अर्जित किया हुआ किसी भी तरह का ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता

By: Sep 18th, 2019 12:18 am

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-4

मेरे को शहर के कालेज में जाते हुए 7-8 महीने हो गए थे,  कालेज में पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद, नए दोस्तों और नई किताबों के साथ अभी मन लग गया था। घर, गांव और  दोस्त अभी कम याद आने लगे थे। कालेज में समय-समय पर अलग-अलग तरह की प्रतिस्पर्धाएं हुआ करती थीं।   खेलकूद, कभी चित्रकारी और कभी संगीत आदि। मैं जबकि थोड़ा बहुत सब में रुचि रखता था पर कालेज के दूसरे स्टूडेंट्स के बात-व्यवहार का तरीका और विभिन्न क्षेत्रों में उनकी पकड़ देखकर मैं अपनी रुचि को अपने तक ही सीमित रखता था, पर जैसे ही कोई प्रतियोगिता खत्म होती थी  विजेता प्रतियोगी लड़के या लड़कियां को नायक की तरह सम्मान दिया जाता था उस वक्त दिल करता था कि क्यों न मैं भी उनमें से एक बनूं। एक दिन कालेज के नोटिस बोर्ड पर  लिखा गया कि अगली प्रतियोगिता चित्रकारी की होगी इच्छुक स्टूडेंट्स अपना नाम कालेज के आफिस में लिखवा सकते हैं । खैर मेरी चित्रकारी में कोई विशेष रूचि नहीं थी पर मैंने सोचा कि क्यों न एक बार कोशिश की जाए और मैंने भी आफिस में अपना नाम दर्ज करवा दिया, वहां बैठे प्रोफेसर ने मुझसे चित्रकारी के बारे में कुछ सवाल पूछे और मेरी जानकारी देख, मेरे को प्रतियोगिता में हिस्सा न लेने की सलाह दी।  मेरे को उसकी यह बात बुरी लगी और मैंने भी पेंटिंग सीखने की जिद पकड़ ली।

मैं अगली सुबह पेंटिंग का सामान लेकर, सुबह-शाम पेंटिंग बनाने की कोशिश करने लगा। मैंने पेंसिल, स्कैच भी ट्राई किया। हालांकि मैंने कुछ आड़ी-टेढ़ी लाइनें मारना शुरू कर दी थीं, पर पूरा समय चित्रकारी में लगाने से मेरी बास्केटबॉल की प्रैक्टिस और कालेज की पढ़ाई प्रभावित होने लगी। मैंने ये सब भाई से बताया तो उन्होंने कहा कि ‘सफलता पाने के लिए एक जिद, एक जुनून जरूरी है पर इससे भी ज्यादा जरूरी है उसमें आपकी रुचि होना, आप अपनी जिद और जुनून से कुछ हद तक एक लक्ष्य को हासिल कर सकते हो पर अगर उसमें आपकी रुचि नहीं है तो आप इसका आनंद नहीं उठा सकते’।  मेरी राय में तुम अगली आने वाली प्रतियोगिता का पता कर उसकी तैयारी करो। भाई की बातों पर गौर करने से मेरे को भी धीरे-धीरे यह अंदाजा होने लगा कि किसी भी काम करने के लिए उसमें आपकी रुचि होना बहुत जरूरी है यह समझ आने पर  मैंने पेंटिंग छोड़  पढ़ाई शुरू कर दी। मैं अपने रूटीन पढ़ाई के अलावा कभी-कभी भाई की हिंदी साहित्य की किताबों को भी पढ़ता रहता था। करीब 4 महीने के बाद अगली प्रतियोगिता वाद-विवाद के लिए थी। नाम मांगे गए। इसमें  तीन सदस्य के दल के रूप में हिस्सा लेना था । इस बार मैंने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का पूरा मन बना रखा था। मैंने अपना नाम दर्ज करवा अपने दल के अन्य दोनों सदस्यों के साथ मिलकर प्रतियोगिता की तैयारी करना शुरू कर दिया ।

