किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

By: Sep 7th, 2019 12:15 am

दस, युद्ध से कुछ दिन पूर्व जब कर्ण को यह ज्ञात होता है कि पांडव उसके भाई हैं तो उनके प्रति उसकी सारी दुर्भावना समाप्त हो गई, पर दुर्योधन के प्रति निष्ठ होने के कारण वह पांडवों अर्थात अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। जबकि कर्ण की मृत्यु होने तक पांडवों को यह नहीं पता था कि कर्ण उनका ज्येष्ठ भाई है। ग्यारह, सूर्यदेव जो सत्रहवें दिन के युद्ध में तब अस्त हो गए जब कर्ण के पास अर्जुन को मारने का पूरा अवसर था। बारह, द्रौपदी का अपमान करना। तेरह, श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को यह आदेश देना कि वह कर्ण का वध करे जबकि वह अपने रथ के धंसे पहिए को निकाल रहा होता है। चौदह, भीष्म पितामह, क्योंकि उन्होंने अपने सेनापतित्व में कर्ण को लड़ने की आज्ञा नहीं दी…

-गतांक से आगे…

दो, देवराज इंद्र जिन्होंने बिच्छू के रूप में कर्ण की क्षत्रिय पहचान उसके गुरु के सामने ला दी और अपनी पहचान के संबंध में अपने गुरु से मिथ्याभाषण के कारण, जिसके लिए कर्ण स्वयं दोषी नहीं था क्योंकि उसे स्वयं अपनी पहचान का ज्ञान नहीं था, उसके गुरु ने उसे सही समय पर उसका शस्त्रास्त्र ज्ञान भूल जाने का श्राप दे दिया। तीन, गाय वाले ब्राह्मण का श्राप कि जिस प्रकार उसने एक असहाय और निर्दोष पशु को मारा है, उसी प्रकार वह भी तब मारा जाएगा जब वह सर्वाधिक असहाय होगा और उसका ध्यान अपने शत्रु से अलग किसी अन्य वस्तु पर होगा। इसी श्राप के कारण अर्जुन उसे तब मारता है जब उसके रथ का पहिया धरती में धंस जाता है और उसका ध्यान अपने रथ के पहिए को निकालने में लगा होता है। चार, धरती माता का श्राप कि वह नियत समय पर उसके रथ के पहिए को खा जाएंगी और वह अपने शत्रुओं के सामने सर्वाधिक विवश हो जाएगा। पांच, भिक्षुक के भेष में देवराज इंद्र को कर्ण द्वारा अपनी लोकप्रसिद्ध दानप्रियता के कारण अपने शरीर पर चिपके कवच कुंडल दान में दे देना। छह, शक्ति अस्त्र का घटोत्कच पर चलाना, जिसके कारण वह वचनानुसार दूसरी बार इस अस्त्र का उपयोग नहीं कर सकता था। सात, माता कुंती को दिए वचनानुसार नागास्त्र का दूसरी बार प्रयोग न करना।  आठ, माता कुंती को दिए दो वचन। नौ, महाराज और कर्ण के सारथी पांडवों के मामा शल्य, जिन्होंने सत्रहवें दिन के युद्ध में अर्जुन की युद्ध कला की प्रशंसा करके कर्ण का मनोबल गिरा दिया। दस, युद्ध से कुछ दिन पूर्व जब कर्ण को यह ज्ञात होता है कि पांडव उसके भाई हैं तो उनके प्रति उसकी सारी दुर्भावना समाप्त हो गई, पर दुर्योधन के प्रति निष्ठ होने के कारण वह पांडवों अर्थात अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। जबकि कर्ण की मृत्यु होने तक पांडवों को यह नहीं पता था कि कर्ण उनका ज्येष्ठ भाई है। ग्यारह, सूर्यदेव जो सत्रहवें दिन के युद्ध में तब अस्त हो गए जब कर्ण के पास अर्जुन को मारने का पूरा अवसर था। बारह, द्रौपदी का अपमान करना। तेरह, श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को यह आदेश देना कि वह कर्ण का वध करे जबकि वह अपने रथ के धंसे पहिए को निकाल रहा होता है। चौदह, भीष्म पितामह, क्योंकि उन्होंने अपने सेनापतित्व में कर्ण को लड़ने की आज्ञा नहीं दी।

द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पांडवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिरकुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामों से भी विख्यात हैं। द्रौपदी का विवाह पांचों पांडव भाइयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक व श्रुतकर्मा उपपांडव नाम से विख्यात थे।

द्रौपदी का जन्म

प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहां यज्ञकुंड से हुआ था। अतः यह यज्ञसेनी भी कहलाई। द्रौपदी पूर्वजन्म में किसी ऋषि की कन्या थी। उसने पति पाने की कामना से तपस्या की।        


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