अब निवेश अनुकूल शहर चाहिए

By: Sep 23rd, 2019 12:05 am

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री

अमरीका में कारपोरेट टैक्स की दर 27 फीसदी, कनाडा में 26.5 फीसदी, ब्राजील में 34 फीसदी, फ्रांस में 31 फीसदी, जर्मनी में 30 फीसदी और चीन में 25 फीसदी है। ऐसे में जब भारत सबसे कम कारपोरेट टैक्स की दरों वाले देशों में शामिल हो गया है तब भारतीय शहरों में विदेशी कंपनियों के द्वारा निवेश परिप्रेक्ष्य में दस्तक दिए जाने की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं…

यकीनन इस समय भारतीय शहरों में वैश्विक निवेश की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। ऐसे में भारतीय शहरों को वैश्विक निवेश की जरूरतों के अनुरूप सजाना संवारना होगा। गौरतलब है कि हाल ही में 20 सितंबर को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने और भारत को एक आकर्षक निवेश देश के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से घरेलू कंपनियों के लिए कारपोरेट टैक्स की दर 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी की है। साथ ही मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर में निवेश करने वाली नई घरेलू कंपनियों को मात्र 15 फीसदी की दर से ही कारपोरेट टैक्स देना होगा। ऐसे में कारपोरेट टैक्स घटाना देश के शहरों और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए एक वरदान साबित हो सकता है, साथ ही कारपोरेट टैक्स की दर घटाने से चीन से कारोबार समेट रही अमरीकी और अन्य देशों की कंपनियों के सामने भारत एक आकर्षक निवेश केंद्र के रूप में पहचान बना सकता है।

अभी अमरीका में कारपोरेट टैक्स की दर 27 फीसदी, कनाडा में 26.5 फीसदी, ब्राजील में 34 फीसदी, फ्रांस में 31 फीसदी, जर्मनी में 30 फीसदी और चीन में 25 फीसदी है। ऐसे में जब भारत सबसे कम कारपोरेट टैक्स की दरों वाले देशों में शामिल हो गया है तब भारतीय शहरों में विदेशी कंपनियों के द्वारा निवेश परिप्रेक्ष्य में दस्तक दिए जाने की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। निश्चित रूप से यदि हम वर्ष 2024 तक  देश की अर्थव्यवस्था को पांच हजार अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करना चाहते हैं तो हमें हमारे शहरों को 21वीं शताब्दी के वैश्विक शहरों के मुताबिक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे और रहने योग्य अनुकूलताओं से सुसज्जित करना होगा। सरकार ने आगामी पांच वर्ष में बुनियादी ढांचे पर 100 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का जो निर्णय लिया है, उससे अच्छे  शहरीकरण को लाभ मिलेगा। इतिहास के पन्ने इस बात के गवाह हैं कि जिन देशों में शहरों की जितनी अधिक प्रगति होती है, वहां आर्थिक अवसरों की उपलब्धता उतनी ही अधिक होती है।

यह माना जाता है कि शहर किसी भी राष्ट्र के विकास के आधार स्तंभ होते हैं। ऐसे में जब हम हमारे शहरों की ओर देखते हैं तो पाते हैं कि हमारे शहर बुनियादी ढांचे और जीवन अनुकूलताओं के मद्देनजर दुनिया के शहरों से बहुत पीछे हैं तथा हमारे बड़े शहरों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। पिछले दिनों इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट ‘ईआईयू’ के द्वारा चार सितंबर को प्रकाशित जीवन अनुकूलता सूचकांक ‘लिवेबिलिटी इंडेक्स’ में कहा गया है कि नई दिल्ली और व्यावसायिक राजधानी मुंबई जीवन की विभिन्न अनुकूलताओं और रहने की बेहतर योग्यता के मामले में पहले की तुलना में पीछे हो गए हैं। दुनियाभर के 140 शहरों के सर्वेक्षण में नई दिल्ली छह स्थान फिसलकर 118वें पायदान पर तथा मुंबई दो स्थान फिसलकर 119वें पायदान पर आ गया है। इस सूची में आस्ट्रिया का वियना लगातार दूसरी बार पहले स्थान पर रहा है। पिछली कुछ वैश्विक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ऐसे समय में जब भारत में तेजी से विकसित होते हुए नए शहरों का जो परिदृश्य दिखाई दे रहा है, तब इन शहरों में नए वैश्विक शहरों की जरूरत के मुताबिक विकास के मापदंडों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

