उपचुनाव उवाच

By: Sep 24th, 2019 12:30 am

मैं धर्मशाला हर बार अपनी सांसें रोककर चुनावी बिसात पर अपने उम्मीदवारों की कला, कौशल व कद को देखता हूं। इस बार भी मेरी सांसें रुकती हैं, जब भाजपा के भीतर उम्मीदवार होने की होड़ में विज्ञप्ति बाजों या मीडिया निर्मित तथाकथित नेताआें को देखता हूं। मेरे आश्चर्य पर कोई यकीन नहीं करता, वरना भाजपा के पास भी तो कोई विजन से भरा नेता होता। कोई बड़े नेता के आशीर्वाद, कोई जातीय आशीर्वाद के कारण भाजपा के कान भर रहा है, तो कोई संघ परिवार के झूले से सीधे उतरने को तैयार है। मैं हमेशा मुख्यमंत्रियों की च्वाइस पर खेला और अपना विस्तार किया। याद करें जब स्व. वाई एस परमार ने प्रो. चंद्रवर्कर को अपना आशीर्वाद दिया, तो मैं कितना चला। वीरभद्र सिंह ने मुझे सुधीर दिया तो मैं कैसे ‘डिवाइन धर्मशाला’ बन गया, लेकिन फिर इस बोर्ड का क्या हुआ और क्यों वह सेल्फी प्वाइंट भी मुर्दाघर बन गया जिस पर अंकित था ‘DIVINE DHARAMSALA’। खैर इस ऊंच-नीच के बीच एक दौर वह भी आया जब शांता कुमार ने कांग्रेस के वर्चस्व को लूट कर वर्तमान भाजपा की पैठ बनाई। यही समय था खनियारा के युवा गद्दी नेता किशन कपूर को परखने का। शांता के प्रिय रहे किशन कपूर अपने आका से विजन का कितना आशीर्वाद ले पाए, इस पर मैं अपना मूल्यांकन नहीं कर पाता। इतना जरूर है कि उसमें सियासत का भोलापन है और इसलिए उसे लोगों ने बार-बार चाहा, लेकिन अलग तरह की राजनीति में अवतरण करता यह गद्दी नेता तुष्टिकरण के बजाय संकीर्णता के सवालों में उलझ गया। नगर परिषद और बाद में नगर निगम के फैलते दायरे के बीच किशन कपूर न अपनी पैठ बना पाए और न ही संस्था को सम्मान दिला पाए। यह दीगर है कि ग्रामीण भाषा में माहिर किशन कपूर की बांसुरी चौधरी बाहुल निचले क्षेत्रों में खूब बजी। वह गोरखा समुदाय में भी स्वीकृत रहे, लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग हमेशा उनके विजन और एप्रोच पर शंकित रहा। यही वजह है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने पिछले दौरे पर मुझसे पूछा था कि कोई अच्छा उम्मीदवार दूं। मैं भी यही चाहता हूं कि भाजपा का नया चेहरा इतना विजन, संयम, संतुलन तथा विवेक रखता हो कि शिमला की सत्ता का संसर्ग बना रहे। मैं धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र पुनः चाहता हूं कि मुख्यमंत्री स्वयं यहां अपना उम्मीदवार चुनें। उपचुनाव की अहमियत में भाजपा की ओर देखना मेरा स्वार्थ है, जबकि कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर अपना आक्रोश देखता हूं। इस बीच सत्ता के दो सालों का जिक्र या इस दौरान जन प्रतिनिधित्व की समीक्षा मेरी हर दुखती रग पर होगी। मेरे फफोले फूटते हैं या भाजपा इन्हें मरहम लगाती है, यह नए उम्मीदवार के चयन पर निर्भर करेगा। मैंने अतीत से अब तक कई आयाम-कई विराम देखें हैं, लेकिन विधायकों के चयन में नागरिकों की प्रबुद्ध जमात को बार-बार हारते देखा है, अतः भाजपा की ओर मुझे ऐसे चेहरे का इतंजार रहेगा जो जातियों से ऊपर, इरादों में बुलंद तथा विजन में गतिशील होगा।                                                             

उम्मीदवारों के इतंजार में

—कलम तोड़


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