आत्म पुराण

By: Sep 28th, 2019 12:05 am

देश बल, काल बल, मित्र बल, धन बल, शरीर बल, कुल बल। हमारे जैसे सामान्य पक्षियों के पास इनमें एक भी बल कैसे हो सकता है? इसलिए तुम समुद्र को किसी प्रकार सुखा नहीं सकोगे और व्यर्थ का परिश्रम करके अंत में दुःखी होंगे। टिटहरी पक्षी स्त्री की बात सुनकर बहुत नाराज हुआ कि तू हमारा उत्साह इस प्रकार भंग करती है इसलिए मैं तुझे अपने शत्रु की तरह समझता हूं। तू इतने समय से मेरे साथ रही है, इससे मैं तुझे मारना उचित नहीं समझता। अतएव तू यहां से चली जा, मैं अकेला ही इस समुद्र को सुखऊंगा। इस पर स्त्री ने उससे अपना अपराध क्षमा कराया और अपने पति के साथ मिलकर समुद्र के पानी को निकालने में प्रवृत्त हो गई। जब अन्य टिटहरी पक्षियों ने उनको इस प्रकार जल उलीचते देखा, तो वे भी उन्हें समझाने लगे। पर उन दोनों पति-पत्नी ने उनका कथन स्वीकार नही किया और कहा कि हम अपने अंडे प्राप्त करने के लिए इस समुद्र को अवश्य सुखाएंगे। यदि तुम हमसे मित्रता रखते हो, तो इस कार्य में हमारा साथ दो अन्यथा अपने घर चले जाओ। इस प्रकार उनके साहस को देखकर वे अन्य टिटहरी पक्षी भी उनकी तरह समुद्र का पानी उलीचने लगे। धीरे-धीरे यह वार्ता दूर तक फैल गई और अन्य जातियों के हजारों पक्षी उनका साथ देने को आ गए। एक दिन नारद ऋषि विचरण करते वहां होकर निकले। इस कौतुक को देखकर और टिटहरी दंपति की प्रार्थना सुनकर वे कहने लगे कि तुम सब पक्षियों का राजा गरुड़ है, तुम उसी को अपनी सहायता के लिए बुलाओ तो तुम्हारा कार्य सिद्ध हो जाएगा। यह बात पक्षियों की समझ में आ गई और उन्होंने अपना कष्ट गरुड़ के पास जाकर सुनाया। गरुड़ उन सबके दृढ़ साहस और उत्साह को देखकर प्रसन्न हुआ और उनके साथ समुद्र के किनारे पहुंच गया। उसे देखकर समुद्र भयभीत हो गया और उससे क्षमा मांग कर टिटहरी के अंडे वापस कर दिए। हे शिष्य! टिटहरी पक्षी के इस दृष्टांत के सुनाने का अभिप्राय यह है कि जिस  प्रकार टिटहरी ने दृढ़ पुरुषार्थ के द्वारा समुद्र पर विजय प्राप्त की उसी प्रकार जो मनुष्य अंतरंग साहस से किसी कार्य को पूरा करने में संलग्न हो जाता है, उसे सफलता निश्चय ही मिलती है। वह भी इसी तरह मन को वश में कर सकता है। जैसे टिटहरी पक्षी के साहस को देखकर गरुड़ भगवान उसकी सहायता को आ गए उसी प्रकार जब कोई पुरुष मन को वश में करने का दृढ़ निश्चय कर लेता है तो सभी देवता उस मनुष्य की सहायता करने को प्रस्तुत हो जाते हैं। शंका- हे भगवान! वह गरुड़ तो पक्षीगण की एकरूपता के कारण उन टिटहरी का सजातीय था, इसलिए उनकी सहायता को राजी हो गया। पर देवता तो हम मनुष्यों के सजातीय नहीं हैं, वे हमारी सहायता करने क्यों आएंगे?

समाधान- हे शिष्य! समान जाति वाले ही किसी काम में सहायता करें ऐसा कोई नियम नहीं है। अवसर पड़ने पर  विजातीय भी सहायता कर सकते हैं। जैसे सीता के वियोग के कारण रावण के साथ युद्ध करते समय विजातीय वानरों ने रामचंद्रजी की सहायता की थी। इसी तरह जब कोई अधिकारी पुरुष किसी शुभ कार्य को पूरा करने का सत साहस दिखाता है तो उसकी सहायता देवगण भी करने लग जाते हैं।


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