जलते अंगारों पर खेले गूर

सैंज घाटी में हूम पर्व का आयोजन, जलती मशालों से भगाई बुरी शक्तियां

सैंज –सैंज उपतहसील के रैला में गत शुक्रवार को घाटी के आराध्य देव भगवान लक्ष्मी नारायण अपने मूल स्थान रैला में अनंत चतुर्दशी तिथि को समस्त क्षेत्र की सुख-समृद्धि और शांति के लिए हूम पर्व मनाया गया। लक्ष्मी नारायण मधेउल में अनंत श्री हरि भगवान लक्ष्मी नारायण का पूजन किया गया। इस पूजन में भगवान लक्ष्मी नारायण के सभी कारकून व हारियान विशेष रूप से उपवास धारण करके लक्ष्मी नारायण मधेउल उपस्थित रहे। भगवान लक्ष्मी नारायण के कारदार जगरनाथ ने बताया है कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी के दिन हूम पर्व हर वर्ष मनाया जाता है। शनिवार को भगवान अनंत श्रीहरि लक्ष्मी नारायण की पूजा की गई ओर पूजा के बाद सभी कारकुन अनंत धागा, जो रक्षा का प्रतिक है को सभी ने धारण किया इसके बाद नारायण जी अपने मधेउल से समस्त हारियानों के द्वारा निकली गई जलती मशालों के साथ मेला मैदान के लिए अपने लाव-लश्कर के साथ निकले  मेला मैदान में आसुरी शक्तियों को भगाने के लिए व सुख-समृद्धि एधन दौलत व पुत्र प्राप्ति के लिए जलते अंगारों पर भगवान के गूरों का खेल हुआ। इस पर्व के दौरान भगवान के गूरों ने बुरी शक्तियों को गाली गलौज नृत्य के साथ विदा किया। और सारे देव नियमों का निर्वहन करने के उपरांत सारी रात कुलवी नाटी डाली गई। गूर तमेश्वर शर्मा का कहना है कि भगवान लक्ष्मी नारायण के हूम पर्व के इतिहास को अगर शास्त्र के अनुरूप देखा जाए तो इसका इतिहास महाभारत काल से शुरू होता है, जब धर्म पर मात्र पांच पाडवों ने विजय पाई थी, जबकि दुष्ट,  दुराचारी, असुर व्यवहारी, एक शतक कौरवों ने असत्य के मार्ग पर चलकर पूरे वंश ही खत्म हो गया था। अनंत व्रत की शुरुआत महाभारत काल से शुरू होने की मान्यता है, जब पांडव जुए में अपना राज्य गंवाकर वन-वन भटक रहे थे, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने को कहा था। श्रीकृष्ण ने कहा हे युधिष्ठिर तुम विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो। इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जाएगा और तुम्हारा खोया राज्य पुनः प्राप्त हो जाएगा। श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे। उधर, इस पक्ष में टेक सिंह ठाकर का कहना है कि 14 गांठें भगवान श्री हरि के 14 लोकों की प्रतीक हैं। भगवान लक्ष्मी नारायण हूम पर्व के दिन अनंत व्रत के साथ शुरू होता है। इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को कुमकुम से रंगकर उसमें चौदह गांठें लगाई जाती हैं। इसके बाद उसे विधिविधान से पूजा के बाद कलाई पर बांधा जाता है। कलाई पर बांधे गए इस धागे को ही अनंत कहा जाता है। भगवान विष्णु का रूप माने जाने वाले इस धागे को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है। ये 14 गांठें भगवान श्री हरि लक्ष्मी नारायण के 14 लोकों की प्रतीक मानी गई हैं। इस अनंत रूपी धागे को पूजा में भगवान विष्णु पर अर्पित कर व्रती अपनी भुजा में बांधते हैं व कर्ण नाग का धन और संतान की कामना के लिए भी किया जाता हूम के दिन अनंत व्रत भगवान लक्ष्मी नारायण के हूम पर्व के दिन अनंत भगवान का व्रत धन और संतान की कामना से यह किया जाता है।

आने वाले संकट से बचाता है अनंत व्रत

मान्यता है कि यह अनंत हम पर आने वाले सब संकटों से रक्षा करता है। यह अनंत धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देता है। इस व्रत के बारे में शास्त्रों का कथन है कि यह समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है, विपत्तियों से उबारता है। महाभारत के अनुसार माना जाता है कि इस व्रत को करने से दरिद्रता का नाश होता है और ग्रहों की बाधाएं भी दूर होती हैं।