विश्व के प्रतिष्ठित थिंकटैंक आक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के द्वारा पिछले दिनों प्रकाशित दुनिया के 780 बड़े और मझोले शहरों की बदलती आर्थिक तस्वीर और आबादी की बदलती प्रवृत्ति को लेकर प्रकाशित की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 से 2035 तक दुनिया के शहरीकरण में काफी बदलाव देखने में आएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय दुनिया के अधिकांश विकसित शहर जैसे न्यूयार्क, टोक्यो, लंदन, लास एंजिलिस, बीजिंग, पेरिस, दिल्ली, मुंबई तथा कोलकाता दुनिया में अपना दबदबा बनाए रखेंगे। लेकिन तेजी से विकसित होते हुए नए वैश्विक शहरों की रफ्तार के मामले में टॉप के 20 शहरों में से पहले 17 शहर भारत के होंगे और उनमें भी सबसे पहले दस शहर भारत के ही होंगे। पहले 10 शहरों में  सूरत, आगरा, बेंगलूरू, हैदराबाद, नागपुर, त्रिपुरा, राजकोट, तिरुचिरापल्ली, चेन्नई और विजयवाड़ा चमकीले वैश्विक शहरों के रूप में दिखाई देंगे। इसमें कोई दोमत नहीं कि भारत के शहरों में उद्योग-कारोबार का जो विकास हो रहा है उससे भारत दुनिया के आर्थिक परिदृश्य पर तेजी से उभरता हुआ दिखाई दे रहा है।

अर्थ विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों के कारण ही भारत की वैश्विक कारोबार, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, वैश्विक नवाचार के क्षेत्र में विशेष पहचान बनी है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारतीय शहरों में सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवाचार तथा नई प्रौद्योगिकी के लिए दुनिया की कंपनियां तेजी से कदम बढ़ा रही हैं। अमरीका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां नई प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय आईटी प्रतिभाओं के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने के लिए भारतीय शहरों में अपने ग्लोबल इन हाउस सेंटर ‘जीआईसी’ तेजी से बढ़ाते हुए दिखाई दे रही हैं। यह भी खास बात है कि प्रतिभाएं शहरों में इसलिए रहना चाहती हैं क्योंकि शहरों में विश्वस्तरीय रोजगार अवसर सृजित हो रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लेसमेंट सेंटर बनता जा रहा है। स्थिति यह है कि भारत के शहरों से विकसित देशों के लिए आउटसोर्सिंग का प्रवाह तेज होता जा रहा है और भारत में व्यावसायिक कार्यस्थल पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी कम दरों पर उपलब्ध हैं।

शहर आधुनिक बुनियादी सुविधाओं, यातायात और संचार साधनों से सुसज्जित हों। शहरों में विकास की मूलभूत संरचना मानव, संसाधन के बेहतर उपयोग, जीवन की मूलभूत सुविधाओं तथा सुरक्षा कसौटियों के लिए सुनियोजित प्रयास करना आवश्यक हैं। निश्चित रूप से 20 सितंबर को सरकार के द्वारा कारपोरेट टैक्स में कमी किए जाने से भारतीय शहर वैश्विक निवेश के नए केंद्र के रूप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।  वैश्विक जरूरतों की पूर्ति करने वाले शहरों के विकास की दृष्टि से भारत के लिए यह एक अच्छा संयोग है कि अभी देश में ज्यादातर शहरी ढांचे का निर्माण बाकी है और शहरीकरण की चुनौतियों के मद्देनजर देश के पास शहरी मॉडल को परिवर्तित करने और बेहतर सोच के साथ शहरों के विकास का पर्याप्त समय अभी मौजूद है। शहरों को जीवन अनुकूल बनाने के लिए शासन-प्रशासन के साथ-साथ सभी वर्गों के लोगों के द्वारा एकजुट होकर प्रयास करना होगा। ऐसा होने पर निश्चित रूप से हम अधिक विदेशी पूंजी आकर्षित कर पाएंगे। अधिक प्रतिभाओं का लाभ ले पाएंगे और अधिक वैश्विक तकनीकी विशेषज्ञों को आकर्षित कर पाएंगे।  


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