छावनी से पहले था जिले का दर्जा

By: Sep 16th, 2019 12:20 am

अब मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित सुबाथू , सरकारों की नजरअंदाजी के चलते नहीं हो सका विकास

सुबाथू-छावनी परिषद सुबाथू को सन् 1810 से 1820 तक जिला का दर्जा मिलने के बावजूद पहले अंग्रेजों ने दरकिनार किया और उसके बाद सत्ता में बैठी प्रदेश सरकार की नजरअंदाजी के चलते इस क्षेत्र के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। विदित रहे की एक जमाना था जब पूरे प्रदेश को सुबाथू के व्यापारी ही राशन से लेकर अन्य जरूरत की सामग्री खच्चरों के माध्यम से स्पलाई करते थे। आज भी अंबाला में सुबाथू मार्ग का माइलस्टोन इस बात की पुष्टि करता है। भले ही आज इस इतिहास को बहुत कम लोग जानते हैं। कुनिहार रियासत के 387वें वंशज राणा संजय देव सिंह ने आज भी इस इतिहास को संभाल कर रखा है। राणा संजय देव सिंह ने बताया की 1810 में अंग्रेजों ने सुबाथू को जिला बनाया ओर इसके चारों तरफ डगशाई हिल्स, कसौली हिल्स, सोलन व जतोग हिल्स पर सेना तैनात की। उन्होंने बताया की जब सुबाथू जिला था तो कोटखाई को तहसील का दर्जा मिला, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने सभी कार्यालय शिमला में शिफ्ट कर दिए। उन्होंने बताया की सुबाथू से ही व्यापारी सेना की जरूरत के साथ-साथ पूरे प्रदेश में खच्चरों के माध्यम से व्यापार करते थे।  आज भले ही टेलिविजन और इंटरनेट ने देशभर की गतिविधियों को देखना सरल बना दिया है, लेकिन इतिहास आज भी गवाही देता है की एक समय था, जब सुबाथू में 50 कोस दूर से लोग रामलीला देखने पहुंचते थे। सुबाथू कला निकेतन में सुभाष शर्मा, मनमोहन शर्मा, स्व. सुरेश गर्ग, पूर्ण चंद, भूपाल शर्मा, स्व. रामचंद, नरेश गर्ग, परस राम सिंह सहित अन्य कई ऐसे कलाकार रहे, जिन्होंने सुबाथू में धार्मिक उत्सवों को संजोए रखा, लेकिन हैरानी है, आज उन कलाकारों को देखकर आसपास के क्षेत्र में तो रामलीला मंच तैयार हो गए, लेकिन स्पाटू में रामलीला मंच का नामोनिशान तक नहीं रहा।  प्राकृतिक जल स्रोत भी हो गए बंद कहते हैं जब-जब प्राकृति से छेड़छाड़ हुई है, तब तब परिणाम दर्दनाक रहे है। किसी समय में सुबाथू में दर्जनों प्राकृतिक जलस्रोत हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ कुछ लोगों ने उन्हें दफन कर दिया तो कुछ आज भी अपनी हालत पर आंसू बहा रहे है न तो इन्हें छावनी परिषद संभाल सकी और न ही किसी पार्षद ने विकास की दौड़ में इस ओर ध्यान दिया, जिसका परिणाम आज सुबाथू की जनता को जलसंकट के रूप में भुगतना पड़ रहा है।


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