खोया हुआ मटर का दाना ढूंढने निकले राजा-मंत्री और पुलिस

कलाकेंद्र में राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव की तीसरी संध्या में ‘चिडि़या के बहाने’ नाटक का सफल मंचन

कुल्लू –ऐक्टिव मोनाल कल्चरल एसोसिएशन कुल्लू द्वारा भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश के संयुक्त तत्त्वावधान में कलाकेंद्र कुल्लू में आयोजित किए जा रहे कुल्लू राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव की तीसरी संध्या में ऐक्टिव मोनाल कल्चरल एसोसिएशन के कलाकारों ने केहर सिंह ठाकुर द्वारा लिखित व निर्देशित लोकप्रिय नाटक ‘चिडि़या के बहाने’ प्रस्तुत किया और उपस्थित दर्शकों को अपने व्यंग्यात्मक अभिनय से हंसा कर लोट-पोट कर दिया। नाटक की प्रस्तुति प्रसिद्ध हिमाचली लोकनाट्य शैली ‘भगत’ और आधुनिक नाटकों की ब्रेख्तियन शैली का एक सटीक मिश्रण था। नाटक में तीन प्रतीकात्मक चरित्र दिखे एक चिडि़या जो अंततः बाहिरी मुल्क से घूमने आई एक युवती के रूप में सामने आती है, एक चींटी जो देश के गरीब मजदूर तबके को दर्शाती है और एक राजा का घोड़ा जो एक देश के प्रमुख का ड्राइवर है। इस नाटक में चिडि़या को बहाना बनाकर हमारे देश में फैले भ्रष्ट तंत्र और हर आदमी की अपने स्वार्थ की सिद्धि वाली वृत्ति को हास्य व्यंग्य से उभारने की कोशिश की गई है। चिडि़या जो किसी बाहरी मुल्क से आई है एक-एक कर परत-दर-परत व्यवस्था में फैली अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को उजागर करती जाती है। उसका मटर का दाना एक बढ़ई ठेकेदार द्वारा गुम किए जाने पर वह एक सिपाही से मदद मांगने जाती है। सिपाही उसे यह कहकर हड़का देता है कि दाना ढूंढना उसका काम नहीं है उसका काम तो देश में कानून और शांति बनाए रखना है। उसके बाद वह थानेदार के पास जाती है तो थानेदार कहता है कि पुलिस का काम मटर का दाना ढूंढना नहीं है, मुझे तो मंत्री जी आ रहे हैं उसे उसकी व्यवस्था करनी है। यदि मंत्री जी को मेरी व्यवस्था पसंद नहीं आई तो मेरी तरक्की कैसे होगी। जब वह मंत्री जी के पास जाती है तो मंत्री जी कहते हैं कि राजा साहब आने वाले हैं मुझे ही सब कुछ देखना है। सब ठीक नहीं हुआ तो मेरे मंत्री पद पर गाज गिर सकती है। अंत में राजा से हिम्मत करके वह गुहार लगाती है तो राजा कहता है ऐ घमंडी चिडि़या तेरी यह हिम्मत कि एक देश के राजा से तू एक मटर का दाना ढुंढवाएगी तो चिडि़या समझ जाती है कि ऐसे काम नहीं चलेगा। यहां कोई किसी की मदद करके राज़ी नहीं है। इसके बाद अपने बुद्धि कौशल से वह सबको झुका देती है और राजा, मंत्री और बाकी सब लोगों को वह अपनी सहायता करने को मजबूर करती है। इसके लिए वह इस्तेमाल करती है एक गरीब चींटी को जो प्रतीकात्मक रूप में एक गरीब मजदूर है। चिडि़या तथा चींटी के साथ एक तीसरा चरित्र भी प्रतीकात्मक है वह है राजा का घोड़ा। नाटक अंत में प्रश्न खड़ा करता है कि क्या आम आदमी हर समय राजा को मजबूर कर पाएगा और समाज में फैले इन सत्ता लोलूपों, धन लोलूपों और स्वार्थियों से अपने पेट का दाना छीन पाएगा। नाटक में आरती ठाकुर, केहर सिंह ठाकुर, रेवत राम विक्की, जीवानंद, दीन दयाल, सकीना, श्याम, विपुल, सूरज, सपना, वैभव, ममता तथा देस राज आदि कलाकारों ने अभिनय किया, जबकि मंच पर प्रकाश व्यवस्था मीनाक्षी, पार्श्व ध्वनि संचालन अनुराग और मेकअप में मीनाक्षी व दीन दयाल का सहयोग आशा ने किया, जबकि वस्त्र परिकल्पना मीनाक्षी की रही।