गरीबों की सेवा करना

By: Sep 21st, 2019 12:15 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

वहां पहुंचकर स्वामी जी को बुखार आ गया। उसी वक्त वराहनगर से उनके पास खबर आई कि उनको कलकत्ता जाना है। वहां आपको बहुत जरूरी काम है, फौरन आ जाइए। इतना सुनते ही वह बुखार में ही कलकत्ता के लिए रवाना हो गए और जाते हुए शरतचंद्र को समझाया कि जब तुम अच्छे हो जाओ तो वराहनगर के आश्रम में पहुंच जाना। नवंबर के महीने में वह मठ में आ गए। श्रीरामकृष्ण के भक्त इतने दिनों बाद स्वामी जी को देखकर प्रसन्न हो गए। स्वामी जी फिर उत्साहित होकर सबको शिक्षा देने लगे और भविष्य के कर्मों की तैयारी के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने लगे। शरतचंद्र जब पूरी तरह स्वस्थ हो गए, तो वह वराहनगर के मठ में पहुंच गए। वहां उन्होंने शरतचंद्र का नाम बदलकर स्वामी दयानंद रखा। स्वामी विवेकानंद के पहले शिष्य स्वामी दयानंद ही थे। लगभग एक साल बाद स्वामी विवेकानंद ने वराहनगर के मठ में व कलकत्ता के बाग बाजार में बलराम वसु के घर पर गुजारा। दिसंबर के महीने से पहले वह कलकत्ता नहीं छोड़ पाए थे। वो फिर कलकत्ता से वैद्यनाथ धाम गए। वहां पहुंचकर उनके मन में काशी के दर्शनों के लिए व्याकुलता बढ़ने लगी। 30 दिसंबर 1881 को स्वामी जी ने प्रयागधाम से प्रमदा दास बाबू को लिखा था कि मुझे इस बात की खबर मिली है कि योगानंद नाम के मेरे एक गुरुभाई चित्रकूट ओंकार आदि के दर्शन करके यहां आकर माता के रोग से पीडि़त हो गए, इसलिए उनकी सेवा करने मैं यहां गया हूं। फिर उन्होंने दोबारा पत्र लिखा अब मेरे भाई पूरी तरह से स्वस्थ हो गए हैं, मगर मेरा मन काशा में पड़ा हुआ है। वहां से काशी होते हुए स्वामी जी गाजीपुर पहुंचे। उनका मकसद श्री पवहारी बाबा के दर्शन करना था। पवहारी बाबा से मिलने के बाद स्वामी जी अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने पवहारी बाबा के निर्वाण के बारे में लिखा है उनके जीवन की गंभीरता का अंतिम परिणाम एक अत्यंत अद्भुत था, रोमांचकारी आत्महूति में हुआ, जो उस समय लोगों को प्राचीन कहानी के समान सिर्फ एक किवदंती सी महसूस हुई। पवहारी बाबा समाधि के बाद हवन किया करते थे। एक दिन ऐसे ही समय में उन्होंने जान लिया कि उनका अंतिम समय पास है उन्होंने फैसला किया कि आज क्यों न इस शरीर को ही आहुति के रूप में दे दिया जाए। यही सोचते हुए उन्होंने अपना शरीर होमाग्नि में समर्पित कर दिया। पवहारी बाबा अनेक भाषाएं जानते थे। वे अत्यंत त्यागी जीवन बिताने वाले थे। गरीबों की सेवा करना ही उनका धर्म था। स्वामी विवेकानंद ने उनके बारे में कहा था कि गुफा के बाहर धुएं को देखने से इस बात का पता चल जाता था कि बाबा समाधि से उठ खड़े हुए हैं।   


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