मरण करते हुए दिवंगत आत्माओं को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। विचार मंच के आयोजन में रमेशचंद्र मस्ताना ने जहां साहित्य की उपादेयता, नवोदित लेखकों के प्रोत्साहन और हिंदी व पहाड़ी में लेखन की प्रतिबद्धता पर जोर दिया, वहां विक्रम कौशल, विकास गुप्ता, तपेश कुमार,विरेंद्र राणा,पवन कुमार, तिलक सिंहए विक्रम राणा और योगराज ने साहित्य के प्रति अपनी-अपनी रुचि को प्रकट करते हुए शैक्षणिक जगत और भटियात क्षेत्र की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को खोजने एवं संरक्षित करने की दिशा में भी अपना योगदान मंच के माध्यम से प्रदान करने की बात कही। काव्य संध्या के दौर में कांगड़ा एवं भटियात क्षेत्र से जुड़े कवियों ने जहां कुछ गीत गुनगुनाएए गजलें सुनाई, वहां हिंदी एवं पहाड़ी में विविध रसी कविताएं भी सुनाईं। योगराज के कविता पाठ से इस दौर का शुभारंभ हुआ और फिर प्रभात राणा ने अपनी हास्य व्यंग्यात्मक रचनाओं से सभी को आंनदित किया। तपेश कुमार ने छंदोबद्ध चौपाइयां सुनाईं तो तिलक सिंह, वीरेंद्र राणा व विकास गुप्ता ने नशे की कुप्रवृत्ति, हिंदी दिवस और हिमाचली संस्कृति को दर्शाती कविताएं अपने-अपने अंदाज में प्रस्तुत कीं। रमेशचंद्र मस्ताना ने जहां ऐ मेरे मौला कविता हिंदी में और दुनियां दे नोक्खे रंग कविता पहाड़ी में प्रस्तुत की वहां विक्रम कौशल ने स्व रचित दो पहाड़ी गीत गाकर सब को मंत्र मुग्ध कर दिया। अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रभात शर्मा ने भटियात क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति की सराहना करते हुए सभी साहित्यकारों से अनुरोध किया कि वह इसे लिपिबद्ध करके संरक्षित करने का पूरा प्रयास करें। साहित्य के प्रति प्रतिबद्धता और आयोजनों में नवीन प्रयोग एवं परम्पराओं पर गहन विचार-विश्लेषण के उपरांत गीतों गजलों और कविताओं के मध्य कब शाम धीरे-धीरे ढलती हुई रात्रि के आगोश में आ गई कुछ पता ही नहीं चला।
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