कुत्ते किसके हैं! आपस में उलझ रहे सरकार के अफसर

By: Sep 21st, 2019 12:20 am

नगर परिषद के पास एक्सपर्ट नहीं; पशुपालन विभाग को पकड़े हुए चाहिएं, शहर में कुत्तों की संख्या 300 से अधिक, हर चौराहे पर डेरा

हमीरपुर -शहर में दशकों से चल रहा आवारा कुत्तों का खौफ अब हरेक शहरवासी के दिल में घर कर गया है। आलम यह है कि कुत्तों की दहशत से लोग सहमे हुए हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गों का सुबह और शाम को घर से अकेले निकलना मुश्किल हो गया है। जगह-जगह झंुडों में बैठे ये कुत्ते एक साथ ही किसी के पीछे दौड़ पड़ते हैं। हैरत है कि वर्षों पहले नगर परिषद व पशुपालन विभाग के पास कुत्तों को पकड़कर इनका स्टिरलाइजेशन न कर पाने को जो बहाना था, आज भी वही है। नगर परिषद के पास कुत्ते पकड़ने का कोई एक्सपर्ट नहीं तथा पशुपालन विभाग को कुत्ते पकड़े हुए चाहिए। आखिरकार आवारा कुत्तों से निजात दिलाएगा कौन। जब दोनों ही विभाग बात एक दूसरे पर डाल रहे हैं। पिछले दिनों यहां एक कुतिया ने दो ही दिनों में करीब एक दर्जन लोगों को काट दिया। नगर परिषद की पूरी टीम इस कुतिया को पकड़ने में लगी रही। काफी मशक्कत के बाद उस खूंखार कुतिया को पकड़ा गया। उसे पकड़कर शहर से कहीं दूर छोड़ा गया है। इसके बाद शहर के लोगों ने राहत की सांस ली थी। बताते हैं कि कई वर्षों से हमीरपुर शहर में कुत्तों से निजात दिलाने के लिए कुछ नहीं हुआ। शहर के गली-चौराहों में आवारा कुत्तों की ही बात करें तो इनकी संख्या 300 से अधिक है। पालतू कुत्तों का आंकड़ा भी नगर परिषद के पास नहीं है, क्योंकि कभी गणना ही नहीं हुई। उधर, पशुपालन विभाग जिसके पास आवारा कुत्तों की स्टिरलाइजेशन का जिम्मा होता है, वह भी बेबस नजर आ रहा है। विभाग की मानें, तो अब स्टिरलाइजेशन तो कर दें, लेकिन पहले इन कुत्तों को पकड़ने और एक जगह रखने की व्यवस्था तो की जाए। नगर परिषद की मानें तो परिषद के पास कुत्तों को पकड़ने के एक्सपर्ट नहीं हंै, साथ ही इतने कुत्तों को एक साथ रख पाना भी मुश्किल है। गौरतलब है कि कई वर्षों से इन कुत्तों ने लोगों की नाक में दम कर रखा है। कभी इनका डेरा गांधी चौक पर लगा होता है, तो कभी गली-मोहल्ले में। आलम यह है कि कई बार ये कुत्ते झुंड में किसी पर भी टूट पड़ते हैं। इनकी संख्या अधिक होने के कारण इनसे उलझना तो जान जोखिम में डालने वाली बात है। जब कभी कोई कुत्ता पागल हो जाता है तो नगर परिषद के कर्मचारियों को उसे पकड़ने में लगा दिया जाता है। ये कर्मचारी कुत्तों के पीछे दौड़े रहते हैं। हाल ही में ऐसा वाकया सामने आया था जब एक कुतिया ने एक दर्जन लोग काट लिए। इसके बाद दो दिन तक नगर परिषद के कर्मचारी इस कुतिया को पकड़ने के लिए दौड़े रहे। पकड़े जाने पर इसे कहीं दूर छोड़ा गया, ताकि लोग इसके भय से मुक्त हो जाएं। आखिरकार जिम्मेदारी लेगा कौन। क्या लोग कुत्तों के हमलों से घायल होते रहेंगे या फिर इनसे निजात दिलाने के लिए कोई विभाग आगे आएगा। फिलहाल दोनों विभागों की उलझन यही बात पुख्ता कर रही है कि लोगों का जीवन यहां काफी सस्ता है। कुत्तों के आतंक से पार पाना दोनों विभागों के लिए मुनासिब नहीं।

 


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