 प्रतियोगिता को चार चरणों में आयोजित किया गया हम तीनों हर चरण में अच्छा प्रदर्शन करते हुए फाइनल में पहुंच गए । सारे कालेज में हमारे नाम की चर्चा शुरू हो गई सारे लोग हमारे ज्ञान को मानने लगे थे। आखरी चरण की  प्रतियोगिता का विषय था ‘प्रेम ’ देश  के प्रति प्रेम, परिवार के प्रति प्रेम और माशूक के प्रति प्रेम। हमने अपना विषय अच्छी तरह से खोज पढ़ कर इस तरह से तैयार किया  कि ‘देश प्रेम वह एहसास है जो एक सैनिक जब सरहद की रक्षा करते हुए दुश्मन के साथ लोहा लेता है और अपनी जान की परवाह किए बिना देश की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करता है, देश पर कुर्बान हो जाता है वह शहीद का जज्बा सबसे बड़ा देश के प्रति प्रेम है। परिवार के प्रति प्रेम श्रवण कुमार, जिसने अपने माता पिता को चाहे कैसी भी परिस्थिति हो उनको तीर्थ करवाया और उनका ध्यान रखा। माशूक के प्रति प्रेम लैला-मजनू, हीर-रांझा जैसा होना चाहिए । यह हमारे फाइनल के लिए एक लाइन में निष्कर्ष ‘समिंग अप’ कमेंट थे। जैसे ही प्रतियोगिता शुरू हुई । अपने-अपने विचार देने के बाद, जैसे ही एक लाइन में देश प्रेम, परिवार प्रेम और माशूक प्रेम को बोलने के लिए कहा गया तो हम अचंभित हुए की हमारे प्रतिद्वंद्वी दल ने वही शब्द कहे जो हमने लिखे हुए थे, हम बहुत ही नर्वस और परेशान हो चुके थे । मुझे लग रहा था की अभी सारे लोग हमारी हंसी उड़ाएंगे ।  इतने में  जब  जवाब देने की हमारी बारी आई तो मेरे दोनों साथी मेरी तरफ  देखने लगे मैं भी यही सोच रहा था, कि अगर  वे दोनों जवाब दे दें , तो अच्छा होगा पर जब  उन्होंने  जवाब नहीं दिया तो मैंने देश प्रेम के लिए बोलना शुरू किया मैंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि देश के लिए कुर्बान होने वाले शहीद का देश प्रेम सर्वोच्च है पर मेरा मानना है कि  हर सैनिक  देश के लिए अपनी जान देने की बजाय अगर  दुश्मन को उसके देश के लिए कुर्बान करे, और खुद जिंदा रह कर आने वाले समय में भी उसी जज्बे के साथ देश की रक्षा करे।  परिवार  के प्रेम के प्रति मैंने कहा कि मैं मानता हूं कि माता-पिता को तीर्थ  करवाना और उनका ध्यान रखना माता-पिता के प्रति प्रेम है पर मेरे को लगता है कि एक-दूसरे के प्रति दिल में प्यार और हमदर्दी होना भी जरूरी है।  जैसे श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मां अपने बेटे को पेट भर खाना खिलाने के लिए खुद भूखी रहती थी और जैसे मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी  ‘ईद का नायक’ हामिद ईदी   पैसों से अपनी दादी के लिए अपने खिलौनों और  मिठाई खाने के बजाय एक चिमटा खरीद के लाता है ताकि उसकी दादी मां के हाथ न जलें। वह सबसे बड़ा परिवार के प्यार को दिखाने वाला उदाहरण है ।

माशूक प्रेम पर मैंने कहा कि मैं मानता हूं लैला मजनू हीर रांझा का प्रेम आज तक के इतिहास का सबसे अच्छा उदाहरण है पर अगर आप श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ पढ़ो तो लहना सिंह जिसने अमृतसर की गली में किसी लड़की को देखकर सिर्फ  इतना पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई और बाद में उसके पति और बेटे की रक्षा के लिए अपनी जान तक दे दी, वह है माशूक के प्रति सच्चा प्रेम। मेरे तर्कों से सारा हाल तालियों से गूंज उठा। परिणाम में हमारा दल विजेता हुआ। इससे यह प्रमाणित होता है कि आपने किसी भी तरह का ज्ञान कभी भी अर्जित किया है वह कभी व्यर्थ नहीं जाता वह आपको कहीं ना कहीं काम आता है। दूसरा सफलता पाने के लिए एक जिद्द,एक जुनून होना जरूरी है पर इससे भी ज्यादा जरूरी है  श्रीतो आपकी रुचि होना। आप अपनी जिद और जुनून से कुछ हद तक एक लक्ष्य को हासिल कर सकते हो पर अगर उसमें आपकी रुचि नहीं है तो आप इसका आनंद नहीं उठा सकते।


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